Friday 21 April 2017

तलाक़ का शरई हुक्म


          ● तलाक़ का शरई हुक्म ●


निकाह से जहां दो अजनबी एक होते हैं वहीं उस रिश्ते को तोड़ देने का नाम तलाक़ है,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

* तमाम हलाल चीज़ों में अल्लाह को सबसे ज़्यादा ना पसन्द तलाक़ है

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 296

हालांकि तलाक़ एक जायज़ चीज़ है मगर इसका इस्तेमाल खास दुश्वारियों और परेशानियों में करने का ही हुक्म है ये नहीं कि बात बात में शौहर अपनी बीवी को तलाक़ देता बैठा रहे,क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि

* फिर अगर वो तुम्हे पसंद ना आये तो क़रीब है कि कोई चीज़ तुम्हे ना पसंद हो और अल्लाह उसमे बहुत भलाई रखे

📕 पारा 4,सूरह निसा,आयत 19

मतलब ये कि कोई इंसान सिर्फ ऐबों का मुजस्समा तो नहीं हो सकता अगर उसमे कुछ बुराई होगी तो अच्छाई भी ज़रूर होगी तो अगर औरत में ऐसी कोई खराबी नज़र भी आती है तो शौहर को उसकी खूबियों पर भी नज़र करनी चाहिए,लेकिन अगर फिर भी तलाक़ की नौबत आ ही जाए तो एक ही तलाक़ देनी चाहिए ताकि सुलह समझौते का रास्ता खुला रहे,जैसा कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि

* तलाक़ दो बार तक है फिर भलाई के साथ रोक लेना है या भलाई के साथ छोड़ देना फिर अगर शौहर ने उसे तलाक़ (तीसरी) दी तो अब वो औरत उसे हलाल ना होगी यहां तक कि दूसरे शौहर के पास रहे

📕 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 229,230

तलाक़ की 3 किस्में हैं रजई,बाइन,मुगलज़ा

रजई - वो तलाक़ है कि औरत फिलहाल निकाह से नहीं निकलती,हां इद्दत गुज़र जाए और वापस ना लाये तो बाहर हो जाएगी शौहर को इद्दत के अंदर बग़ैर निकाह के उसे लौटाने का हक़ रहता है

बाइन - वो तलाक़ है कि औरत निकाह से तो फौरन निकल जाती है मगर औरत की मर्ज़ी से शौहर फिर उसे निकाह में ला सकता है इद्दत के अंदर हो या इद्दत के बाद

मुगलज़ा - वो तलाक़ है कि औरत निकाह से फौरन बाहर हो गयी अब बग़ैर हलाला के उसके लिए हलाल ना होगी,मुगलज़ा तीन तलाक़ों से होता है अब ये तीन चाहे बरसों के फासले पर दी हो मसलन एक 20 साल पहले दी फिर कुछ दिन बाद एक और देदी अब जब भी तीसरी बार कहेगा तो मुगलज़ा हो जायेगी,या फिर इकठ्ठा दी यानि युं कहा कि मैंने तुझको तलाक़ दी तलाक़ दी तलाक़ दी या युं कहा कि मैंने तुझको 3 तलाक़ दी तो हर सूरत में मुगलज़ा वाक़ेय हो जायेगी,क्योंकि रब ने तीनो तलाक़ों का हुक़्म बयान किया मगर कोई शर्त नहीं लगाई कि एक ही मजलिस में हो या अलग अलग,और इस हुक्म की तामील हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने मुबारक से हो रहा है जैसा कि सहाबियाये रसूल हज़रत फातिमा बिन्त क़ैस रज़ियल्लाहु तआला अन्हा अपना तलाक़ का वाक़िया बयान करती हैं कि

* मेरे शौहर (हज़रत आमिर शोअबी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु) ने मुझे यमन के लिए घर से निकलते वक़्त इकठ्ठी 3 तलाक़ दी तो अल्लाह के रसूल सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने तीनो तलाक़ नाफिज़ फरमा दी

📕 इब्ने माजा,सफह 147

इसी तरह 1 साथ 3 तलाक़ों का कई मुआमला ज़मानये नब्वी में पेश आया जिस पर आपने 3 तलाक़ों का ही हुक्म दिया,और बाद के मुहद्देसीन हज़रात ने भी इसी पर अमल किया जिसके लिए काफी हवाले मौजूद हैं मसलन

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 300
📕 मूता इमाम मालिक,सफह 284
📕 ताहावी,जिल्द 2,सफह 33
📕 फत्हुल क़दीर,जिल्द 3,सफह 469
📕 अहकामुल क़ुरान,जिल्द 1,सफह 388

हां ये अलग बात है की इकट्ठी 3 तलाक़ देना गुनाह है और हालते हैज़ व हालते हमल में तलाक़ देना नाजायज़ है इस पर हुज़ूर ने नाराज़गी का इज़हार भी किया मगर फरमाते हैं कि अगर हालते हैज़ में भी 3 तलाक़ दी तो तीनो नाफिज़ हो जायेगी लेकिन अगर तीन नहीं दी तो रजअत यानि लौटाये दोबारा उसको निकाह में लाना वाजिब है

📕 दारक़ुतनी,जिल्द 2,सफह 433
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5,सफह 604

* औरत नमाज़ नहीं पढ़ती,शौहर के लिए बनाव सिंगार नहीं करती,शौहर को या घर वालों को तंग करती है इन सूरतों में तलाक़ दे सकते हैं युंही अगर शौहर जिमअ पर क़ादिर नहीं या कोई फरायज़ से औरत को रोकता है तो औरत तलाक़ ले सकती है




📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 8,सफह 5

हलाला - अब अगर मुगलज़ा हो गयी तो बग़ैर हलाला के औरत शौहर पर हलाल ना होगी,मतलब ये कि चुंकि तलाक़ दी है तो तलाक़ की इद्दत गुज़ारेगी जो कि 3 हैज़ है अब ये हैज़ चाहे तीन महीनो में आये या फिर तीन साल में,3 हैज़ आ गए इद्दत पूरी हो गयी या फिर हमल से थी तो हैज़ तो आएगा नहीं तो अब बच्चे की विलादत ही इद्दत है अब अगर बच्चा तलाक़ देने के 1 दिन बाद ही हो जाए इद्दत पूरी हो गयी अब वो दूसरे से निकाह करेगी उससे सोहबत होगी फिर वो तलाक़ देगा तो अब उसकी इद्दत गुज़ारेगी यानि फिर से 3 हैज़,अब पहले शौहर से निकाह कर सकती है,अगर चे देखने में ये कानून सख्त है मगर इससे भी ज़्यादा सख़्त ये है कि एक मर्द सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है मगर अपनी बीवी को ग़ैर के बिस्तर में नहीं बर्दाश्त कर सकता,तो ये सज़ा अस्ल में उस मर्द के लिए है कि जिसने शरीयत को मज़ाक बनाया कि अगर चाहता तो एक तलाक़ देकर फिर से रुजू कर सकता था मगर नहीं अपनी मर्दानगी में या अपनी जिहालत में 3 क्या कइयों तलाक़ दे बैठा तो अब शरीयत से खेलने का अंजाम भी बर्दाश्त करे,ये भी याद रहे कि दूसरे शौहर से सिर्फ निकाह करके तलाक़ ले लेने से वो निकाह नहीं होगा बल्कि एक बार सोहबत करनी फर्ज़ होगी,और ये भी याद रहे कि अगर बग़ैर हलाला किये शौहर ने अपनी बीवी को रखा तो जो कुछ होगा सब ज़िना खालिस होगा और बच्चे सब हरामी पैदा होंगे

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 8,सफह 126

अब जिस मसले पर क़ुरान हदीस और इज्माअ सबका मुत्तफिक़ फैसला हो उस पर कुछ जाहिलों की वजह से इन्कार नहीं किया जा सकता और क़यामत तक उसमे फेर बदल नामुमकिन है,चाहे कुछ नाम निहाद मुसलमान हों या फिर काफिरो मुर्तद लोग जो भी इसमें फेर बदल की कोशिश करेगा वो ज़िल्लतों रुस्वाई के गढ़े में समा जाएगा,अल्लाह ने जो क़ानून हमारे लिए बनाया है उसमें बिला शुबह भलाई ही भलाई है,जो जाहिल औरतें आज modern बनकर आज़ादी का हक़ मांग रहीं हैं वो जाकर ग़ैर मुस्लिमों की औरतों का हाल देखें फिर फैसला करें

! देखें कि गैरों के मुक़ाबले इस्लाम में तलाक़ का % कितना है
! देखें कि ग़ैरों के मुकाबले इस्लाम में rape का % कितना है
! देखें कि ग़ैरों के मुकाबले इस्लाम में कितनी बच्चियों को पेट मे मारा जाता है
! देखें कि ग़ैरों के मुकाबले इस्लाम में कितनी बहुओं को जिंदा जलाया जाता है
! देखें कि ग़ैरों के यहां कितना हक़ औरतों को हासिल है और इस्लाम में कितना

*लिहाज़ा ऐसी बे ग़ैरत औरतों और जाहिल मर्दों और ऐसी सरकार की कोई भी बात या क़ानून जो कि इस्लाम के खिलाफ होगा हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ हमें मंज़ूर नहीं*

*तलाक़ की तफ्सीली मालूमात के लिए बहारे शरीयत हिस्सा 8 का मुताला किया जाए*

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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in