Saturday 29 April 2017

इमामे आज़म अबू हनीफा


ZEBNEWS*

                       *इमामे आज़म*



* आपका नाम नोअमान वालिद का नाम साबित और कुन्नियत अबू हनीफा है,आप 80 हिजरी में पैदा हुए

📕 खैरातुल हिसान,सफह 70

* हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि आपका ज़िक्र तौरैत शरीफ में भी यूं मौजूद है कि "मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की उम्मत में एक नूर होगा जिसकी कुन्नियत अबू हनीफा होगी

📕 तआर्रुफ फिक़ह व तसव्वुफ,सफह 225

* खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि "मेरी उम्मत में एक मर्द पैदा होगा जिसका नाम अबू हनीफा होगा वो क़यामत में मेरी उम्मत का चराग़ है

📕 मनाक़िबिल मोफिक,सफह 50

* बुखारी व मुस्लिम शरीफ की हदीसे पाक है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "अगर ईमान सुरैया के पास भी होता तो फारस का एक शख्स उसे हासिल कर लेता" इस हदीस की शरह में हज़रत जलाल उद्दीन सुयूती रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि उस शख्स से मुराद इमामे आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं

📕 तबयिदुल सहीफा,सफह 7

*सुरैया चौथे आसमान पर एक सितारे का नाम है*

* आप ताबईन इकराम के गिरोह से हैं क्योंकि आपने कई सहाबा इकराम की ज़ियारत की है,बाज़ ने 20 सहाबी से मुलाक़ात का ज़िक्र किया और बाज़ ने 26 और भी इख्तिलाफ पाया जाता है,मगर इसमें कोई इख्तेलाफ नहीं कि आपकी सहाबियों से मुलाक़ात ना हुई हो क्योंकि खुद बराहे रास्त आपने 7 सहाबा इकराम से हदीस सुनी है जिनमे सबसे अफज़ल सय्यदना अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं,फिर अब्दुल्लाह बिन हारिस,जाबिर बिन अब्दुल्लाह,मअकल बिन यसार,वासला बिन यस्क़ा,अब्दुल्लाह बिन अनीस,आयशा बिन्त अजरद रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन शामिल हैं

📕 बे बहाये इमामे आज़म,सफह 62

* हज़रत दाता गंज बख्श लाहौरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि एक मर्तबा आपने गोशा नशीन होने का इरादा फरमा लिया था,रात को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ख्वाब में तशरीफ लाये और फरमाया कि "ऐ अबू हनीफा तेरी ज़िन्दगी अहयाये सुन्नत के लिए है तू गोशा नशीनी का इरादा तर्क कर दे" तो आपने ये इरादा तर्क कर दिया

📕 कशफुल महजूब,सफह 162

* क़ुरान मुक़द्दस को 1 रकात में पढ़ने वाले 4 हज़रात हैं जिनमे हज़रत उसमान ग़नी हज़रत तमीम दारी हज़रत सईद बिन जुबैर और हमारे इमाम इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन हैं

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 211

* इमाम ज़हबी रहमतुल्लाह तआला अलैही फरमाते हैं कि आपका पूरी रात इबादत करना तवातर से साबित है और 30 सालों तक 1 रकात में क़ुरान पढ़ते रहे और 40 सालों तक ईशा के वुज़ू से फज्र अदा की,आप रमज़ान में 61 कलाम पाक खत्म किया करते थे एक दिन में एक रात में और एक पूरे महीने की तरावीह में,आपने 55 हज किये

📕 इमामे आज़म,सफह 75

* आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर रूए ज़मीन के आधे इंसानो के साथ इमामे आज़म की अक़्ल को तौला जाए तो इमामे आज़म की अक़्ल भारी होगी

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 123

* आप जब भी रौज़ए अनवर पर हाज़िरी देते और सलाम पेश करते तो जाली मुबारक से आवाज़ आती व अलैकुम अस्सलाम या इमामुल मुस्लेमीन

📕 तज़किरातुल औलिया,सफह 165

* फिक़ह हनफी पर ऐतराज़ करने वालों और हर बात में बुखारी बुखारी की रट लगाने वालो देखो कि इमाम बुखारी ने इल्म किससे सीखा,इमाम बुखारी के उस्ताज़ हैं इमाम अहमद बिन हम्बल उनके उस्ताज़ हैं इमाम शाफई उनके उस्ताज़ हैं इमाम मुहम्मद उनके उस्ताज़ हैं इमाम अबू यूसुफ और आप के उस्ताज़ हैं इमामुल अइम्मा इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन

📕 इमामे आज़म,सफह 195

*आपसे बेशुमार करामतें ज़ाहिर है और बेशुमार वाक़ियात किताबों में मौजूद है,कभी करामत के टापिक में बयान करूंगा इन शा अल्लाह*

* आपका विसाल 2 शाबान 150 हिजरी में हुआ,6 बार आपकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गयी और क़ब्र पर तो 20 दिन तक नमाज़ होती रही,आपके विसाल पर जिन्नात भी रो पड़े थे

📕 इमामे आज़म,सफह 132

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Friday 28 April 2017

इल्मे दीन हिस्सा-1


 हिस्सा-1   इल्मे दीन

* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है "ऐ लोगों इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हे इल्म ना हो

📕 पारा 17,सूरह अम्बिया,आयत 7

* और अल्लाह के रसूल सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम इरशाद फरमाते हैं "इल्मे दीन सीखना हर मुसलमान मर्द व औरत पर फर्ज़ है

📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 224

* इल्मे दीन की मजलिस में शामिल होना 1000 रकत नफ्ल पढ़ने से बेहतर है

📕 रुहुल बयान,जिल्द 10,सफह 221

* रात में एक घड़ी इल्मे दीन का पढ़ना पढ़ाना पूरी रात इबादत करने से बेहतर है

📕 अनवारुल हदीस,सफह 114

* जो इल्मे दीन के रास्ते पर है तो वो जन्नत के रास्ते पर है

📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 145

* जो इल्मे दीन की तलब में हो और मौत आ जाये तो वो शहीद है

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 583

* जो शख्स इल्मे दीन की तलब में है तो उसके रिज़्क़ का ज़ामिन अल्लाह है

📕 तारीखे बगदाद,जिल्द 3,सफा 398

* जिस ने इल्मे दीन इसलिए सीखा कि लोगों की इस्लाह करे तो ये उसके पिछले तमाम गुनाहों का कफ्फारह है

📕 मिरातुल मनाजीह,जिल्द 1,सफह 203

* एक सहाबिये रसूल हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर थे,मौला ने अपने महबूब सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को वही की कि ऐ महबूब इस सहाबी की क़ज़ा का वक़्त आ चुका है चन्द साअत ही बाकी है,आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उन्हें बता दिया पहले तो सहाबी परेशान हुए फिर अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अब जब कि मेरा वक़्त आ ही चुका है तो मुझे कोई ऐसा अमल बता दिया जाए कि मैं उसमे लगा रहूं और मुझे मौत आ जाये,तो अल्लाह के रसूल सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि "इल्मे दीन सीखने में मशगूल हो जाओ" कि सबसे बेहतर यही है,वो सहाबी इल्म की तलब में लग गए और उसी हालत में उन्हें मौत आई

📕 तफसीरे कबीर,जिल्द 1,सफह 410

ग़ौर कीजिये कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम सामने मौजूद हैं फरमा देते कि यही बैठे रहो और मुझे देखते रहो या ये कि हरम बगल में है जाओ तवाफ करना शुरू कर दो या ये कि मस्जिदे नब्वी में नमाज़ पढ़ना शुरू कर दो,मगर आपने ये सब ना फरमा के ये फरमाया की इल्मे दीन हासिल करने में लग जाओ तो इसी से इल्मे दीन की फज़ीलत का पता चलता है,मगर एक आज का मुसलमान है कि सब कुछ है उसके पास मगर इल्मे दीन से ही कोरा है,अब इल्मे दीन सीखने का ज़रिया क्या है ये भी जान लीजिए

1. मदरसा
2. कुत्ब बीनी
3. इल्म वालों की महफिल

मदरसा हम गए नहीं किताब हम पढ़ते नहीं और जलसों में हम जाते नहीं,तो अब इल्म क्या अल्लाह तबारक व तआला इल्हाम से हमारे दिल में डालेगा,नहीं नहीं नहीं,फिर भी Social media के इस ज़माने में facebook और whatsapp के ज़रिये अगर अल्लाह का कोई बन्दा घंटो मेहनत करने के बाद बैठे बिठाये मोबाइल पर एक islamic post भेज देता है तो लम्बा Msg है कहकर नीचे खसका दिया जाता है,मेरे दोस्तों और अज़ीज़ों मैं सबकी बात नहीं करता मगर ZEBNEWS के Massages कापी पेस्ट वाले नहीं होते हैं कि कहीं से Copy कर लिया और कहीं Paste कर दिया और बस बन गए Group Admin,घंटो मेहनत करने के बाद कितनी ही किताबों में सर खपाने के बाद एक पोस्ट तैयार होती है बदले में आपसे सिर्फ इतना चाहता हूं कि plz msg पढ़ा करें क्योंकि मेरे इस काम की जज़ा कोई दे ही नहीं सकता सिवाए मेरे रब के,ये बात कहने की ज़रूरत इसलिए पड़ी कि मैं देखता हूं कि अक्सर मेरे ग्रुप के ही कुछ लोग बहुत से ऐसे सवाल पूछते हैं जिसका जवाब मैं पोस्ट के ज़रिये या सवाल जवाब में दे चुका होता हूं,मतलब साफ है कि 24 घंटे में एक msg भेजने पर भी कुछ लोग उसे नहीं पढ़ते हैं क्योंकि अगर पढ़ते तो वही सवाल मुझसे नहीं पूछते,फिर जब मैं इस पर कुछ कहता हूं तो लोग बुरा मानते हैं,तो दोस्तों अगर वाक़ई इल्म हासिल करना चाहते हैं तो msg पढ़ें और कोशिश करें उस पर अमल करने की,और अगर एक msg भी नहीं पढ़ा जाता तो फिर ग्रुप में रहने की ज़रूरत ही क्या है,ZEBNEWS को सोशल मीडिया पर चलने वाला सिर्फ एक msg ग्रुप ना समझें बल्कि इसे मैं एक मदरसे की तरह चला रहा हूं और मेरी बस यही एक तमन्ना है कि अपने मरने से पहले किसी एक की इस्लाह कर जाऊं,ग्रुप में मैंने काफी सख्ती कर रखी है किसी को कुछ बोलने की इजाज़त नहीं है ये सब सिर्फ आप लोगों की भलाई के लिए ही है वरना फिर इसमें और बाकी ग्रुप्स में क्या फर्क रह जायेगा,लिहाज़ा मेरी सख्ती को और कभी कभी मेरी सख्त कलामी को नज़र अंदाज़ कर दिया करें

*जज़ाक अल्लाहो रब्बिल आलमीन*

जारी रहेगा...........

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Tuesday 25 April 2017

हिस्सा-2 मेराज शरीफ

हिस्सा-2  मेराज शरीफ



*हुज़ूर ने खुदा का दीदार किया* 

* आंख ना किसी तरफ फिरी और ना हद से बढ़ी 

📕 पारा 27,सूरह नज्म,आयत 17

मतलब ये कि शबे मेराज हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने रब को अपने सर की आंखों से देखा,उसी देखने को मौला तआला फरमाता है कि ना तो देखने में ही आंख फेरी और ना ही बेहोश हुए,जैसा कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम रब के जलवों की ताब ना ला सके और बेहोश हो गए,और इस देखने की तफसील खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इस तरह इरशाद फरमाते हैं कि

* इज़्ज़त वाला जब्बार यहां तक क़रीब हुआ कि 2 कमानों या उससे भी कम फासला रह गया 

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 1120

* चारों खुल्फा यानि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ हज़रत उमर फारूक़ हज़रत उस्मान गनी हज़रत मौला अली व अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास अब्दुल्लाह बिन हारिश अबि बिन कअब अबू ज़र गफ्फारी माज़ बिन जबल अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद अबू हुरैरह अनस बिन मालिक और भी बहुत से सहाबा का यही मज़हब है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सर की आंखों से रब तआला को देखा 

📕 शिफा शरीफ,जिल्द 1,सफह 119

* इसके अलावा भी दीगर फुक़्हा व अइम्मा का यही मज़हब रहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा का दीदार किया 

📕 अलमुस्तदरक,जिल्द 1,सफह 65
📕 फत्हुल बारी,जिल्द 7,सफह 174
📕 खसाइसे कुबरा,जिल्द 1,सफह 161
📕 ज़रक़ानी,जिल्द 6,सफह 118

अब जो लोग ये ऐतराज़ करते हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा को नहीं देखा बल्कि जिब्रीले अमीन को देखा तो तो मैं उनसे कहना चाहूंगा कि क्या मेरे आक़ा जिब्रील को देखने के लिए सिदरह तशरीफ ले गए थे,अरे जो खुद 24000 मर्तबा मेरे आक़ा की बारगाह में आये हों उन्हें देखना हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए कोई कमाल नहीं,बल्कि वो तो हुज़ूर के ही गुलाम हैं खुद हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि 

* मेरे दो वज़ीर आसमान में हैं जिब्राईल और मीकाईल 

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 208

वज़ीर किसके होते हैं ज़ाहिर सी बात है कि बादशाह के होते हैं,अगर हुज़ूर फरमाते हैं कि ये दोनों मेरे वज़ीर हैं तो मतलब बादशाह आप खुद हुए,तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए ये कोई कमाल की बात नहीं कि जिब्रील को देख लिया बल्कि कमाल यही है कि खुदा को देखा,फिर मोअतरिज़ का उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा का ये क़ौल पेश करना कि "जो ये कहे कि हुज़ूर ने खुदा को देखा तो वो झूठा है" ये क़ौल आपके इज्तेहाद पर था मगर यहां आपके इज्तेहाद से बड़ा हुज़ूर का क़ौल मौजूद है कि खुद आप फरमाते हैं

* मैंने अपने रब को अहसन सूरत में देखा 

📕 मिश्कत,सफह 69

और मुनकिर का क़ुरान की ये दलील लाना कि खुदा को कोई आंख नहीं देख सकती तो इसका जवाब ये है कि इस दुनिया में खुदा को कोई आंख नहीं देख सकती वरना हदीसो से साबित है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि 

* कल तुम अपने रब को बे हिजाब देखोगे

📕 बुखारी,किताबुत तौहीद,हदीस 7443
📕 इब्ने माजा,हदीस 185

तो जब मैदाने महशर में तमाम मुसलमान खुदा का दीदार करेंगे तो हुज़ूर के लिए क्या मुश्किल रही,तो अब कहने वाला कह सकता है कि वो दुनिया दूसरी होगी जहां खुदा का दीदार होगा तो मोअतरिज़ का ऐतराज़ यहीं से खत्म हो गया और सवाल का जवाब खुद बा खुद मिल गया कि जहां हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा का दीदार किया था वो दुनिया भी दूसरी दुनिया थी ये दुनिया नहीं थी,एक आखिरी बात ये कि जब भी कोई किसी को अपने यहां दावत पर बुलाए और मेहमान के सामने मेज़बान खुद ना आये तो इसे तौहीन समझा जाता है,उसी तरह ये बात खुदा की शान के बईद है कि वो खुद ही हुज़ूर को बुलाये उनके लिए जन्नत सजाये जहन्नम को बुझा दे हूरो मलक का मेला लगा ले और खुद ही उनके सामने ना आये और अपना दीदार ना कराये ये ना मानने वाली बात है

जारी रहेगा...........
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हिस्सा-1 मेराज शरीफ


       हिस्सा-1  मेराज शरीफ


*तमाम सुन्नियों को शबे मेराज बहुत बहुत मुबारक हो*

* रायज यही है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज शरीफ रजब की 27वीं शब में हिजरत से पहले मक्का मुअज़्ज़मा में हज़रते उम्मे हानी के घर से हुई

📕 ज़रक़ानी,जिल्द 1,सफह 355

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को 34 बार मेराज हुई 33 बार रूहानी यानि ख्वाब में और 1 बार जिस्मानी यानि जागते हुए

📕 मदारेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 288

हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को रात ही रात एक आन में मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक्सा ले जाया गया फिर वहां से सातों आसमानों की सैर कराई गयी फिर सिदरह से आगे 50000 हिजाबात तय कराये गए जन्नत व दोज़ख दिखाई गयी और सबसे बढ़कर खुदा का दीदार हुआ,मगर जैसा कि मुनकेरीन की आदत है हर बात का इंकार करने की तो इस पर भी ऐतराज़ किया जाता है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज जिस्म के साथ हुई ही नहीं बल्कि ख्वाब में ऐसा हुआ,उनका कहना है कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई 27 साल का सफर एक पल में कर आये,तो इसका जवाब ये है कि अगर खुदा की कुदरत का इक़रार अक़्ल के हिसाब से ही किया जाए तब तो ये भी नहीं हो सकता,ग़ौर करें

मस्जिदें हराम यानि काबा मुअज़्ज़मा से बैतुल मुक़द्दस का सफर करने में 1 महीने से ज़्यादा लग जाते थे जिसकी दूरी 666 मील है

1 मील = 1.60934 किलोमीटर
666 मील = 1.60934 = 1071 किलोमीटर
फिर इतना जाना और वापस आना यानि
1071 + 1071 = 2142 किलोमीटर

अब ये बताइए कि 2142 किलोमीटर का सफर अगर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम तेज़ घोड़े से भी करते तो एक घोड़ा अगर बहुत ते़ज दौड़े तो उसकी स्पीड 70 किलोमीटर पर घंटे की होगी,इस हिसाब से

2142 / 70 = 30.6

और अगर ऊंट से सफर करते तब,ऊंट की रफ़्तार तो घोड़े से कम ही होती है,मतलब ये कि 30 घंटे से भी ज़्यादा वक़्त लगता आपको आने और जाने में,तो अगर अक़्ल के हिसाब से ही मानना है तो मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक़्सा के सफर का भी इनकार करो क्योंकि अगर एक ही रात में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम आसमानों की सैर नहीं कर सकते जन्नत दोजख नहीं देख सकते खुदा का दीदार नहीं कर सकते तो फिर एक ही रात में काबा से मस्जिदे अक्सा भी नहीं पहुंच सकते,अगर वो नामुमकिन है तो ये भी नामुमकिन है,मगर ऐसा तो कर ही नहीं पाओगे क्योंकि ये नामुमकिन काम उस रात मुमकिन हुआ है,अगर इंकार करोगे तो काफिर हो जाओगे रब तआला क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि

* पाक है वो ज़ात जो ले गया अपने बन्दे को रात ही रात मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक्सा

📕 पारा 15,सूरह असरा,आयत 1

*अक़्ल से फैसला करने वालो तुम्हारी अक़्ल के परखच्चे उड़ जायेंगे,अगर एक महीने का सफर एक आन में हो सकता है बल्कि हुआ है क़ुरान शाहिद है तो फिर 27 साल का सफर भी एक आन में हो सकता है अगर ये मुमकिन है तो वो भी मुमकिन है,इसके अलावा तीन और दलील है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज हुई और जिस्म के साथ हुई*

1. अल्लाह इस आयत में फरमाता है कि अपने बन्दे को ले गया,तो बन्दा किसको कहते हैं इस पर इमाम राज़ी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि

* अब्द का इतलाक़ रूह और जिस्म दोनों पर होता है

📕 मफातीहुल ग़ैब,जिल्द 20,सफह 295

और इसकी सराहत खुद क़ुरान मुक़द्दस में मौजूद है,मौला फरमाता है कि

* क्या तुमने नहीं देखा जिसने मेरे बन्दे को नमाज़ से रोका

📕 पारा 30,सूरह अलक़,आयत 9

* और ये कि जब अल्लाह का बंदा उसकी बंदगी करने को खड़ा हुआ तो क़रीब था कि वो जिन्न उस पर ठठ्ठ की ठट्ठ हो जायें

📕 पारा 29,सूरह जिन्न,आयत 19

बताइये नमाज़ रूह पढ़ती है या जिस्म या कि दोनों,ज़ाहिर सी बात है की दोनों,तो मेराज में भी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का जिस्म और रूह दोनों मौजूद थी

2. सारी दुनिया जानती है कि मेराज में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए बुर्राक़ लाया गया,अगर मेराज रूह की थी तो बुर्राक़ का क्या काम,क्या बुर्राक़ रूह को उठाने के लिए लाया गया था

3. अगर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज ख्वाब में होती तो मुनकिर इन्कार क्यों करता,क्योंकि ख्वाब में आसमान की सैर करना कोई कमाल तो नहीं,मतलब ये कि मेराज जिस्म के साथ ही हुई थी

📕 रुहुल बयान,पारा 15,सफह 8

जारी रहेगा...........
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Friday 21 April 2017

तलाक़ का शरई हुक्म


          ● तलाक़ का शरई हुक्म ●


निकाह से जहां दो अजनबी एक होते हैं वहीं उस रिश्ते को तोड़ देने का नाम तलाक़ है,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

* तमाम हलाल चीज़ों में अल्लाह को सबसे ज़्यादा ना पसन्द तलाक़ है

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 296

हालांकि तलाक़ एक जायज़ चीज़ है मगर इसका इस्तेमाल खास दुश्वारियों और परेशानियों में करने का ही हुक्म है ये नहीं कि बात बात में शौहर अपनी बीवी को तलाक़ देता बैठा रहे,क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि

* फिर अगर वो तुम्हे पसंद ना आये तो क़रीब है कि कोई चीज़ तुम्हे ना पसंद हो और अल्लाह उसमे बहुत भलाई रखे

📕 पारा 4,सूरह निसा,आयत 19

मतलब ये कि कोई इंसान सिर्फ ऐबों का मुजस्समा तो नहीं हो सकता अगर उसमे कुछ बुराई होगी तो अच्छाई भी ज़रूर होगी तो अगर औरत में ऐसी कोई खराबी नज़र भी आती है तो शौहर को उसकी खूबियों पर भी नज़र करनी चाहिए,लेकिन अगर फिर भी तलाक़ की नौबत आ ही जाए तो एक ही तलाक़ देनी चाहिए ताकि सुलह समझौते का रास्ता खुला रहे,जैसा कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि

* तलाक़ दो बार तक है फिर भलाई के साथ रोक लेना है या भलाई के साथ छोड़ देना फिर अगर शौहर ने उसे तलाक़ (तीसरी) दी तो अब वो औरत उसे हलाल ना होगी यहां तक कि दूसरे शौहर के पास रहे

📕 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 229,230

तलाक़ की 3 किस्में हैं रजई,बाइन,मुगलज़ा

रजई - वो तलाक़ है कि औरत फिलहाल निकाह से नहीं निकलती,हां इद्दत गुज़र जाए और वापस ना लाये तो बाहर हो जाएगी शौहर को इद्दत के अंदर बग़ैर निकाह के उसे लौटाने का हक़ रहता है

बाइन - वो तलाक़ है कि औरत निकाह से तो फौरन निकल जाती है मगर औरत की मर्ज़ी से शौहर फिर उसे निकाह में ला सकता है इद्दत के अंदर हो या इद्दत के बाद

मुगलज़ा - वो तलाक़ है कि औरत निकाह से फौरन बाहर हो गयी अब बग़ैर हलाला के उसके लिए हलाल ना होगी,मुगलज़ा तीन तलाक़ों से होता है अब ये तीन चाहे बरसों के फासले पर दी हो मसलन एक 20 साल पहले दी फिर कुछ दिन बाद एक और देदी अब जब भी तीसरी बार कहेगा तो मुगलज़ा हो जायेगी,या फिर इकठ्ठा दी यानि युं कहा कि मैंने तुझको तलाक़ दी तलाक़ दी तलाक़ दी या युं कहा कि मैंने तुझको 3 तलाक़ दी तो हर सूरत में मुगलज़ा वाक़ेय हो जायेगी,क्योंकि रब ने तीनो तलाक़ों का हुक़्म बयान किया मगर कोई शर्त नहीं लगाई कि एक ही मजलिस में हो या अलग अलग,और इस हुक्म की तामील हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने मुबारक से हो रहा है जैसा कि सहाबियाये रसूल हज़रत फातिमा बिन्त क़ैस रज़ियल्लाहु तआला अन्हा अपना तलाक़ का वाक़िया बयान करती हैं कि

* मेरे शौहर (हज़रत आमिर शोअबी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु) ने मुझे यमन के लिए घर से निकलते वक़्त इकठ्ठी 3 तलाक़ दी तो अल्लाह के रसूल सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने तीनो तलाक़ नाफिज़ फरमा दी

📕 इब्ने माजा,सफह 147

इसी तरह 1 साथ 3 तलाक़ों का कई मुआमला ज़मानये नब्वी में पेश आया जिस पर आपने 3 तलाक़ों का ही हुक्म दिया,और बाद के मुहद्देसीन हज़रात ने भी इसी पर अमल किया जिसके लिए काफी हवाले मौजूद हैं मसलन

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 300
📕 मूता इमाम मालिक,सफह 284
📕 ताहावी,जिल्द 2,सफह 33
📕 फत्हुल क़दीर,जिल्द 3,सफह 469
📕 अहकामुल क़ुरान,जिल्द 1,सफह 388

हां ये अलग बात है की इकट्ठी 3 तलाक़ देना गुनाह है और हालते हैज़ व हालते हमल में तलाक़ देना नाजायज़ है इस पर हुज़ूर ने नाराज़गी का इज़हार भी किया मगर फरमाते हैं कि अगर हालते हैज़ में भी 3 तलाक़ दी तो तीनो नाफिज़ हो जायेगी लेकिन अगर तीन नहीं दी तो रजअत यानि लौटाये दोबारा उसको निकाह में लाना वाजिब है

📕 दारक़ुतनी,जिल्द 2,सफह 433
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5,सफह 604

* औरत नमाज़ नहीं पढ़ती,शौहर के लिए बनाव सिंगार नहीं करती,शौहर को या घर वालों को तंग करती है इन सूरतों में तलाक़ दे सकते हैं युंही अगर शौहर जिमअ पर क़ादिर नहीं या कोई फरायज़ से औरत को रोकता है तो औरत तलाक़ ले सकती है




📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 8,सफह 5

हलाला - अब अगर मुगलज़ा हो गयी तो बग़ैर हलाला के औरत शौहर पर हलाल ना होगी,मतलब ये कि चुंकि तलाक़ दी है तो तलाक़ की इद्दत गुज़ारेगी जो कि 3 हैज़ है अब ये हैज़ चाहे तीन महीनो में आये या फिर तीन साल में,3 हैज़ आ गए इद्दत पूरी हो गयी या फिर हमल से थी तो हैज़ तो आएगा नहीं तो अब बच्चे की विलादत ही इद्दत है अब अगर बच्चा तलाक़ देने के 1 दिन बाद ही हो जाए इद्दत पूरी हो गयी अब वो दूसरे से निकाह करेगी उससे सोहबत होगी फिर वो तलाक़ देगा तो अब उसकी इद्दत गुज़ारेगी यानि फिर से 3 हैज़,अब पहले शौहर से निकाह कर सकती है,अगर चे देखने में ये कानून सख्त है मगर इससे भी ज़्यादा सख़्त ये है कि एक मर्द सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है मगर अपनी बीवी को ग़ैर के बिस्तर में नहीं बर्दाश्त कर सकता,तो ये सज़ा अस्ल में उस मर्द के लिए है कि जिसने शरीयत को मज़ाक बनाया कि अगर चाहता तो एक तलाक़ देकर फिर से रुजू कर सकता था मगर नहीं अपनी मर्दानगी में या अपनी जिहालत में 3 क्या कइयों तलाक़ दे बैठा तो अब शरीयत से खेलने का अंजाम भी बर्दाश्त करे,ये भी याद रहे कि दूसरे शौहर से सिर्फ निकाह करके तलाक़ ले लेने से वो निकाह नहीं होगा बल्कि एक बार सोहबत करनी फर्ज़ होगी,और ये भी याद रहे कि अगर बग़ैर हलाला किये शौहर ने अपनी बीवी को रखा तो जो कुछ होगा सब ज़िना खालिस होगा और बच्चे सब हरामी पैदा होंगे

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 8,सफह 126

अब जिस मसले पर क़ुरान हदीस और इज्माअ सबका मुत्तफिक़ फैसला हो उस पर कुछ जाहिलों की वजह से इन्कार नहीं किया जा सकता और क़यामत तक उसमे फेर बदल नामुमकिन है,चाहे कुछ नाम निहाद मुसलमान हों या फिर काफिरो मुर्तद लोग जो भी इसमें फेर बदल की कोशिश करेगा वो ज़िल्लतों रुस्वाई के गढ़े में समा जाएगा,अल्लाह ने जो क़ानून हमारे लिए बनाया है उसमें बिला शुबह भलाई ही भलाई है,जो जाहिल औरतें आज modern बनकर आज़ादी का हक़ मांग रहीं हैं वो जाकर ग़ैर मुस्लिमों की औरतों का हाल देखें फिर फैसला करें

! देखें कि गैरों के मुक़ाबले इस्लाम में तलाक़ का % कितना है
! देखें कि ग़ैरों के मुकाबले इस्लाम में rape का % कितना है
! देखें कि ग़ैरों के मुकाबले इस्लाम में कितनी बच्चियों को पेट मे मारा जाता है
! देखें कि ग़ैरों के मुकाबले इस्लाम में कितनी बहुओं को जिंदा जलाया जाता है
! देखें कि ग़ैरों के यहां कितना हक़ औरतों को हासिल है और इस्लाम में कितना

*लिहाज़ा ऐसी बे ग़ैरत औरतों और जाहिल मर्दों और ऐसी सरकार की कोई भी बात या क़ानून जो कि इस्लाम के खिलाफ होगा हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ हमें मंज़ूर नहीं*

*तलाक़ की तफ्सीली मालूमात के लिए बहारे शरीयत हिस्सा 8 का मुताला किया जाए*

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Tuesday 18 April 2017

Wazayaf


***** Wazayaf *****


* अपनी मर्ज़ी की जगह शादी करने के लिए हर नमाज़ के बाद 241 बार या अज़ीज़ो या जामेओ يا عزيز يا جامع अव्वल आखिर 11,11 बार दरूद शरीफ

📕 रूहानी इलाज,सफह 203

* कहीं सख्त आग लग गई हो तो उसे बुझाने के लिए सूरह वद्दोहा पढ़कर 7 कंकरियों पर दम करें कि हर कंकरी पर एक बार पढ़कर आग में फेंकता जाये,इन शा अल्लाह आग बुझ जायेगी

📕 मसाएलुल क़ुरान,सफह 287

* जो किसी मुसीबत ज़दा को देखकर ये दुआ الحمد لله اللذي عافاني مما ابتلاك به وفضلني على كثير ممن خلق تفضيلا अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी आअफ़ानी मिम्मब तलाका बेहि वफ'द्दलानी अला कसीरिम मिम्मन खलाक़ा तफदी'ला पढ़ लेगा,इंशा अल्लाह खुद कभी उस मुसीबत में गिरफ्तार ना होगा मगर बुखार ज़ुकाम खुजली और आंखों के दर्द में ना पढ़ी जाए कि इन अमराज़ की हदीस मे बड़ी तारीफ आई है

📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 14

* जिस पर जादू किया गया हो उस पर 100 बार सूरह फलक़ और सूरह नास पढ़कर दम करें इं शा अल्लाह जादू का असर ज़ायल होगा

📕 जन्नती ज़ेवर,सफह 475

* जिस किसी से उसकी महबूब चीज़ छीन ली गयी हो तो वो गुस्ल करके पाक कपड़ा पहने और हलाल रिज्क़ से सदक़ा देकर उसके बाद 2 रकात नमाज़ नफ्ल पढ़े,बाद नमाज़ 70 बार يا بديع سموت والأرض يا قاضي الحاجات या बदीउ'स समावाते वलअ'र्द या क़ा'दियल हाजात और 1000 बार يا بديع या बदी'ओ पढ़े,इंशा अल्लाह कामयाब होगा

📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा,हिस्सा 2,सफह 252

* हर नमाज़ के बाद इसके हमेशा पढ़ने से बेशुमार बरक़ते दीनो दुनिया की ज़ाहिर होंगी,अव्वल आखिर 3 बार दुरुदे पाक फिर 100 बार,बाद नमाज़े फज्र 'या अज़ीज़ो या अल्लाहो' बाद नमाज़े ज़ुहर 'या करीमो या अल्लाहो' बाद नमाज़े अस्र 'या जब्बारो या अल्लाहो' बाद नमाज़े मग़रिब 'या सत्तारो या अल्लाहो' बाद नमाज़े इशा 'या ग़फ्फारो या अल्लाहो'

ياعزيز يا الله
يا كريم يا الله
يا جبّار يا الله
يا ستّار يا الله
يا غفّار يا الله

📕 शजरये रज़वियह,सफह 24

* जो रोज़ाना 7 बार 'अलबारिओ' البارى पढ़ेगा उसे अज़ाबे कब्र ना होगा इं शा अल्लाह

📕 सोलह सूरह,सफह 214

*मगर ये याद रखें जो शख्स नमाज़ ना पढ़े और अलग अलग कामों के लिये वज़ीफा पढ़ता रहे तो क़यामत के दिन उसका वज़ीफा उसके मुंह पर मार दिया जायेगा लिहाज़ा पहले नमाज़े पंजगाना की आदत डालें*

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफ़ह 82

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Monday 17 April 2017

फज़ाइले सदक़ा हिस्सा-2


हिस्सा-2  फज़ाइले सदक़ा



* फर्ज़ो के बाद एक मुसलमान का अपने मुसलमान भाई का दिल खुश करना अल्लाह को सबसे ज़्यादा पसंद है और जो शख्स किसी मुसलमान की कोई हाजत पूरी करता है तो अल्लाह उसकी हाजत पूरी करता है और जो कोई किसी मुसलमान से कोई तकलीफ दूर करता है तो मौला तआला क़यामत के दिन उसकी तकलीफ को दूर कर देगा

📕 इज़ानुल अज्रे फी अज़ानिल क़ब्रे,सफह 19-20

* तालिबे इल्म पर एक रुपया खर्च करना ऐसा है जैसे उसने उहद पहाड़ के बराबर सदक़ा किया

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 385

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि बन्दे का राहे खुदा में 1 दरहम खर्च करना कभी कभी 1 लाख दरहम खर्च करने से भी आगे बढ़ जाता है सहाबा इकराम ने पूछा या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम किस तरह तो आप फरमाते हैं कि किसी के पास कसीर माल है और उसने उसमे से 1 लाख दरहम खर्च किया मगर किसी के पास 2 ही दरहम थे और उसने उसमे से 1 दरहम खर्च कर दिया तो उसके 1 दरहम का सवाब 1 लाख दरहम से भी आगे बढ़ जायेगा

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 89

* जो अल्लाह की रज़ा के लिए मस्जिद तामीर कराये (यानि उसमे हिस्सा ले) तो अल्लाह उसके लिए जन्नत में मोतियों और याक़ूत से महल बनायेगा

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 591

*सदक़ा क्या होता है और क्या कर सकता है उसके लिये ये रिवायत पढ़िये*

* एक ज़िनाकार औरत एक जगह से गुज़री जहां एक कुत्ता प्यासा था वो कुंअे में मुंह लटकाए पानी को देख रहा था,उस औरत ने अपने चमड़े का मोज़ा उतारा और अपने दुपट्टे में बांधकर कुंअे से पानी निकालकर उस कुत्ते को पिलाया उसके इस अमल से मौला खुश हो गया और उसकी मगफिरत हो गई

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 409

* हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास एक शख्स आया और कहने लगा कि हज़रत आप मुझे जानवरों की बोलियां सिखा दीजिये आपने उसको मना किया कि इसमे कसीर हिकमतें है लिहाज़ा अपने इस शौक से रुजू करो मगर वो नहीं माना आपने मौला से बात की तो वो फरमाता है कि अगर ये बाज़ नहीं आता तो सिखा दो तो आपने उसे जानवरों की बोलियां सिखा दी
उसके घर में एक मुर्गा और एक कुत्ता पला हुआ था मालिक ने जब रोटी का टुकड़ा फेंका तो मुर्गे ने झट से उठा लिया इस पर कुत्ता बोला कि ये तूने गलत किया कि तेरी गिज़ा दाना दुनका है और तूने मेरी रोटी उठा ली,तो मुर्गा बोला परेशान ना हो कल मालिक का बैल मर जायेगा वो उसे यहीं कहीं फेंक देगा जितना चाहे खा लेना,मालिक ने उन दोनों की बात सुन ली और दूसरे दिन सुबह सुबह ही वो बैल को बाज़ार में बेच आया दूसरे दिन कुत्ते ने कहा कि तुमने झूठ बोला और बिला वजह मुझे उम्मीद दी तो मुर्गा कहने लगा कि मैंने झूठ नहीं कहा था मालिक ने अक्लमंदी दिखाते हुए अपनी मुसीबत दूसरे के गले डाल दी खैर कल मालिक का घोड़ा मर जायेगा तब तुम उसे खा लेना,मालिक ने सुना और दूसरे दिन घोड़ा भी बेच आया अब कुत्ते ने झल्लाते हुए कहा कि तुम बिल्कुल झूठे हो तुम्हारी कोई बात सच्ची नहीं,तो मुर्गा बोला कि ऐसा नहीं है मालिक जिसको अक़्लमंदी समझ रहा है वो उसकी सबसे बड़ी बेवकूफी है क्योंकि मौला ने उस पर कुछ मुसीबतें डाली थी जिसको उसके घर के जानवरों ने अपने सर पर ले लिया कि अगर वो मर जाते तो उसका फिदिया बन जाता मगर अब जबकि उसने अपना माल कुछ ना छोड़ा तो अब कल वो खुद मरेगा अब तो घर में दावत होगी जितना चाहे खा लेना
अब जो मालिक ने सुना तो उसके होश उड़ गए वो भागता हुआ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बारगाह में पहुंचा और सारी बात कह डाली,तो आप फरमाते हैं कि मैंने तो पहले की कहा था कि जो कुछ बन्दों से छिपाकर रखा गया है उसमें उनके ही लिए भलाई है मगर तुम ना माने अगर तुम उनकी बोली ना सीखते तो उन जानवरों की मौत तुमहारी तरफ से सदक़ा हो जाती और तुम्हारी जान बच जाती मगर तुमने उन्हें दूर कर दिया अब ये क़ज़ा टल नहीं सकती कल तुम यक़ीनन मरोगे,और दूसरे दिन वो मर गया

📕 सच्ची हिकायत,सफह 97

जारी रहेगा...........
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Wednesday 12 April 2017

फज़ाइले सदक़ा हिस्सा-1


फज़ाइले सदक़ा  हिस्सा-1



* क़ुरान में मौला तआला इरशाद फरमाता है कि "और जो बुख्ल (कंजूसी) करते हैं उस चीज़ में जो अल्लाह ने उन्हें अपने फज़्ल से दी हरगिज़ उसे अपने लिए अच्छा ना समझें बल्कि वो उनके लिए बुरा है

📕 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 180

* हदीसे पाक में आता है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "जाहिल सखी इबादत गुज़ार कंजूस से बेहतर है

📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 165

* सदक़ा गुनाहों को इस तरह मिटाता है जैसे पानी आग को बुझा देता है

📕 मजमउज़ ज़वायेद,जिल्द 3,सफह 419

* सदक़ा रब के गज़ब को ठंडा करता है और बुरी मौत को दफा करता है

📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 527

* सदक़ा वो है कि साईल के हाथ में जाने से पहले मौला तआला क़ुबूल फरमा लेता है

📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 460

* सदक़ा क़ब्र की गर्मी को कम करता है एक मुसलमान का भूले हुए को राह बताना किसी से मुस्कुराकर बात करना रास्ते से पत्थर हटा देना या कुछ भी ऐसा करना जिससे किसी को फायदा पहुंचता है तो ये उसकी तरफ से सदक़ा है और सदक़ा बन्दे को रब से क़रीब यानि जन्नत से क़रीब कर देता है और कंजूसी रब से दूर और जहन्नम से क़रीब कर देता है

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 80--84

* मौला तआला ने जब ज़मीन को पैदा फरमाया तो वो रब के जलाल से कांपने लगी तो उस पर पहाड़ बसा दिए जिससे उसकी हरकत मौक़ूफ हो गयी,फरिश्तो को पहाड़ की ताक़त पर बड़ा ताज्जुब हुआ उन्होंने मौला से पूछा कि क्या पहाड़ से भी ताकतवर कोई चीज़ दुनिया में है तो मौला फरमाता है कि हां वो लोहा है फिर फरिश्ते अर्ज़ करते हैं कि मौला क्या लोहे से भी ताकतवर कोई चीज़ है तो मौला फरमाता है कि हां वो आग है फिर फरिश्तो ने अर्ज़ किया कि ऐ मौला क्या आग से भी ताकतवर कोई चीज़ है तो मौला फरमाता है कि हां वो पानी है फिर फरिश्ते अर्ज़ करते हैं कि मौला क्या पानी से ताक़तवर भी कुछ है तो मौला फरमाता है कि हां वो हवा है फिर फरिश्ते अर्ज़ करते हैं कि मौला क्या हवा से भी कोई चीज़ ताक़तवर है तो मौला इरशाद फरमाता है कि हां इंसान का किया हुआ वो सदक़ा जो उसने छिपाकर दिया हो वो हर चीज़ से ज़्यादा ताकतवर है

📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 530

* हदीसे पाक में है कि हज़रत सअद बिन उबादा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की मां का इंतेकाल हो गया आपने नबी की बारगाह में अर्ज़ की या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेरी मां का इंतेकाल हो गया अगर मैं उनके लिए सदक़ा करूं तो क्या उनको सवाब पहुंचेगा आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया हां फिर उन्होंने पूछा कि कौन सा सदक़ा अफज़ल है तो आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि पानी

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 266

* जो किसी मुसलमान को खाना खिलाये तो मौला उसे जन्नत के मेवे खिलायेगा और जो किसी मुसलमान को पानी पिलाए तो मौला उसे जन्नत का शर्बते खास पिलायेगा और जो किसी मुसलमान को कपड़ा पहनाये तो मौला उसे जन्नती लिबास पहनायेगा और जब तक उस कपड़े का एक टुकड़ा भी उसके बदन पर रहेगा वो अल्लाह की हिफाज़त में रहेगा

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 4,सफह 204-218

जारी रहेगा...........
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Tuesday 11 April 2017

टखनों का ढका होना


● टखनों का ढका होना ●


* जो अज़ार टखनों के नीचे है वो जहन्नम में है

📕 बुखारी,जिल्द 7,हदीस 678
📕 अत्तरगीब वत्तर्हीब,जिल्द 3,सफह 88
📕 सुनन कुबरा,जिल्द 2,सफह 244

* अल्लाह उस पर रहमत की नज़र नहीं फरमायेगा जो अपने कपड़ो को लटकाता है

📕 बुखारी,जिल्द 7,हदीस 679

* एक शख्स नमाज़ पढ़ रहा था जिसकी अज़ार टखनों से नीचे थी तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उसको बुलाया और फरमाया कि जाकर फिर से वुज़ू कर और नमाज़ पढ़ कि तेरी नमाज़ नहीं हुई

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 100

*यहां हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का मकसद सिर्फ उसको तम्बीह करना था वरना नमाज़ इस सूरत में भी हो जाती है,जैसा कि दूसरी हदीसे पाक में है कि*

* जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने ये फरमाया कि जिसकी अज़ार टखनों के नीचे है तो वो जहन्नम में है तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अगर मैं अपनी तहबन्द का खास ख्याल ना रखूं तो अक्सर वो टखनों के नीचे ही रहती है तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि ऐ अबू बक्र तुम उनमें से नहीं हो जो तकब्बुर से ऐसा करते हैं

📕 बुखारी,जिल्द 7,हदीस 675
📕 इब्ने अबी शैबा,जिल्द 8,सफह 199
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 449

*मतलब साफ है कि जो घमंड की वजह से ऐसा करेगा तो ये नाजायज़ है वरना मकरूह,अब यहां एक मसला ये समझ लीजिये कि नमाज़ में टखना खोलने के लिए कुछ लोग पैंट मोड़कर नमाज़ पढ़ते हैं उनका ये फेअल हरगिज़ जायज़ नहीं जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि*

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि हमें ये हुक्म दिया गया है कि नमाज़ में अपने कपड़ो को ना समेटें

📕 मुस्लिम,जिल्द 4,हदीस 993

*कपड़ो को मोड़ना इसको कहते हैं खिलाफे मोताद यानि कि कपड़ा जिस फैशन पर सिला गया है उसी तौर पर रखकर नमाज़ पढ़ी जाए कि अगर उसमे कुछ भी बदलाव किया तो नमाज़ मकरूहे तहरीमी होगी,गोया टखना खोलने के लिए पैंट मोड़ना ऐसा ही है जैसा कि कोई बारिश की चंद बूंदों से बचने के लिए किसी परनाले के नीचे खड़ा हो जाए कि पहले तो शायद कुछ ही हिस्सा भीगता पर अब तो पूरी तरह भीग गया,मतलब ये कि टखना खुला रखना सुन्नत ज़रूर है और हर वक़्त खुला रखना सुन्नत है ना कि खाली नमाज़ में और इसी तरह नमाज़ पढ़ना मकरूहे तंज़ीही यानि कराहत है मगर नमाज़ हो गई लेकिन अगर टखने को खोलने की गर्ज़ से कपड़े को मोड़ लिया तो ये मकरूहे तहरीमी यानि नाजायज़ है कि अब नमाज़ को दोहराना वाजिब है,फिर ये मोड़ना चाहे पैंट की मोहरी हो या शर्ट की आस्तीन दोनों का एक ही हुक्म है और ये हुक्म सिर्फ मर्दों के लिये है वरना औरतों के लिये यही हुक्म है कि वो अपनी अज़ार टखनों से 1 बालिश्त या 2 बालिश्त बढाकर ही रखें ताकि सतर खुलने का कोई अमकान ना रहे*

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 84

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Sunday 2 April 2017

बीबी से मिलने का शरीअत में तरीका पूरा जरूर पड़े ।।।।।


बीबी से मिलने का शरीअत में तरीका पूरा जरूर पड़े ।।।।।



#आदाबे_सोहबत (जिमाअ) ताल्लुक़ात के बयान

मियां बीवी के ताल्लुक़ से कुछ ऐसे मसले मसायल हैं जिनका जानना उनको ज़रूरी है मगर वो नहीं जानते,क्यों,क्योंकि दीनी किताब हम पढ़ते नहीं और आलिम से पूछने में शर्म आती है मगर अजीब बात है कि मसला पूछने में तो हमें शर्म आती है मगर वही ग़ैरत उस वक़्त मर जाती है जब दूल्हा अपने दोस्तों को और दुल्हन अपनी सहेलियों को पूरी रात की कहानी सुनाते हैं,खैर ये msg सेव करके रखें और अपने दोस्तों और अज़ीज़ो में जिनकी शादियां हों उन्हें तोहफे के तौर पर ये msg सेंड करें

* हज़रत इमाम गज़ाली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिमअ यानि सोहबत करना जन्नत की लज़्ज़तों में से एक लज़्ज़त है

📕 कीमियाये सआदत,सफह 496

* हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि इंसान को जिमअ की ऐसी ही ज़रूरत है जैसी गिज़ा की क्योंकि बीवी दिल की तहारत का सबब है

📕 अहयाउल उलूम,जिल्द 2,सफह 29

* हदीसे पाक में आता है कि जिस तरह हराम सोहबत पर गुनाह है उसी तरह जायज़ सोहबत पर नेकियां हैं

📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 324

* उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अंहा से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जब एक मर्द अपनी बीवी का हाथ पकड़ता है तो उसके नामये आमाल में एक नेकी लिख दी जाती है और जब उसके गले में हाथ डालता है तो दस नेकियां लिखी जाती है और जब उससे सोहबत करता है तो दुनिया और माफीहा से बेहतर हो जाता है और जब ग़ुस्ले जनाबत करता है तो पानी जिस जिस बाल पर गुज़रता है तो हर बाल के बदले एक नेकी लिखी जाती है और एक गुनाह कम होता जाता है और एक दर्जा बुलंद होता जाता है

📕 गुनियतुत तालेबीन,सफह 113

* हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से एक शख्स ने अर्ज़ किया कि मैंने जिस लड़की से शादी की है मुझे लगता है कि वो मुझे पसंद नहीं करेगी तो आप फरमाते हैं कि मुहब्बत खुदा की तरफ से होती है और नफरत शैतान की तरफ से तो ऐसा करो कि जब तुम पहली बार उसके पास जाओ तो दोनों वुज़ु करो और 2 रकात नमाज़ नफ्ल शुकराना इस तरह पढ़ो कि तुम इमाम हो और वो तुम्हारी इक़्तिदा करे तो इन शा अल्लाह तुम उसे मुहब्बत और वफा करने वाली पाओगे

📕 गुनियतुत तालेबीन,सफह 115

* नमाज़ के बाद शौहर अपनी दुल्हन की पेशानी के थोड़े से बाल नर्मी और मुहब्बत से पकड़कर ये दुआ पढ़े अल्लाहुम्मा इन्नी असअलोका मिन खैरेहा वखैरे मा जबलतहा अलैहे व आऊज़ोबेका मिन शर्रेहा मा जबलतहा अलैह तो नमाज़ और इस दुआ की बरकत से मियां बीवी के दरमियान मुहब्बत और उल्फत क़ायम होगी इन शा अल्लाह

📕 अबु दाऊद,सफह 293

* खास जिमा के वक़्त बात करना मकरूह है इससे बच्चे के तोतले होने का खतरा है उसी तरह उस वक़्त औरत की शर्मगाह की तरह नज़र करने से भी बचना चाहिये कि बच्चे का अंधा होने का अमकान है युंही बिल्कुल बरहना भी सोहबत ना करें वरना बच्चे के बे हया होने का अंदेशा है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 46

* हमबिस्तरी के वक़्त बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ना सुन्नत है मगर याद रहे कि सतर खोलने से पहले पढ़ें और सबसे बेहतर है कि जब कमरे में दाखिल हो तब ही बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़कर दायां क़दम अन्दर दाखिल करें अगर हमेशा ऐसा करता रहेगा तो शैतान कमरे से बाहर ही ठहर जाएगा वरना वो भी आपके साथ शरीक होगा

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 410

* आलाहज़रत फरमाते हैं कि औरत के अंदर मर्द के मुकाबले 100 गुना ज़्यादा शहवत है मगर उस पर हया को मुसल्लत कर दिया गया है तो अगर मर्द जल्दी फारिग हो जाये तो फौरन अपनी बीवी से जुदा ना हो बल्कि कुछ देर ठहरे फिर अलग हो

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 183

* जिमअ के वक़्त किसी और का तसव्वुर करना भी ज़िना है और सख्त गुनाह और जिमअ के लिए कोई वक़्त मुकर्रर नहीं हां बस इतना ख्याल रहे कि नमाज़ ना फौत होने पाये क्योंकि बीवी से भी नमाज़ रोज़ा एहराम एतेकाफ हैज़ व निफास और नमाज़ के ऐसे वक़्त में सोहबत करना कि नमाज़ का वक़्त निकल जाये हराम है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 584

* मर्द का अपनी औरत की छाती को मुंह लगाना जायज़ है मगर इस तरह कि दूध हलक़ से नीचे ना उतरे ये हराम है लेकिन ऐसा हो भी गया तो तौबा करे मगर इससे निकाह पर कोई फर्क नहीं आता

📕 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 58
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द ,सफह 568

* मर्द व औरत को एक दूसरे का सतर देखना या छूना जायज़ है मगर हुक्म यही है कि मक़ामे मख़सूस की तरफ ना देखा जाये कि इससे निस्यान का मर्ज़ होता है और निगाह भी कमज़ोर हो जाती है


📕 रद्दुल मुख्तार,जिल्द 5,सफह 256

* मर्द नीचे हो और औरत ऊपर,ये तरीका हरगिज़ सही नहीं है इससे औरत के बांझ हो जाने का खतरा है

📕 मुजरबाते सुयूती,सफह 41

* फरागत के बाद मर्द व औरत को अलग अलग कपड़े से अपना सतर साफ करना चाहिए क्योंकि दोनों का एक ही कपड़ा इस्तेमाल करना नफरत और जुदायगी का सबब है

📕 कीमियाये सआदत,सफह  266

* एहतेलाम होने के बाद या दूसरी मर्तबा सोहबत करना चाहता है तब भी सतर धोकर वुज़ु कर लेना बेहतर है वरना होने वाले बच्चे को बीमारी का खतरा है

📕 क़ुवतुल क़ुलूब,जिल्द 2,सफह 489

* ज़्यादा बूढ़ी औरत से या खड़े होकर सोहबत करने से जिस्म बहुल जल्द कमज़ोर हो जाता है उसी तरह भरे पेट पर सोहबत करना भी सख्त नुकसान देह है

📕 बिस्तानुल आरेफीन,सफह 139

* जिमअ के बाद औरत को दाईं करवट पर लेटने का हुक्म दें कि अगर नुत्फा क़रार पा गया तो इन शा अल्लाह लड़का ही होगा

📕 मुजरबाते सुयूती,सफह 42

* जिमअ के फौरन बाद पानी पीना या नहाना सेहत के लिए नुकसान देह है हां सतर धो लेना और दोनों का पेशाब कर लेना सेहत के लिए फायदे मंद है

📕 बिस्तानुल आरेफीन,सफह 138

* तबीब कहते हैं कि हफ्ते में दो बार से ज़्यादा सोहबत करना हलाकत का बाईस है,शेर के बारे में आता है कि वो अपनी मादा से साल में एक मर्तबा ही जिमअ करता है और उसके बाद उस पर इतनी कमजोरी लाहिक़ हो जाती है अगले 48 घंटो तक वो चलने फिरने के काबिल भी नहीं रहता और 48 घंटो के बाद जब वो उठता है तब भी लड़खड़ाता है

📕 मुजरबाते सुयूती,सफह 41

* औरत से हैज़ की हालत में सोहबत करना जायज नहीं अगर चे शादी की पहली रात ही क्यों ना हो और अगर इसको जायज़ जाने जब तो काफिर हो जायेगा युंही उसके पीछे के मक़ाम में सोहबत करना भी सख्त हराम है

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 78

* मगर हैज़ की हालत में वो अछूत भी नहीं हो जाती जैसा कि बहुत जगह रिवाज है कि फातिहा वगैरह का खाना भी नहीं बनाने देते ये जिहालत है,बल्कि उसके साथ सोने में भी हर्ज नहीं जबकि शहवत का खतरा ना हो वरना अलग सोये

📕 फतावा मुस्तफविया,जिल्द 3,सफह 13

* क़यामत के दिन सबसे बदतर मर्द व औरत वो होंगे जो अपनी राज़ की बातें अपने दोस्तों को सुनाते हैं

📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 464

* औरत से जुदा रहने की मुद्दत 4 महीना है इससे ज़्यादा दूर रहना मना है

📕 तारीखुल खुलफा,सफह 97

* आलाहज़रत फरमाते हैं कि हमल ठहरने से रोकने के लिए दवा या कोई और तरीका इस्तेमाल करना या हमल ठहरने के बाद उसमें रूह फूकने की मुद्दत 120 दिन है तो अगर किसी उज़्रे शरई मसलन बच्चा अभी छोटा है और ये दूसरा बच्चा नहीं चाहता तो हमल साकित करना जायज़ है मगर रूह पड़ने के बाद हमल गिराना हराम और गोया क़त्ल है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 524

* अगर तोगरे में क़ुरान की आयत लिखी है तो जब तक उस पर कोई कपड़ा ना डाला जाए उस कमरे में सोहबत करना या बरहना होना बे अदबी है हां क़ुरान अगर जुज़दान में है तो हर्ज नहीं युंही किबला रु होना भी मना है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 522

* जो बच्चा समझदार हो उसके सामने सोहबत करना मकरूह है

📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 14

* किसी की दो बीवियां हैं अगर चे उसका किसी से पर्दा नहीं मगर औरत का औरत से पर्दा है तो एक के सामने दूसरे से सोहबत करना जायज़ नहीं

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह २०७

याद रहे पहली रात खून आना कोई ज़ुरूरी नही है...जो जाहिल इस तरह की बात सोचते है वो कमिलमि है क्योंकि आज के दौर में जिस झिल्ली के फटने से वो खून ऑर्ट की शर्मगाह से आता है वो बचपन में खेल,कूद,साइकल चलाने हटता के और भी चीज़ों से फट सकती है...लिहाज़ा अक़्ल से काम लिया कीजिये....