Tuesday 25 April 2017

हिस्सा-2 मेराज शरीफ

हिस्सा-2  मेराज शरीफ



*हुज़ूर ने खुदा का दीदार किया* 

* आंख ना किसी तरफ फिरी और ना हद से बढ़ी 

📕 पारा 27,सूरह नज्म,आयत 17

मतलब ये कि शबे मेराज हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने रब को अपने सर की आंखों से देखा,उसी देखने को मौला तआला फरमाता है कि ना तो देखने में ही आंख फेरी और ना ही बेहोश हुए,जैसा कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम रब के जलवों की ताब ना ला सके और बेहोश हो गए,और इस देखने की तफसील खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इस तरह इरशाद फरमाते हैं कि

* इज़्ज़त वाला जब्बार यहां तक क़रीब हुआ कि 2 कमानों या उससे भी कम फासला रह गया 

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 1120

* चारों खुल्फा यानि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ हज़रत उमर फारूक़ हज़रत उस्मान गनी हज़रत मौला अली व अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास अब्दुल्लाह बिन हारिश अबि बिन कअब अबू ज़र गफ्फारी माज़ बिन जबल अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद अबू हुरैरह अनस बिन मालिक और भी बहुत से सहाबा का यही मज़हब है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सर की आंखों से रब तआला को देखा 

📕 शिफा शरीफ,जिल्द 1,सफह 119

* इसके अलावा भी दीगर फुक़्हा व अइम्मा का यही मज़हब रहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा का दीदार किया 

📕 अलमुस्तदरक,जिल्द 1,सफह 65
📕 फत्हुल बारी,जिल्द 7,सफह 174
📕 खसाइसे कुबरा,जिल्द 1,सफह 161
📕 ज़रक़ानी,जिल्द 6,सफह 118

अब जो लोग ये ऐतराज़ करते हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा को नहीं देखा बल्कि जिब्रीले अमीन को देखा तो तो मैं उनसे कहना चाहूंगा कि क्या मेरे आक़ा जिब्रील को देखने के लिए सिदरह तशरीफ ले गए थे,अरे जो खुद 24000 मर्तबा मेरे आक़ा की बारगाह में आये हों उन्हें देखना हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए कोई कमाल नहीं,बल्कि वो तो हुज़ूर के ही गुलाम हैं खुद हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि 

* मेरे दो वज़ीर आसमान में हैं जिब्राईल और मीकाईल 

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 208

वज़ीर किसके होते हैं ज़ाहिर सी बात है कि बादशाह के होते हैं,अगर हुज़ूर फरमाते हैं कि ये दोनों मेरे वज़ीर हैं तो मतलब बादशाह आप खुद हुए,तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए ये कोई कमाल की बात नहीं कि जिब्रील को देख लिया बल्कि कमाल यही है कि खुदा को देखा,फिर मोअतरिज़ का उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा का ये क़ौल पेश करना कि "जो ये कहे कि हुज़ूर ने खुदा को देखा तो वो झूठा है" ये क़ौल आपके इज्तेहाद पर था मगर यहां आपके इज्तेहाद से बड़ा हुज़ूर का क़ौल मौजूद है कि खुद आप फरमाते हैं

* मैंने अपने रब को अहसन सूरत में देखा 

📕 मिश्कत,सफह 69

और मुनकिर का क़ुरान की ये दलील लाना कि खुदा को कोई आंख नहीं देख सकती तो इसका जवाब ये है कि इस दुनिया में खुदा को कोई आंख नहीं देख सकती वरना हदीसो से साबित है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि 

* कल तुम अपने रब को बे हिजाब देखोगे

📕 बुखारी,किताबुत तौहीद,हदीस 7443
📕 इब्ने माजा,हदीस 185

तो जब मैदाने महशर में तमाम मुसलमान खुदा का दीदार करेंगे तो हुज़ूर के लिए क्या मुश्किल रही,तो अब कहने वाला कह सकता है कि वो दुनिया दूसरी होगी जहां खुदा का दीदार होगा तो मोअतरिज़ का ऐतराज़ यहीं से खत्म हो गया और सवाल का जवाब खुद बा खुद मिल गया कि जहां हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा का दीदार किया था वो दुनिया भी दूसरी दुनिया थी ये दुनिया नहीं थी,एक आखिरी बात ये कि जब भी कोई किसी को अपने यहां दावत पर बुलाए और मेहमान के सामने मेज़बान खुद ना आये तो इसे तौहीन समझा जाता है,उसी तरह ये बात खुदा की शान के बईद है कि वो खुद ही हुज़ूर को बुलाये उनके लिए जन्नत सजाये जहन्नम को बुझा दे हूरो मलक का मेला लगा ले और खुद ही उनके सामने ना आये और अपना दीदार ना कराये ये ना मानने वाली बात है

जारी रहेगा...........
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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in