Tuesday 23 May 2017

अहद नामा


अहद नामा

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसललम इरशाद फरमाते हैं कि जो कोई सारी उम्र में एक बार दिल की गहराईयों से अहद नामा पढ़ेगा तो खुदा चाहेगा तो ईमान से रुखसत होगा*

*इंसान के बदन में 3000 बीमारियां हैं जिनमे से 1000 का ही इलाज हकीम जानते हैं 2000 ला-इलाज है जो कोई अहद नामा अपने पास रखे मौला उसे 3000 बीमारियों से महफूज़ रखेगा*

*किसी बीमार को चीनी की प्लेट पर लिखकर धोकर पिलायें इन शा अल्लाह मरीज़ शिफायाब होगा*

*जो कोई मुश्क या ज़ाफरान से लिखकर बारिश के पानी से धोकर 7 दिन पिये तो उसकी अक़्ल निहायत तेज़ होगी कि जो कुछ सुने हरगिज़ ना भूलेगा*

*खातूने जन्नत हज़रते फातिमा ज़ुहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि जो कोई अहद नामा पढ़े और फिर इसके वसीले से दुआ करे इन शा अल्लाह उसकी हाजत पूरी होगी*

*जो कोई 41 बार पढ़कर अपने मुर्दे को बख्शे तो क़ब्र उसकी मशरिक से लेकर मग़रिब तक कुशादा हो जाए और मुन्कर नकीर के सवालात आसान होंगे*

*क़यामत के दिन अहद नामा एक हसीन सूरत में ज़ाहिर होकर अपने पढ़ने वाले की बख्शिश करवायेगा*

📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा,हिस्सा 2,सफह 258

अहद नामा शरीफ नीचे दिए गए लिंक को
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* Huzoor sallallaho taala alaihi wasallam irshad farmate hain ki jo koi saari umr me ek baar dil ki gahrayion se ahad naama padhega khuda chahega to imaan se rukhsat hoga

* Insaan ke badan me 3000 bimariyan hain jinme se 1000 ka hi ilaaj doctor jaante hain 2000 marz la ilaaj hai jo koi ahad naama apne paas rakhe to maula use 3000 bimariyon se mahfooz rakhega

* Kisi mareez ko cheni ki plate par likhkar dhokar pilayen in sha ALLAH mareez shifayab hoga

* Jo koi mushk ya zaafran se likhkar baarish ke paani se dhokar piye to uski aql nihayat tez hogi ki jo kuchh sunega wo yaad rahega

* Khatune jannat hazrate fatima zuhra raziyallahu taala anha farmati hain ki jo koi ahad naam padhe phir iske waseele se dua kare in sha ALLAH uski haajat poori hogi

* Jo koi 41 baar padhkar murde ko bakhshe to qabr uski mashrik se magrib tak kushada hogi munkar nakeer ke sawal aasan honge

* Qayamat ke din ahad naama ek haseen surat me zaahir hokar apne padhne waale ki bakhshish karayega

📕 Shamye shabistane raza,h 2,s 258

*Ahad naama sharif niche diye gaye link ko open karke download kar lein*

https://s-media-cache-ak0.pinimg.com/236x/ac/d6/46/acd646b1808c4155c16fc68ee5291447.jpg?_e_pi_=7%2CPAGE_ID10%2C7308894426


Monday 22 May 2017

बिरादरी बदलना


              बिरादरी बदलना

* हज़रते सअद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो शख्स जानबूझकर किसी दूसरे को अपना बाप बताये उसपर जन्नत हराम है

📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 2,सफह 1001
📕 मुस्लिम शरीफ़,जिल्द 1,सफह 57
📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 6,सफह 195

* जो किसी दूसरे को अपना बाप बताये उसपर अल्लाह उसके फ़रिश्ते और तमाम इन्सानों की लानत है

📕 मुस्लिम शरीफ़,जिल्द 1,सफह 465

अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन करता है जो अपने बाप को छोड़कर किसी दूसरे को अपना बाप कहे,मगर हक़ीक़त तो ये है कि आजकल ऐसा बहुत सारे लोग करते हैं और इस पर बहुत फख्र महसूस करते हैं,चलिए देखतें हैं कैसे

वैसे तो हिंदुस्तान में सय्यद,पठान,शैख़ और मुग़लों को छोड़कर मुसलमानों की ज़्यादातर जितनी भी cast है सब यहीं के काफ़िरों से converted है,जिनका नाम और वजूद कुछ नहीं है,मगर चुंकि नाम से मंसूबियत एक क़दीम ज़माने से चली आ रही है तो यही अब हर क़ौम की पहचान बन गयी है मसलन अंसारी,मंसूरी,क़ुरैशी,सिद्दिक़ी,राइन,रहमानी,सलमानी व दीग़र जो भी हों,मगर आजकल हमारे यहां बिरादरी बदलने की नाजायज़ नुहूसत बहुत आम हो चली है,किसी backword cast का कोई शख्स किसी मोहल्ले या शहर में रहता है तो कुछ है और जहां कोई नई जगह settle हुआ तो फ़ौरन अपनी cast बदल ली मसलन अंसारी सय्यद हो गए,मंसूरी खान हो गए,सलमानी सिद्दिक़ी हो गए,और ये नहीं सोचा कि ऐसा करके हम क्या कर रहे हैं,मैं आपसे पूछता हूं आप बताइए कि अगर मां सय्यद है और बाप मंसूरी तो बच्चे की cast क्या होगी,ज़ाहिर सी बात है कि बच्चा सय्यद तो हो नहीं सकता क्योंकि नस्ल हमेशा बाप से चलती है,अब अगर कोई मंसूरी अपने आपको सय्यद लिखने लगे तो इसका मतलब क्या होगा जानते हैं,माज़ अल्लाह सुम्मा माज़ अल्लाह ये कि उसने अपनी ही मां पर ज़िना का इलज़ाम लगाया कि उसकी मां ने किसी सय्यद से ज़िना कराया जिससे ये पैदा हुआ तब ही तो अपने आपको सय्यद लिख रहा है,यही उस हदीसे पाक का मफ़हूम है कि लोग जान बूझकर अपनी वलदियत ग़ैर की तरफ़ मंसूब करेंगे,और ऐसा क्यों किया जाता है,सिर्फ और सिर्फ थोड़ी सी इज़्ज़त पाने के लिए,कि छोटी cast वाले होकर जो ज़िल्लत उठानी पड़ रही थी तो अपने आपको बड़ी cast वाला कहलाना शुरू कर दिया,मेरे अज़ीज़ों अल्लाह के यहां जात बिरादरी नहीं देखी जाती उसके यहां सिर्फ और सिर्फ नेक अमल चलता है जैसा कि खुद इरशाद फरमाता है कि

* बेशक अल्लाह के यहां तुममे ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है जो ज़्यादा परहेज़गार है

📕 पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 13

बताइये रब तो ये कह रहा है और इंसान है कि अपना बाप बदलकर इज़्ज़त पाने की कोशिश में लगा है,लिहाज़ा अगर कोई ऐसा कर रहा है तो फ़ौरन तौबा करे और जो उसकी हक़ीक़त है वो बताये,अलहम्दो लिल्लाह मैं खुद मंसूरी हूं और यही बताता हूं,और जो कोई मंसूरी नहीं समझ पाता उसे मैं "बेहना" कहकर अपना तार्रुफ़ करवाता हूं और मुझे इस बात पर कोई शर्म महसूस नहीं होती,क्योंकि अल्लाह ने जिसके लिए जो बेहतर समझा उसे वो बनाकर पैदा फरमा दिया,तो अब रब के काम पर ऐतराज़ क्यों जो उसने बना दिया उसे खुशी खुशी तस्लीम कीजिये,और रही बात इज़्ज़त की तो दुनिया वाले नहीं समझते तो ना समझें मगर कम से कम अपने आमाल सुधार कर आख़िरत तो अच्छी बना लीजिए कि वहां तो इज़्ज़त मिले,याद रखिए जिसके अमल ख़राब होंगे वो किसी तरह कामयाब नहीं हो सकता जैसा कि हदीसे पाक में आता है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

* जिसका अमल उसे पीछे ढ़केल दे वो नस्ब से आगे नहीं बढ़ सकता

📕 📕 मुस्लिम शरीफ़,जिल्द 2,सफह 345

लिहाज़ा बिरादरी बदलकर इज़्ज़त पाने की हवस छोड़ दीजिए,अब आईये इस पर कि क्या एक औरत शादी के बाद अपने नाम के साथ शौहर का नाम जोड़ सकती है कि नहीं,तो सबसे बेहतर तो यही है कि लड़की सिर्फ अपना नाम लिखे शादी से पहले भी और बाद को भी,लेकिन अगर कोई लड़की अपना नाम बदलती भी है तो इसमें 2 बातें हैं,मसलन औरत का नाम सालिहा खान है बाप का नाम अज़मत खान है लड़की अपना नाम सालिहा अज़मत लिखती है,अब उसकी शादी हुई नसीम सिद्दिक़ी के साथ,तो अब वो अगर अपना नाम सालिहा नसीम लिखती है तो कोई हर्ज नहीं क्योंकि ये नस्ब बदलना नहीं हुआ बल्कि शौहर से मंसूबियत हुई,लेकिन अगर सालिहा नसीम की जगह सालिहा सिद्दिक़ी लिखती है तो ये नाजायज़  है कि शादी करने से उसका नस्ब नहीं बदला,लिहाज़ा नाम वल्दियत के साथ लिखने का जो रवाज हिंदुस्तान में नहीं है उसे ना ही अपनाया जाए तो ज़्यादा बेहतर है,यहां जो कुछ भी लिखा है सय्यद,खान,अंसारी,मंसूरी वो सिर्फ मिसाल के तहत समझाने की गर्ज़ से लिखा है कोई ये ना समझे कि मैने किसी क़ौम को बुरा कहा है,फिर भी अगर किसी को पर्सनली फ़ील हुआ तो मै माफ़ी चाहता हूं

Friday 19 May 2017

Malumat


****** Malumat ******  

* महफिल को हंसाना या यार दोस्तों के साथ हंसी मज़ाक करना जायज़ है मगर झूट या बेहूदगी नहीं होनी चाहिए

* बाज़ लोग याददाश्त के लिए कमरबंद या रूमाल वग़ैरह पर गिरह लगा देते हैं ये जायज़ है और इसी नियत से उंगलियों पर डोरा बांधना भी जायज़ है हां बिला वजह बांधना मकरूह है

* ऐसा बिछौना या तकिया या दस्तर ख्वान जिस पर कुछ लिखा हो इस्तेमाल करना नाजायज़ है

* मुशरेकीन के बर्तनों में कुछ भी खाना पीना मकरूह है जब तक कि उसे धो ना लें ये तब है जबकि उसका नापाक होना मालूम ना हो वरना अगर यक़ीनी है तो ऐसे बर्तनों में खाना पीना हराम है

* फर्जी यानि झूठे किस्से कहानियां पढ़ना या सुनना जायज़ है

* लोगों के साथ इखलाक़,नर्मी से पेश आना मुस्तहब यानि अच्छा है मगर बदमज़हब से बात करने में इतना लिहाज़ रखें कि उसे यक़ीन रहे कि इसे मेरा मज़हब पसंद नहीं

* किराए पर मकान दिया और खुद मकान देखना चाहता है तो किरायेदार से इजाज़त लेकर जा सकता है बग़ैर इजाज़त नहीं,कि मकान इसका है मगर सुकूनत उसकी

* किसी भी जानवर या कीड़े मकोड़ों को ज़िन्दा आग में डालना मकरूह है

* अगर जान माल इज़्ज़त आबरू का खतरा है या किसी पर अपना हक़ आता है और वो नहीं देता तो ऐसी हालत में किसी को रिश्वत देता है कि मेरा हक़ वुसूल हो जाए या मैं हिफाज़त से रहूं तो ये देना जायज़ है हालांकि लेने वाले को हरगिज़ जायज़ नहीं होगा

* बेटा अपने बाप का नाम लेकर या बीवी अपने शौहर को नाम लेकर पुकारे मकरूह है

* दुनियावी तक़लीफ की वजह से मरने की आरज़ू करना मकरूह है मगर गुनाहगार होने की वजह से मरना चाहता है ऐसी आरज़ू मकरूह नहीं

* काफिर के लिए मग़फिरत की दुआ करना जायज़ नहीं हां किसी ज़िन्दा के लिए हिदायत की दुआ कर सकता है

* हर महीने की 3,13,23 या 8,18,28 को निकाह के लिए मन्हूस जानना या किसी महीने को बुरा जानना जिहालत है,इस्लाम में इसकी कोई अस्ल नहीं

* इमामा शरीफ खड़े होकर बांधना और पैजामा बैठकर पहनना है,जो इसका उल्टा करेगा वो ऐसे मर्ज़ में मुब्तेला होगा जिसकी दवा डाक्टरों के पास भी नहीं होगी यानि ला इलाज मर्ज़

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 16,सफह 132,252-259

शियाओं ने अहले बैत व मौला अली की शान में 3 लाख के करीब फर्जी हदीसे गढ़ी हैं

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 297

बैतुल मुक़द्दस की ज़मीन आसमान से सबसे ज्यादा क़रीब है क्योंकि हर जगह से ये ज़मीन 18 मील ऊंची है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 4,सफह 687

बुर्राक़ बर्क़ से बना है यानि बिजली,बर्क़ 1 सेकंड में 299337 किलोमीटर का सफर तय करती है

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 27

शराब पीते,ज़िना करते,चोरी करते जुआ खेलते या किसी भी हराम काम करते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना हराम है,और अगर जाएज़ समझे जब तो काफिर है

📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 2,सफह 286

जो रोज़ाना खाना खाने से पहले फातिहा दे ले तो कभी उस घर में रिज़्क की तंगी व बे बरकती नहीं होगी

📕 जायल हक़,जिल्द 1,सफह 253

दोज़ख में अज़ाब के 19 फरिश्ते हैं,हर 1 का क़द 100 साल की राह जितना है,उनकी 1 ज़र्ब से 7 लाख आदमी रेज़ा रेज़ा हो जाते हैं

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 44

पहले खाना नहीं सड़ता था,बनी इसराईल को हुक्म था कि 'मन्न व सलवा' दूसरे दिन के लिए बचा कर ना रखें पर वो नहीं माने,उनकी नाफरमानी की वजह से खाना खराब होना शुरू हुआ

📕 रूहुल बयान,जिल्द 1,सफह 97

Monday 15 May 2017

हुक़ूक़े वालिदैन


                              हुक़ूक़े वालिदैन



                           
*कल मदर्स डे गुज़रा बड़े अच्छे अच्छे मैसेज पढ़ने को मिले,बड़ी अच्छी बात है कि मां की अज़मत को बयान करने के लिए एक दिन मुक़र्रर किया गया मगर उससे भी अच्छी बात ये होती कि हम रोज़ाना ही मां की अज़मत का ख्याल रखते,मां-बाप की अज़मत के लिए एक दिन मुक़र्रर करना और उस दिन उनके साथ सेल्फी खींचकर पोस्ट करने भर से ही हम फरमाबर्दार नहीं बन जायेंगे,बल्कि हर दिन हर पल हर घड़ी हमें मां-बाप का फरमाबर्दार बनना पड़ेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो यक़ीन जानिये कि फिर हमारा जहन्नम मे जाना तय है अगर मेरी बात पर भरोसा ना हो तो ये हदीस पढ़िये*

* सहाबिये रसूल हज़रत अलक़मा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का जब नज़अ का वक़्त आया तो हुज़ूर ने हज़रत अम्मार,हज़रत सुहैब व हज़रत बिलाल रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन को उनके पास कल्मे की तलक़ीन को भेजा,ये हज़रत गए और खूब कोशिश की मगर हज़रत अलक़मा की ज़बान से कल्मा अदा ना हो पाया,इन्होने आकर हुज़ूर ﷺ को खबर दी आपने फरमाया कि उसके वालिदैन में से जो ज़िंदा हो उसे लेकर आओ,उनकी मां जो जिंदा थीं उन्हें बारगाहे नबवी में हाज़िर किया गया,तो नबी अलैहिस्सलाम ने उनसे पूछा कि मुझे सच बता कि तेरे बेटे की क्या कैफियत थी,इस पर वो बोलीं कि मेरा बेटा बहुत नमाज़ें पढता था रोज़े भी खूब रखता था और सदक़ा खैरात भी किया करता था मगर अपनी बीवी को मुझ पर तरजीह देता था और मेरी नाफरमानी करता था,हुज़ूर ने फरमाया यही सबब है कि तेरे बेटे की ज़बान से कल्मा नहीं निकलता तो तू उसे माफ करदे,इस पर वो बोलीं कि उसने मुझे बहुत दुख पहुंचाया है मैं उसे माफ नहीं करुंगी,ये सुनकर हुज़ूर ने गज़ब का इज़हार फरमाते हुए हज़रत बिलाल को हुक्म दिया कि लकड़ियां इकट्ठी करो हम उसमे अलक़मा को ज़िन्दा जलायेंगे,जब उस औरत ने ये सुना तो ज़ारो क़तार रोने लगी कि हुज़ूर आप ऐसा गज़ब ना करें तो आक़ा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अगर तूने उसे माफ ना किया तो वो इससे 70 गुना ज़्यादा तेज़ आग में जलने वाला है,ये सुनकर उस औरत ने सबको गवाह बनाकर अपने बेटे को माफ कर दिया उसके माफ करते ही हज़रत अलक़मा की ज़बान से कल्मा निकला और रूह कब्ज़ हो गई,हुज़ूर ﷺ ने सहाबा के साथ कफन दफन का पूरा इंतज़ाम किया और बाद दफन आप वही क़ब्र पर ये खुतबा देते हैं कि ऐ मुहाजिरीन और अन्सार के गिरोह जो शख्स अपनी बीवी को मां पर फज़ीलत देगा उस पर अल्लाह उसके फरिश्ते और तमाम लोगों की लाअनत होगी और अल्लाह उसका कोई भी फर्ज़ व नफ्ल क़ुबूल ना फरमायेगा यहां तक कि वो तौबा करे और अपने वालिदैन से हुस्ने सुलूक करे

📕 किताबुल कबायेर,सफह 76

*ये मामला सहाबी के साथ पेश आया सोचिये जब मां की नाफरमानी की बदौलत उनका ये हश्र हुआ तो हम और आप किस गिनती में हैं,लिहाज़ा अगर दुनिया से ईमान की हालत में जाना चाहते हों तो अपने मां-बाप को राज़ी रखें,यहां पर एक मसला भी खूब अच्छी तरह से समझ लीजिये,सरकारे आलाहज़रत फरमाते हैं कि*

* मां-बाप अगर औरत को तलाक़ देने का हुक्म देते हैं और तलाक़ ना देने पर वो अपनी औलाद से नाराज़ हैं तो ऐसी सूरत में मर्द का अपनी बीवी को तलाक़ देना वाजिब है अगर चे लड़की की कोई गलती ना हो

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5,सफह 603

*ये है मां-बाप का हुक्म और उनका मर्तबा,मां-बाप का हक़ इतना बड़ा है कि मौला तआला खुद अपने हक़ के साथ उनका हक़ अदा करने का हुक्म फरमाता है,पढ़िये*

* हक़ मान मेरा और अपने मां बाप का

📕 पारा 21,सूरह लुक़मान,आयत 14

* हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि क्या मैं तुम्हे सबसे बड़े गुनाह की खबर ना दूं ये कि अल्लाह का शरीक ठहराना और मां बाप की नाफरमानी

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 884
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 64

*मां की अज़मत पर हुज़ूर ﷺ का क़ौल पूरी दुनियाये इस्लाम में बल्कि सारे मज़हब में मशहूर है आप फरमाते हैं कि*

* जन्नत मां के क़दमों के नीचे है

📕 अलइतहाफ,जिल्द 2,सफह 322

*बाप की शान बयान करते हुए रहमते आलम ﷺ इरशाद फरमाते हैं कि*

* बाप जन्नत का दरवाज़ा है अब तू चाहे तो इसकी हिफाज़त कर और तू चाहे तो हलाक कर दे

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 12


और तुम्हारे रब ने हुक्म फरमाया कि उस के सिवा किसी को ना पूजो और मां बाप के साथ अच्छा सुलूक करो अगर तेरे सामने उनमे से एक या दोनों बूढापे को पहुंच जायें तो उनसे *हूं* तक ना कहना और उन्हें ना झिड़कना और उनसे ताज़ीम की बात कहना.और उनके लिए ताज़ीम का बाज़ू बिछा नर्म दिली से,और अर्ज़ कर कि ऐ मौला तू उन दोनों पर रहम कर जैसा उन दोनों ने मुझे बचपन में पाला

📕 पारा 15,सूरह बनी इस्राईल,आयत 23-24

*ग़ौर कीजिये कि जिन्हे रब 'हूं' करने तक को मना कर रहा है हालांकि 'हूं' तो कोई तहज़ीब से बाहर का लफ्ज़ भी नहीं है मगर आज का मुसलमान माज़ अल्लाह अपने वालिदैन को बुरा कहता है गालियां देता है कुछ कमज़र्फ तो हाथ तक उठाते हैं,सोचिये जिनका ज़िक्र वो अपने साथ बयान कर रहा है सुब्हान अल्लाह उनकी फज़ीलत का क्या कहना होगा*

* हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर ﷺ ने फरमाया कि जो नेक औलाद अपने वालिदैन को मुहब्बत भरी नज़र से देखेगा तो उसे 1 हज मक़बूल का सवाब मिलेगा,तो लोगों ने अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह ﷺ अगर कोई 100 मर्तबा देखे तो तो हुज़ूर फरमाते हैं कि अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह बहुत पाक है (यानि बेशक अल्लाह के खज़ाने में कोई कमी नहीं है उसको 100 हज का सवाब अता करेगा)

📕 जवाहिरुल हदीस,सफह 62

*इसकी वज़ाहत करके बात खत्म करता हूं,बहुत सारे ऐसे अमल आप जानते होंगे मसलन 3 मर्तबा सूरह इखलास पढ़ें तो 1 क़ुरान का सवाब मिलेगा तो बेशक मिलेगा,मगर पूरा क़ुरान पढ़ना और सिर्फ 3 मर्तबा सूरह इखलास पढ़ लेना हरगिज़ बराबर नहीं,इसको युं समझिए कि जैसे बादशाह ने किसी जंग में फतह होने पर अपने वज़ीर को किसी सूबे की जागीर दे दी और कभी किसी शायर का कलाम पसंद आ गया तो उसे भी खुश होकर किसी सूबे की जागीर सौंप दी,हक़ीक़त में दोनों इनआम बराबर है मगर क्या वज़ीर और शायर भी बराबर हो गये,हरगिज़ नहीं,युंही अगर चे मां-बाप को मुहब्बत से देखने पर 1 हज का सवाब मिल रहा है मगर हज्जे बैतुल्लाह करने वाले का जो अज़ीम मर्तबा खुदा के यहां है उसका हज़ारवां हिस्सा भी वालिदैन को मुहब्बत से देखने वाले का नहीं है,ये अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फज़्लो करम है कि एक छोटे से अमल पर हमको बड़ा सवाब अता कर रहा है,इसका कोई ये मतलब हरगिज़ ना निकाले कि जब हज का सवाब बगैर रुपया खर्च करे मिल रहा है तो इतना रुपया खर्च करने और इतनी मशक़्क़त झेलने की क्या ज़रूरत है,क्या 1 किलो सोना और 1 किलो लोहा बराबर हैं,अगर चे वो वज़न में बराबर हैं मगर कीमत में ज़मीन आसमान का फर्क़ है,बहरहाल वालिदैन को मोहब्बत की नज़र से देखना हर हैसियत से हज्जे काबा के बराबर नहीं मगर यही क्या कम है कि अल्लाह हमारे मां-बाप के सदक़े में हमें हज का सवाब दे रहा है ये वालिदैन की फज़ीलत ही तो है,याद रखें वालिदैन की नाफरमानी ईमान के लिए ज़हर है,मौला तआला से दुआ है कि इस पुर फितन दौर में जब कि मर्द अपनी बीवी के इशारों पर नाच रहा है हमें अपने वालिदैन की अज़मत को पहचानने की तौफीक़ो रफीक़ अता फरमाये,और अज़ाबे क़ब्र व अज़ाबे नार से महफूज़ फरमाये-आमीन*

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Saturday 13 May 2017

इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़ हिस्सा-6


हिस्सा-6

        इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़

7⃣  वहाबी कहता है कि हौज़े कौसर पर कुछ लोग आयेंगे जिन्हें हुज़ूर ﷺ बुलायेंगे तो फरिश्ते अर्ज़ करेंगे कि या रसूल अल्लाह ﷺ ये मुनाफिक हैं तो हुज़ूर ﷺ उन्हें दुत्कार देंगे,अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो उन्हें पहले ही खबर हो जाती

7⃣  हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि तुम दुनिया में किसी से भी इस क़दर तकरार नहीं करोगे जितना कि एक कल्मा पढ़ने वाला अपने मुसलमान भाई को जहन्नम में जाते देखकर खुदा से तकरार करेगा,बन्दे अर्ज़ करेंगे कि मौला ये हमारे वो भाई हैं जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते थे रोज़ा रखते थे हज करते थे तूने उन्हें जहन्नम में क्यों डाल दिया तो मौला फरमाएगा कि अच्छा तुम जिन्हे पहचानते हो उन्हें निकाल लो,बन्दे जाकर उन्हें वहां से निकाल लायेंगे फिर मौला अर्ज़ करेगा अब जाकर उन्हें भी निकाल लाओ जिनके दिल में ज़र्रा बराबर भी ईमान हो बन्दे जाकर एक एक मोमिन को चुन चुनकर निकाल लायेंगे,फिर जहन्नम में सिर्फ काफिर ही काफिर रह जायेंगे

📕 बुखारी,जिल्द 6,हदीस 7001
📕 निसाई,जिल्द 8,सफह 112
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 23

सोचिये कि एक आम मुसलमान को कैसे पता कि कौन मोमिन है और कौन कफिर है मगर वो एक मुस्लमान को उसके चेहरे व आज़ा से पहचान रहा है और वो नबी जो सारे जन्नतियों को जानते हैं सारे जहन्नमियों को जानते हैं वो नहीं पहचानेंगे ये कैसे हो सकता है,हदीसे पाक पढ़िये

* हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि एक दिन हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हमारे दरमियान हाज़िर हुए तो आपके हाथों में 2 किताब थी,आपने पुछा कि क्या तुम लोग इस किताब के बारे में जानते हो तो सहाबा ने अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम आपके बग़ैर बताये हम नहीं जानते,तो आपने दाहिने हाथ की किताब की तरफ इशारा किया और फरमाया कि इसमें जन्नत में जाने वालों के नाम उनके बाप के नाम के साथ दर्ज हैं और आखिर में सबका टोटल भी कर दिया गया है कि अब उसमे कमी या ज़्यादती नहीं होगी,फिर बायें हाथ की किताब की तरह इशारा करते हुए फरमाया कि इसमें जहन्नम में जाने वालों के नाम उनके बाप के नाम के साथ दर्ज हैं और आखिर में सबका टोटल भी कर दिया गया है कि अब उसमे कमी या ज़्यादती नहीं होगी

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 36

किसी बात को जानना तो ये अलग बात हो गई मगर इसके बावजूद भी आप फरमाते हैं कि हम क़यामत में सबको पहचानते होंगे,फिर क़यामत में मोमिन की निशानी ये भी होगी कि उसके आज़ाये वुज़ू चमकते होंगे पेशानी पर सजदों के निशान मालूम होंगे नामये आमाल दाहिने हाथ में होगा वहीं काफिर व मुनाफिक की भी पहचान उनके चेहरे से ज़ाहिर होगी,इतनी सारी निशानियां होते हुए भी ये कहना कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम उनको नहीं पहचानेगे ये सख्त हिमाक़त ही है,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम उन मुनाफिकों को यक़ीनन पहचानेगे मगर तअन के तौर पर उनको बुलाया जायेगा कि ये देखो ये हमारे मुख्लिस बन्दे हैं फिर फरिश्तों का बताना और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का उनको झिड़क कर भगाना दर असल उनकी तकलीफ को और बढ़ाना होगा,इसको युं समझिए कि आपके किसी मिलने जुलने वाले की शादी हुई और उसने आपको दावत में नहीं पूछा तो आपको तकलीफ तो होगी मगर सोचिये कि अगर वही आदमी आपको दावत देता और जब आप उसके घर पहुंचते तो वो सबके सामने आपकी बे इज़्ज़ती करके आपको भगा देता तब उस तकलीफ का अंदाज़ा लगाइये,मुनाफिकों को भी यही तकलीफ देने के लिए बुलाकर भगाया जायेगा और अगर ऐसा नहीं है तो जो फरिश्ते अल्लाह के हुक्म के खिलाफ ज़र्रा बराबर वर्ज़ी नहीं करते वो उन मुनाफिकों को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम तक पहुंचने ही नहीं देते पहले ही भगा देते,बात कुछ नहीं है सिर्फ इतनी सी है इन वहाबियों के दिमाग में गोबर भरा हुआ है इसी लिए उन्हें सही और गलत की तमीज़ नहीं रह गई है

📕 जा'अल हक़,हिस्सा 1,सफह 119

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Friday 12 May 2017

इल्मे दीन हिस्सा-3


हिस्सा-3   इल्मे दीन

* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि "अल्लाह तुम्हारे ईमान वालों के और उनके जिनको इल्म दिया गया है दर्जे बुलंद फरमायेगा

📕 पारा 28,सूरह मुजादिला,आयत 11

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "आलिम की फज़ीलत आबिद पर ऐसी है जैसी मेरी फज़ीलत तुम्हारे अदना पर

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 244

* जो इल्मे दीन के लिए चलेगा तो फरिश्ते उसकी राह में अपना पर बिछा देते हैं और उनके लिए ज़मीनों आसमान की हर चीज़ यहां तक कि पानी में मछलियां भी मग़फिरत की दुआ करती हैं और आलिम की फज़ीलत आबिद पर ऐसी है जैसी चौदहवीं रात के चांद की फज़ीलत सितारों पर होती है और उल्मा अम्बिया के वारिस हैं

📕 अबु दाऊद,जिल्द 3,सफह 99

* अल्लाह तआला जिसके साथ भलाई का इरादा करता है तो उसे दीन की समझ (फिक़ह) अता फरमाता है

📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 137

* एक आलिम शैतान पर 1000 आबिदों से ज़्यादा भारी है

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 242

* बेहतरीन इबादत फिक़ह है,फिक़ह के बग़ैर कोई इबादत नहीं और फक़ीह की मजलिस में बैठना 60 साल की इबादत से बेहतर है

📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 10,सफह 100

*सोचिये जिनका मर्तबा खुदा बुलंद फरमा रहा है,जो अम्बिया के वारिस हैं,जिनके लिए दुनिया की हर चीज़ मग़फिरत की दुआ करती है,जिनका मर्तबा इबादत गुज़ार बन्दों पर ऐसा है जैसा कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का मर्तबा उनके अदना उम्मती पर,उन आलिमों की शान में आज की जाहिल अनपढ़ अवाम बकवास करती है,याद रखें*

* जिसने किसी आलिम की तौहीन इस बिना पर की कि वो आलिमे दीन है काफिर है

📕 अनवारुल हदीस,सफह 91

* उसूले शरह चार हैं 1.क़ुरान 2.हदीस 3.इज्माअ यानि फिक़ह 4.क़यास जो इनमे से किसी एक एक का भी इंकार करे काफिर है

📕 फतावा मुस्तफविया,सफह 55

*फिक़ह का बयान आगे करूंगा इन शा अल्लाह तआला,एक आलिम और आबिद में क्या फर्क है उसको जानने के लिए ये रिवायत पढ़िये*

* एक दिन अस्र के बाद इब्लीस ने पानी पर अपना तख्त बिछाया और सभी शैतानो से उनके काम की रिपोर्ट लेने लगा,किसी ने कहा कि मैंने लोगों को बहकाकर शराब पिलवाई किसी ने कहा मैंने ज़िना करवाया किसी ने कहा मैंने बन्दों को नमाज़ से रोक दिया,इब्लीस सब की सुनता रहा फिर एक ने कहा कि आज मैंने एक बच्चे को इल्मे दीन सीखने से रोक दिया तो इस पर इब्लीस उछल पड़ा कि हां तूने बड़ा काम किया,इस पर बाकी शैतानों ने ऐतराज किया कि हमने इतना बड़ा बड़ा काम किया और कोई तारीफ नहीं और इसने एक बच्चे को इल्म से रोक दिया तो इतनी खुशी क्यों,इस पर इब्लीस बोला कि तुमने जिसको बहकाया वो इल्म से कोरे थे अगर उनके पास इल्म होता तो कभी वो तुम्हारे बहकावे में ना आते,अगर तुम्हे इल्म की फज़ीलत समझनी है तो चलो मेरे साथ मैं समझाता हूं,वो सबको लेकर एक मस्जिद के बाहर अंधेरे में खड़ा हो गया,फज्र का वक़्त था एक आबिद साहब पहुंचे उसने उनको रोका सलाम जवाब हुआ फिर इब्लीस ने मसला पूछने की गर्ज़ से अपनी जेब से एक शीशी निकाली और उनसे कहा कि क्या अल्लाह तआला इस शीशी के अंदर सातों ज़मीन आसमान को दाखिल कर सकता है,तो आबिद साहब कहने लगे कि कहां ये छोटी शीशी और कहां इतना बड़ा ज़मीनों आसमान ये नहीं हो सकता,ये कहकर वो चले गए इब्लीस ने कहा कि देखो मैंने इसकी राह मार दी इसको जब खुदा की कुदरत पर ही भरोसा नहीं है तो इसकी इबादत बेकार है,फिर वो कुछ देर रुका रहा कि अचानक एक आलिम साहब जल्दी जल्दी बढ़ते हुए मस्जिद की तरफ चले आ रहे थे,उसने रोका सलाम किया मसला पूछना चाहा तो वो फरमाते हैं कि फज्र का वक़्त बहुत कम है जल्दी पूछो,इस पर उसने वही शीशी निकाली और वही सवाल पूछा तो आलिम साहब ने फरमाया कि ज़रूर तू मलऊन मालूम होता है मेरा रब क़ादिरे मुतलक़ है अरे ये शीशी तो बहुत बड़ी है अगर वो चाहे तो सातों ज़मीन आसमान क्या चीज़ है करोड़ों ज़मीन आसमान सूई के नाके के अंदर समां दे,ये कहकर वो चले गए तो इब्लीस अपने चेलों से कहता है कि देखो ये इल्म की बरकत है तो जिसने इल्म से किसी को रोक दिया उसने सबसे बड़ा काम किया

📕 मलफूज़ाते आलाहज़रत,जिल्द 3,सफह 21

*इससे तीन बातें साबित हुई पहली ये कि आलिम आबिद से बेहतर है दूसरा ये कि आलिम से डरना या उनसे बुग्ज़ रखना शैतानी काम है तीसरा ये कि बग़ैर इल्म के इबादत भी खतरे में है,लिहाज़ा इल्मे दीन हासिल करें*

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Tuesday 9 May 2017

Wazayaf


***** Wazayaf *****

* जो भी काम शुरू करें वो पूरा ना होता हो या किसी भी मुश्किल का हल ना निकलता हो तो बाद नमाज़े मग़रिब 1000 बार "या रशीदो" يا رشيدُ पढ़ें,इन शा अल्लाह उसका हल निकल आयेगा और अगर हमेशा पढ़ता रहे तो सारे जायज़ काम खुद बखुद पूरे होते जायेंगे और रोज़गार में भी खूब तरक़्क़ी होगी

📕 रूहानी इलाज,सफह 150

* जिस किसी के सीने में दर्द हो तो सूरह "अलम नशरह" लिखकर धोकर पिलायें दर्द दफअ होगा इन शा अल्लाह

📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा,सफह 412

* जो कोई एक बार दुरूदे सआदत "अल्लाहुम्मा सल्ले अला सय्यदना व मौलाना मुहम्मदिन अदादा माफी इलमिल लाहे सलातन दा---एमातम बिदावामे मुल्किल लाह" اللهم صلى على سيدنا محمّد عدد مافى علم الله صلوة دآيمةً بداوام ملك الله पढ़ता है तो 6 लाख दुरूदे पाक का सवाब उसके नामये आमाल में लिखा जाता है

📕 खज़ीनये दुरूद शरीफ,सफह 234

* जो कोई सुबह और शाम को ये दुआ "अल्लाहुम्मा लकल हम्दो हम्दन दा--एमन मअ दवामेका व लकल हम्दो हम्दन खा-लेदन मअ खुलूदेका व लकल हम्दो हम्दल लामुन्तहा लहु दूना मशीय्यतेका व लकल हम्दो हम्दन इन्दा कुल्ले तरफते अैनिवं व तनफ्फोसे कुल्ले नफ्स" اللهم لك الحمد ححمدا دا~ىما مع دوامك ولك الحمد حمدا خالدا مع خلودك ولك الحمد حمدا اللآمنتهى له دون مشىتك ولك الحمد حمدا عند كل طرفة عين وتنفس كل نفس  सिर्फ 1 बार पढ़ लेगा तो फज़ले रब्बी से दिनों रात इबादत करने वाले को जितना सवाब मिलता है इस दुआ के पढ़ लेने वाले को उतना सवाब मिल जायेगा इन शा अल्लाह,याद रखें कि आधी रात ढलने के बाद से सूरज निकलने तक सुबह है और दोपहर ढलने से ग़ुरूब आफताब तक शाम है

📕 सोलह सूरह,सफह 234

* जो कोई हर नमाज़ के बाद पारा 19 सूरह फुरक़ान आयत नं0 74 "रब्बना हबलना मिन अज़वाजेना व ज़ुर्रीयातेना क़ुर्रता आय्योनिवं वजअलना लिल मुत्तक़ीना इमामा" ربنا هب لنا من ازواجنا وذريتنا قرة اعين واجعلنا للمتقينا
اماما  आयत 1 बार पढ़ लिया करे तो उसके बीवी बच्चे सब ही दीनदार हो जायेंगे इन शा अल्लाह

📕 मसाएलुल क़ुरान,सफह 283

* जिनकी आंखों की रौशनी कमज़ोर हो गई हो वो पांचों नमाज़ों के बाद 11 बार "या नूरो" يا نورُ पढ़कर दोनों हाथों के पोरों पर दम करके आंखों पर रखें

📕 जन्नती ज़ेवर,सफह 476

* आमन्तो बिल्लाहे व रसूलेही" آمنت بلله ورسوله पढ़ने से वस्वसे फौरन ही दूर हो जाते हैं

📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 71

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Monday 8 May 2017

ज़िना की तोहमत


ज़िना की तोहमत

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने जिन 7 हलाकत खेज़ गुनाहों से बचने को कहा है 1. शिर्क करना 2. जादू करना 3. क़त्ल करना 4. यतीम का माल खाना 5. सूद खाना 6. मैदाने जंग से भागना,उसमे एक ये भी है कि 7. किसी पाक दामन औरत पर इलज़ाम लगाना

📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 388
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 66

* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि "और वो लोग जो पाक दामन औरतों पर इलज़ाम लगाते हैं फिर इस पर वो 4 गवाह ना लायें तो उनको 80 कोड़े मारो और उनकी गवाही कभी भी क़ुबूल ना करो कि वो लोग फासिक हैं" कुछ आगे इरशाद फरमाता है कि "बेशक वो लोग जो पाक दामन औरतों पर इलज़ाम लगाते हैं उन पर दुनिया और आखिरत में लाअनत भेजी गयी है और उनके लिए बड़ा अज़ाब है

📕 पारा 18,सूरह नूर,आयत 4-23

ये बीमारी तो आजकल बड़ी आम है जहां किसी लड़की को किसी से बात-चीत करते देखा फौरन उस पर इल्ज़ाम तराशी शुरू हो गई,फलां का फलां से चक्कर है फलां तो आवारा है फलां बदचलन है वगैरह वगैरह,इस्लाम के किसी भी मसले में अगर गवाही की ज़रूरत पड़ेगी तो 2 गवाह काफी हैं चाहे किसी के क़त्ल का मुक़दमा हो या कुछ भी,लेकिन अगर औरत पर ज़िना का इलज़ाम लगाया तो अब 2 गवाहों से काम नहीं चलेगा 4 गवाह चाहिये और चारों ने उस औरत को किसी मर्द के साथ इस तरह देखा हो जैसे सुई में धागा,अगर चारों ने इसी तरह मर्द व औरत को देखा तो जब तो वो ज़ानी होंगे और सज़ा के मुस्तहिक़,ज़िना की सजा ये है कि अगर ज़िना करने वाले शादी शुदा हैं तो संगसार कर दिया जाये यानि दोनों को पत्थर मार मारकर मार डाला जाये और अगर कुंवारे हों तो 100,100 कोड़े मारे जायें,ये सज़ा तब क़ायम होगी जब कि इस्लामी हुकूमत हो चूंकि हिंदुस्तान में इस्लामी हुकूमत नहीं है लिहाज़ा यहां सज़ा नहीं दी जा सकती ऐसे लोग तौबा करें,ये तो हुई ज़ानी की सज़ा और जिसने इलज़ाम लगाया अगर वो 4 गवाह ना पेश कर सका या गवाह तो आये मगर चारों ने मर्द व औरत को उस तरह नहीं देखा जिस तरह बयान किया गया तो इलज़ाम लगाने वाला झूठा साबित होगा और उस पर हद क़ायम होगी यानि 80 कोड़े उसको मारे जायेंगे,चूंकि सज़ा उसको भी नहीं दी जा सकती मगर वो हुक़ूक़ुल इबाद में गिरफ्तार हुआ तो उसका गुनाह सिर्फ तौबा से माफ ना होगा बल्कि उससे भी माफी मांगनी होगी जिस पर इलज़ाम लगाया है,हदीसे पाक में है कि

* बेशक आदमी ज़बान की बदौलत जहन्नम में इतना गिरता है कि जितना मशरिक और मग़रिब के दर्मियान फासला है

📕 अत्तरगीब वत्तरहीब,जिल्द 3,सफह 537

* ईमान वालों को चाहिये कि अच्छी बात बोलें या खामोश रहें

📕 मजमउज़ ज़वायेद,जिल्द 10,सफह 32

याद रहे औरत अगर बदकार भी है जब भी उस पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते जब तक कि उसकी बदकारी को साबित करने के लिए 4 गवाह ना हों,लिहाज़ा मुसलमानों बात बात में किसी को ज़ानी या किसी को हरामी या किसी भी लड़के या लड़की पर ज़िना का इलज़ाम लगाना अगर चे मज़ाक में भी कहे जब भी हराम है गुनाहगार होगा लिहाज़ा तौबा करे और उससे माफी भी मांगे,हां मगर किसी को हराम ज़ादा कहने पर सरकारे आलाहज़रत फरमाते हैं कि "हराम ज़ादा कहने पर हद क़ायम नहीं होगी क्योंकि यहां इस लफ्ज़ से मुराद शरारती होता है मगर लड़की को हराम ज़ादी ना कहे

📕 अलमलफूज़,हिस्सा  4,सफह 14



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Friday 5 May 2017

इल्मे दीन हिस्सा-2


हिस्सा-2  इल्मे दीन

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "जब इंसान मर जाता है तो उसके सारे आमाल मुनक़तअ हो जाते हैं मगर तीन अमल का सवाब जारी रहता है जिसका सवाब मुर्दा क़ब्र में भी पाता है

1. सदक़ये जारिया-यानि कोई ऐसी चीज़ सदक़ा कर गया मसलन मदरसे में क़ुरान रखवा दिया या वुज़ू खाना बनवा दिया या पानी का और कोई काम करवा दिया गर्ज़ कि जो उसके मरने के बाद भी बाकी रहे तो उसे सदक़ये जारिया कहते हैं,इसका सवाब मरने के बाद भी मिलेगा

2. इल्म-यानि ऐसा इल्म छोड़ गया या लोगों को सिखा गया जिससे कि लोग फायदा उठाते हों तो उसके मरने के बाद भी जितने लोग उस पर अमल करते रहेंगे क़ब्र में भी उसको सवाब मिलता रहेगा

3. नेक औलाद-यानि जो भी अमले खैर उसकी औलाद करेगी या दुआ करेगी तो क़ब्र में उसके वालिदैन को भी अज्र मिलता रहेगा,और किसी के अमल में कोई भी कमी ना होगी

📕 तिर्मिज़ी,हदीस 1376

*एक बात यहां ज़हन में ये आई कि अक्सर अवाम ये कहती हुई नज़र आती है कि जाहिल आलिम से बेहतर हैं क्योंकि आलिम तो जानकर गुनाह करते हैं और अवाम कम से कम जानती तो नहीं है इसलिए कम गुनाहगार होगी,तो उनकी ये सराहत सरासर गलत और फिज़ूल है अव्वल तो क़ुरान का ही इनकार है अल्लाह फरमाता है कि*

* आलिम और जाहिल बराबर नहीं

📕 पारा 23,सूरह ज़ुमर,आयत 9

* बेशक अल्लाह से वही लोग डरते हैं जो इल्म वाले हैं

📕 पारा 22,सूरह फातिर,आयत 28

*एक में मौला फरमाता है कि आलिम और जाहिल बराबर नहीं तो मतलब ये है कि आलिम बुलंद मनसब है और ना अहल उससे कम,पर अवाम की नज़र में तो वो उल्मा से भी बढ़कर हैं फिर यही नहीं उस पर भी तुर्रा ये कि जाहिल ही अल्लाह से डरते हैं उल्मा नहीं डरते इससे दूसरी आयत का इंकार होता है माज़ अल्लाह,अगर इंकार से मुराद तहक़ीर हो जब तो कुफ्र तक हो जायेगा,अवाम क्या सोचकर ऐसा कहती है उसकी एक मिसाल देता हूं जैसे कि दावत में किसी मौलाना को खड़े होकर खाना खाते देख लिया या पानी पीते देख लिया या और कोई गुनाह करते देख लिया तो अब अपना गुनाह भूलकर उसकी ज़बान पर बस यही आता है कि उससे अच्छे तो हम है कम से कम हम जानते तो नहीं हैं,तो याद रखें कि किसी का कोई दीनी बात का इल्म ना रखना उसे अज़ाब से नहीं बचा सकता

इसको यूं समझिये कि अगर जानकर ज़हर पियेंगे तो मर जायेंगे और अगर अनजाने में ज़हर पियेंगे तो क्या बच जायेंगे,नहीं बिलकुल नहीं,ज़हर ज़हर है चाहे जानकर पियें या अनजाने में वो तो अपना काम करेगा,उसी तरह गुनाह गुनाह है चाहे जानकर करें या अनजाने में अज़ाब दोनों ही सूरत में झेलना पड़ेगा,मगर इसमें भी जाहिल ही ज़्यादा नुकसान उठायेगा क्योंकि वो इल्म से ना आशना है उसे तो पता भी नहीं है कि जो गुनाह वो कर रहा है वो नाजायज़ है या हराम है या माज़ अल्लाह कुफ्र है,लेकिन इल्म वाला अगर चे अपने नफ्स के धोखे में आकर गुनाह करता भी है तो कम से कम उसे इल्म तो होगा कि ये गुनाह किस ज़िम्न में है कोई नेकी करने से मिट जायेगा या तौबा भी करनी होगी,फिर दूसरी बात ये भी कि जिस तरह नमाज़ पढ़ना फर्ज़ है उसी तरह इल्मे दीन सीखना भी फर्ज़ है मतलब नमाज़ के मसले मसायल सीखना भी फर्ज़ है,अब एक शख्स ने नमाज़ के मसले मसायल तो तमाम सीख लिये यानि एक फर्ज़ को अदा कर लिया मगर नमाज़ नहीं पढ़ता तो दूसरे फर्ज़ का तर्क किया तो उसका कुसूरवार हुआ मगर वहीं एक जाहिल ना तो उसने नमाज़ के मसले मसायल ही सीखे और ना ही वो नमाज़ पढ़ता है तो अब बताईये कि कौन ज़्यादा बुरा है जिसने एक फर्ज़ तर्क किया वो या जिसने दो दो फर्ज़ तर्क किया वो

इसको भी मिसाल से समझिये कि एक शख्स रमज़ान शरीफ में रोज़े रखता है मगर नमाज़ नहीं पढ़ता और दूसरा शख्स ना तो रोज़े ही रखता है और ना ही नमाज़ पढ़ता है,तो अब बताईये कि जिसने रोज़ा और नमाज़ दो फर्ज़ तर्क किये वो ज़्यादा गुनहगार है या वो कि जिसने रोज़ा तो रखा मगर नमाज़ नहीं पढ़ी,ज़ाहिर सी बात है कि जो दो फर्ज़ का तारिक होगा वही ज़्यादा गुनहगार है तो उसी तरह इल्म वाला अगर कोई गुनाह करता भी है तो उसको गुनाह सिर्फ इस बात पर होगा कि उसने ये गुनाह क्यों किया मगर वहीं इल्म ना जानने वाले को इस बात पर भी गुनाह होगा कि इल्म सीखा क्यों नहीं फिर इस पर कि ये गुनाह क्यों किया,समझाते समझाते बात बहुत लम्बी हो गई मगर इसका जानना बहुत ज़रूरी है कि खुद मैं बहुत लोगों से अक्सर सुनता रहता हूं कि अवाम आलिम से बेहतर है माज़ अल्लाह,लिहाज़ा जिसका ऐसा अक़ीदा हो वो फौरन तौबा करे,एक बात और इस पूरी बहस से कोई ये ना समझे कि मैं किसी मौलाना के गुनाह करने को जायज़ ठहरा रहा हूं नहीं बल्कि गुनहगार तो वो है ही मगर उससे बड़ा गुनहगार वो है जो वही गुनाह करता है मगर उसका इल्म भी उसको नहीं है

जारी रहेगा...........

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Saturday 29 April 2017

इमामे आज़म अबू हनीफा


ZEBNEWS*

                       *इमामे आज़म*



* आपका नाम नोअमान वालिद का नाम साबित और कुन्नियत अबू हनीफा है,आप 80 हिजरी में पैदा हुए

📕 खैरातुल हिसान,सफह 70

* हज़रत शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि आपका ज़िक्र तौरैत शरीफ में भी यूं मौजूद है कि "मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की उम्मत में एक नूर होगा जिसकी कुन्नियत अबू हनीफा होगी

📕 तआर्रुफ फिक़ह व तसव्वुफ,सफह 225

* खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि "मेरी उम्मत में एक मर्द पैदा होगा जिसका नाम अबू हनीफा होगा वो क़यामत में मेरी उम्मत का चराग़ है

📕 मनाक़िबिल मोफिक,सफह 50

* बुखारी व मुस्लिम शरीफ की हदीसे पाक है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "अगर ईमान सुरैया के पास भी होता तो फारस का एक शख्स उसे हासिल कर लेता" इस हदीस की शरह में हज़रत जलाल उद्दीन सुयूती रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि उस शख्स से मुराद इमामे आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं

📕 तबयिदुल सहीफा,सफह 7

*सुरैया चौथे आसमान पर एक सितारे का नाम है*

* आप ताबईन इकराम के गिरोह से हैं क्योंकि आपने कई सहाबा इकराम की ज़ियारत की है,बाज़ ने 20 सहाबी से मुलाक़ात का ज़िक्र किया और बाज़ ने 26 और भी इख्तिलाफ पाया जाता है,मगर इसमें कोई इख्तेलाफ नहीं कि आपकी सहाबियों से मुलाक़ात ना हुई हो क्योंकि खुद बराहे रास्त आपने 7 सहाबा इकराम से हदीस सुनी है जिनमे सबसे अफज़ल सय्यदना अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं,फिर अब्दुल्लाह बिन हारिस,जाबिर बिन अब्दुल्लाह,मअकल बिन यसार,वासला बिन यस्क़ा,अब्दुल्लाह बिन अनीस,आयशा बिन्त अजरद रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन शामिल हैं

📕 बे बहाये इमामे आज़म,सफह 62

* हज़रत दाता गंज बख्श लाहौरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु लिखते हैं कि एक मर्तबा आपने गोशा नशीन होने का इरादा फरमा लिया था,रात को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ख्वाब में तशरीफ लाये और फरमाया कि "ऐ अबू हनीफा तेरी ज़िन्दगी अहयाये सुन्नत के लिए है तू गोशा नशीनी का इरादा तर्क कर दे" तो आपने ये इरादा तर्क कर दिया

📕 कशफुल महजूब,सफह 162

* क़ुरान मुक़द्दस को 1 रकात में पढ़ने वाले 4 हज़रात हैं जिनमे हज़रत उसमान ग़नी हज़रत तमीम दारी हज़रत सईद बिन जुबैर और हमारे इमाम इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन हैं

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 211

* इमाम ज़हबी रहमतुल्लाह तआला अलैही फरमाते हैं कि आपका पूरी रात इबादत करना तवातर से साबित है और 30 सालों तक 1 रकात में क़ुरान पढ़ते रहे और 40 सालों तक ईशा के वुज़ू से फज्र अदा की,आप रमज़ान में 61 कलाम पाक खत्म किया करते थे एक दिन में एक रात में और एक पूरे महीने की तरावीह में,आपने 55 हज किये

📕 इमामे आज़म,सफह 75

* आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर रूए ज़मीन के आधे इंसानो के साथ इमामे आज़म की अक़्ल को तौला जाए तो इमामे आज़म की अक़्ल भारी होगी

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 123

* आप जब भी रौज़ए अनवर पर हाज़िरी देते और सलाम पेश करते तो जाली मुबारक से आवाज़ आती व अलैकुम अस्सलाम या इमामुल मुस्लेमीन

📕 तज़किरातुल औलिया,सफह 165

* फिक़ह हनफी पर ऐतराज़ करने वालों और हर बात में बुखारी बुखारी की रट लगाने वालो देखो कि इमाम बुखारी ने इल्म किससे सीखा,इमाम बुखारी के उस्ताज़ हैं इमाम अहमद बिन हम्बल उनके उस्ताज़ हैं इमाम शाफई उनके उस्ताज़ हैं इमाम मुहम्मद उनके उस्ताज़ हैं इमाम अबू यूसुफ और आप के उस्ताज़ हैं इमामुल अइम्मा इमामे आज़म रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अजमईन

📕 इमामे आज़म,सफह 195

*आपसे बेशुमार करामतें ज़ाहिर है और बेशुमार वाक़ियात किताबों में मौजूद है,कभी करामत के टापिक में बयान करूंगा इन शा अल्लाह*

* आपका विसाल 2 शाबान 150 हिजरी में हुआ,6 बार आपकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गयी और क़ब्र पर तो 20 दिन तक नमाज़ होती रही,आपके विसाल पर जिन्नात भी रो पड़े थे

📕 इमामे आज़म,सफह 132

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Friday 28 April 2017

इल्मे दीन हिस्सा-1


 हिस्सा-1   इल्मे दीन

* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है "ऐ लोगों इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हे इल्म ना हो

📕 पारा 17,सूरह अम्बिया,आयत 7

* और अल्लाह के रसूल सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम इरशाद फरमाते हैं "इल्मे दीन सीखना हर मुसलमान मर्द व औरत पर फर्ज़ है

📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 224

* इल्मे दीन की मजलिस में शामिल होना 1000 रकत नफ्ल पढ़ने से बेहतर है

📕 रुहुल बयान,जिल्द 10,सफह 221

* रात में एक घड़ी इल्मे दीन का पढ़ना पढ़ाना पूरी रात इबादत करने से बेहतर है

📕 अनवारुल हदीस,सफह 114

* जो इल्मे दीन के रास्ते पर है तो वो जन्नत के रास्ते पर है

📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 145

* जो इल्मे दीन की तलब में हो और मौत आ जाये तो वो शहीद है

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 583

* जो शख्स इल्मे दीन की तलब में है तो उसके रिज़्क़ का ज़ामिन अल्लाह है

📕 तारीखे बगदाद,जिल्द 3,सफा 398

* जिस ने इल्मे दीन इसलिए सीखा कि लोगों की इस्लाह करे तो ये उसके पिछले तमाम गुनाहों का कफ्फारह है

📕 मिरातुल मनाजीह,जिल्द 1,सफह 203

* एक सहाबिये रसूल हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर थे,मौला ने अपने महबूब सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को वही की कि ऐ महबूब इस सहाबी की क़ज़ा का वक़्त आ चुका है चन्द साअत ही बाकी है,आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उन्हें बता दिया पहले तो सहाबी परेशान हुए फिर अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अब जब कि मेरा वक़्त आ ही चुका है तो मुझे कोई ऐसा अमल बता दिया जाए कि मैं उसमे लगा रहूं और मुझे मौत आ जाये,तो अल्लाह के रसूल सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि "इल्मे दीन सीखने में मशगूल हो जाओ" कि सबसे बेहतर यही है,वो सहाबी इल्म की तलब में लग गए और उसी हालत में उन्हें मौत आई

📕 तफसीरे कबीर,जिल्द 1,सफह 410

ग़ौर कीजिये कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम सामने मौजूद हैं फरमा देते कि यही बैठे रहो और मुझे देखते रहो या ये कि हरम बगल में है जाओ तवाफ करना शुरू कर दो या ये कि मस्जिदे नब्वी में नमाज़ पढ़ना शुरू कर दो,मगर आपने ये सब ना फरमा के ये फरमाया की इल्मे दीन हासिल करने में लग जाओ तो इसी से इल्मे दीन की फज़ीलत का पता चलता है,मगर एक आज का मुसलमान है कि सब कुछ है उसके पास मगर इल्मे दीन से ही कोरा है,अब इल्मे दीन सीखने का ज़रिया क्या है ये भी जान लीजिए

1. मदरसा
2. कुत्ब बीनी
3. इल्म वालों की महफिल

मदरसा हम गए नहीं किताब हम पढ़ते नहीं और जलसों में हम जाते नहीं,तो अब इल्म क्या अल्लाह तबारक व तआला इल्हाम से हमारे दिल में डालेगा,नहीं नहीं नहीं,फिर भी Social media के इस ज़माने में facebook और whatsapp के ज़रिये अगर अल्लाह का कोई बन्दा घंटो मेहनत करने के बाद बैठे बिठाये मोबाइल पर एक islamic post भेज देता है तो लम्बा Msg है कहकर नीचे खसका दिया जाता है,मेरे दोस्तों और अज़ीज़ों मैं सबकी बात नहीं करता मगर ZEBNEWS के Massages कापी पेस्ट वाले नहीं होते हैं कि कहीं से Copy कर लिया और कहीं Paste कर दिया और बस बन गए Group Admin,घंटो मेहनत करने के बाद कितनी ही किताबों में सर खपाने के बाद एक पोस्ट तैयार होती है बदले में आपसे सिर्फ इतना चाहता हूं कि plz msg पढ़ा करें क्योंकि मेरे इस काम की जज़ा कोई दे ही नहीं सकता सिवाए मेरे रब के,ये बात कहने की ज़रूरत इसलिए पड़ी कि मैं देखता हूं कि अक्सर मेरे ग्रुप के ही कुछ लोग बहुत से ऐसे सवाल पूछते हैं जिसका जवाब मैं पोस्ट के ज़रिये या सवाल जवाब में दे चुका होता हूं,मतलब साफ है कि 24 घंटे में एक msg भेजने पर भी कुछ लोग उसे नहीं पढ़ते हैं क्योंकि अगर पढ़ते तो वही सवाल मुझसे नहीं पूछते,फिर जब मैं इस पर कुछ कहता हूं तो लोग बुरा मानते हैं,तो दोस्तों अगर वाक़ई इल्म हासिल करना चाहते हैं तो msg पढ़ें और कोशिश करें उस पर अमल करने की,और अगर एक msg भी नहीं पढ़ा जाता तो फिर ग्रुप में रहने की ज़रूरत ही क्या है,ZEBNEWS को सोशल मीडिया पर चलने वाला सिर्फ एक msg ग्रुप ना समझें बल्कि इसे मैं एक मदरसे की तरह चला रहा हूं और मेरी बस यही एक तमन्ना है कि अपने मरने से पहले किसी एक की इस्लाह कर जाऊं,ग्रुप में मैंने काफी सख्ती कर रखी है किसी को कुछ बोलने की इजाज़त नहीं है ये सब सिर्फ आप लोगों की भलाई के लिए ही है वरना फिर इसमें और बाकी ग्रुप्स में क्या फर्क रह जायेगा,लिहाज़ा मेरी सख्ती को और कभी कभी मेरी सख्त कलामी को नज़र अंदाज़ कर दिया करें

*जज़ाक अल्लाहो रब्बिल आलमीन*

जारी रहेगा...........

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Tuesday 25 April 2017

हिस्सा-2 मेराज शरीफ

हिस्सा-2  मेराज शरीफ



*हुज़ूर ने खुदा का दीदार किया* 

* आंख ना किसी तरफ फिरी और ना हद से बढ़ी 

📕 पारा 27,सूरह नज्म,आयत 17

मतलब ये कि शबे मेराज हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने रब को अपने सर की आंखों से देखा,उसी देखने को मौला तआला फरमाता है कि ना तो देखने में ही आंख फेरी और ना ही बेहोश हुए,जैसा कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम रब के जलवों की ताब ना ला सके और बेहोश हो गए,और इस देखने की तफसील खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इस तरह इरशाद फरमाते हैं कि

* इज़्ज़त वाला जब्बार यहां तक क़रीब हुआ कि 2 कमानों या उससे भी कम फासला रह गया 

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 1120

* चारों खुल्फा यानि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ हज़रत उमर फारूक़ हज़रत उस्मान गनी हज़रत मौला अली व अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास अब्दुल्लाह बिन हारिश अबि बिन कअब अबू ज़र गफ्फारी माज़ बिन जबल अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद अबू हुरैरह अनस बिन मालिक और भी बहुत से सहाबा का यही मज़हब है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने सर की आंखों से रब तआला को देखा 

📕 शिफा शरीफ,जिल्द 1,सफह 119

* इसके अलावा भी दीगर फुक़्हा व अइम्मा का यही मज़हब रहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा का दीदार किया 

📕 अलमुस्तदरक,जिल्द 1,सफह 65
📕 फत्हुल बारी,जिल्द 7,सफह 174
📕 खसाइसे कुबरा,जिल्द 1,सफह 161
📕 ज़रक़ानी,जिल्द 6,सफह 118

अब जो लोग ये ऐतराज़ करते हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा को नहीं देखा बल्कि जिब्रीले अमीन को देखा तो तो मैं उनसे कहना चाहूंगा कि क्या मेरे आक़ा जिब्रील को देखने के लिए सिदरह तशरीफ ले गए थे,अरे जो खुद 24000 मर्तबा मेरे आक़ा की बारगाह में आये हों उन्हें देखना हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए कोई कमाल नहीं,बल्कि वो तो हुज़ूर के ही गुलाम हैं खुद हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि 

* मेरे दो वज़ीर आसमान में हैं जिब्राईल और मीकाईल 

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 208

वज़ीर किसके होते हैं ज़ाहिर सी बात है कि बादशाह के होते हैं,अगर हुज़ूर फरमाते हैं कि ये दोनों मेरे वज़ीर हैं तो मतलब बादशाह आप खुद हुए,तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए ये कोई कमाल की बात नहीं कि जिब्रील को देख लिया बल्कि कमाल यही है कि खुदा को देखा,फिर मोअतरिज़ का उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा का ये क़ौल पेश करना कि "जो ये कहे कि हुज़ूर ने खुदा को देखा तो वो झूठा है" ये क़ौल आपके इज्तेहाद पर था मगर यहां आपके इज्तेहाद से बड़ा हुज़ूर का क़ौल मौजूद है कि खुद आप फरमाते हैं

* मैंने अपने रब को अहसन सूरत में देखा 

📕 मिश्कत,सफह 69

और मुनकिर का क़ुरान की ये दलील लाना कि खुदा को कोई आंख नहीं देख सकती तो इसका जवाब ये है कि इस दुनिया में खुदा को कोई आंख नहीं देख सकती वरना हदीसो से साबित है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि 

* कल तुम अपने रब को बे हिजाब देखोगे

📕 बुखारी,किताबुत तौहीद,हदीस 7443
📕 इब्ने माजा,हदीस 185

तो जब मैदाने महशर में तमाम मुसलमान खुदा का दीदार करेंगे तो हुज़ूर के लिए क्या मुश्किल रही,तो अब कहने वाला कह सकता है कि वो दुनिया दूसरी होगी जहां खुदा का दीदार होगा तो मोअतरिज़ का ऐतराज़ यहीं से खत्म हो गया और सवाल का जवाब खुद बा खुद मिल गया कि जहां हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने खुदा का दीदार किया था वो दुनिया भी दूसरी दुनिया थी ये दुनिया नहीं थी,एक आखिरी बात ये कि जब भी कोई किसी को अपने यहां दावत पर बुलाए और मेहमान के सामने मेज़बान खुद ना आये तो इसे तौहीन समझा जाता है,उसी तरह ये बात खुदा की शान के बईद है कि वो खुद ही हुज़ूर को बुलाये उनके लिए जन्नत सजाये जहन्नम को बुझा दे हूरो मलक का मेला लगा ले और खुद ही उनके सामने ना आये और अपना दीदार ना कराये ये ना मानने वाली बात है

जारी रहेगा...........
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हिस्सा-1 मेराज शरीफ


       हिस्सा-1  मेराज शरीफ


*तमाम सुन्नियों को शबे मेराज बहुत बहुत मुबारक हो*

* रायज यही है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज शरीफ रजब की 27वीं शब में हिजरत से पहले मक्का मुअज़्ज़मा में हज़रते उम्मे हानी के घर से हुई

📕 ज़रक़ानी,जिल्द 1,सफह 355

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को 34 बार मेराज हुई 33 बार रूहानी यानि ख्वाब में और 1 बार जिस्मानी यानि जागते हुए

📕 मदारेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 288

हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को रात ही रात एक आन में मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक्सा ले जाया गया फिर वहां से सातों आसमानों की सैर कराई गयी फिर सिदरह से आगे 50000 हिजाबात तय कराये गए जन्नत व दोज़ख दिखाई गयी और सबसे बढ़कर खुदा का दीदार हुआ,मगर जैसा कि मुनकेरीन की आदत है हर बात का इंकार करने की तो इस पर भी ऐतराज़ किया जाता है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज जिस्म के साथ हुई ही नहीं बल्कि ख्वाब में ऐसा हुआ,उनका कहना है कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई 27 साल का सफर एक पल में कर आये,तो इसका जवाब ये है कि अगर खुदा की कुदरत का इक़रार अक़्ल के हिसाब से ही किया जाए तब तो ये भी नहीं हो सकता,ग़ौर करें

मस्जिदें हराम यानि काबा मुअज़्ज़मा से बैतुल मुक़द्दस का सफर करने में 1 महीने से ज़्यादा लग जाते थे जिसकी दूरी 666 मील है

1 मील = 1.60934 किलोमीटर
666 मील = 1.60934 = 1071 किलोमीटर
फिर इतना जाना और वापस आना यानि
1071 + 1071 = 2142 किलोमीटर

अब ये बताइए कि 2142 किलोमीटर का सफर अगर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम तेज़ घोड़े से भी करते तो एक घोड़ा अगर बहुत ते़ज दौड़े तो उसकी स्पीड 70 किलोमीटर पर घंटे की होगी,इस हिसाब से

2142 / 70 = 30.6

और अगर ऊंट से सफर करते तब,ऊंट की रफ़्तार तो घोड़े से कम ही होती है,मतलब ये कि 30 घंटे से भी ज़्यादा वक़्त लगता आपको आने और जाने में,तो अगर अक़्ल के हिसाब से ही मानना है तो मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक़्सा के सफर का भी इनकार करो क्योंकि अगर एक ही रात में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम आसमानों की सैर नहीं कर सकते जन्नत दोजख नहीं देख सकते खुदा का दीदार नहीं कर सकते तो फिर एक ही रात में काबा से मस्जिदे अक्सा भी नहीं पहुंच सकते,अगर वो नामुमकिन है तो ये भी नामुमकिन है,मगर ऐसा तो कर ही नहीं पाओगे क्योंकि ये नामुमकिन काम उस रात मुमकिन हुआ है,अगर इंकार करोगे तो काफिर हो जाओगे रब तआला क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि

* पाक है वो ज़ात जो ले गया अपने बन्दे को रात ही रात मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक्सा

📕 पारा 15,सूरह असरा,आयत 1

*अक़्ल से फैसला करने वालो तुम्हारी अक़्ल के परखच्चे उड़ जायेंगे,अगर एक महीने का सफर एक आन में हो सकता है बल्कि हुआ है क़ुरान शाहिद है तो फिर 27 साल का सफर भी एक आन में हो सकता है अगर ये मुमकिन है तो वो भी मुमकिन है,इसके अलावा तीन और दलील है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज हुई और जिस्म के साथ हुई*

1. अल्लाह इस आयत में फरमाता है कि अपने बन्दे को ले गया,तो बन्दा किसको कहते हैं इस पर इमाम राज़ी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि

* अब्द का इतलाक़ रूह और जिस्म दोनों पर होता है

📕 मफातीहुल ग़ैब,जिल्द 20,सफह 295

और इसकी सराहत खुद क़ुरान मुक़द्दस में मौजूद है,मौला फरमाता है कि

* क्या तुमने नहीं देखा जिसने मेरे बन्दे को नमाज़ से रोका

📕 पारा 30,सूरह अलक़,आयत 9

* और ये कि जब अल्लाह का बंदा उसकी बंदगी करने को खड़ा हुआ तो क़रीब था कि वो जिन्न उस पर ठठ्ठ की ठट्ठ हो जायें

📕 पारा 29,सूरह जिन्न,आयत 19

बताइये नमाज़ रूह पढ़ती है या जिस्म या कि दोनों,ज़ाहिर सी बात है की दोनों,तो मेराज में भी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का जिस्म और रूह दोनों मौजूद थी

2. सारी दुनिया जानती है कि मेराज में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए बुर्राक़ लाया गया,अगर मेराज रूह की थी तो बुर्राक़ का क्या काम,क्या बुर्राक़ रूह को उठाने के लिए लाया गया था

3. अगर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज ख्वाब में होती तो मुनकिर इन्कार क्यों करता,क्योंकि ख्वाब में आसमान की सैर करना कोई कमाल तो नहीं,मतलब ये कि मेराज जिस्म के साथ ही हुई थी

📕 रुहुल बयान,पारा 15,सफह 8

जारी रहेगा...........
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Friday 21 April 2017

तलाक़ का शरई हुक्म


          ● तलाक़ का शरई हुक्म ●


निकाह से जहां दो अजनबी एक होते हैं वहीं उस रिश्ते को तोड़ देने का नाम तलाक़ है,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

* तमाम हलाल चीज़ों में अल्लाह को सबसे ज़्यादा ना पसन्द तलाक़ है

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 296

हालांकि तलाक़ एक जायज़ चीज़ है मगर इसका इस्तेमाल खास दुश्वारियों और परेशानियों में करने का ही हुक्म है ये नहीं कि बात बात में शौहर अपनी बीवी को तलाक़ देता बैठा रहे,क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि

* फिर अगर वो तुम्हे पसंद ना आये तो क़रीब है कि कोई चीज़ तुम्हे ना पसंद हो और अल्लाह उसमे बहुत भलाई रखे

📕 पारा 4,सूरह निसा,आयत 19

मतलब ये कि कोई इंसान सिर्फ ऐबों का मुजस्समा तो नहीं हो सकता अगर उसमे कुछ बुराई होगी तो अच्छाई भी ज़रूर होगी तो अगर औरत में ऐसी कोई खराबी नज़र भी आती है तो शौहर को उसकी खूबियों पर भी नज़र करनी चाहिए,लेकिन अगर फिर भी तलाक़ की नौबत आ ही जाए तो एक ही तलाक़ देनी चाहिए ताकि सुलह समझौते का रास्ता खुला रहे,जैसा कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि

* तलाक़ दो बार तक है फिर भलाई के साथ रोक लेना है या भलाई के साथ छोड़ देना फिर अगर शौहर ने उसे तलाक़ (तीसरी) दी तो अब वो औरत उसे हलाल ना होगी यहां तक कि दूसरे शौहर के पास रहे

📕 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 229,230

तलाक़ की 3 किस्में हैं रजई,बाइन,मुगलज़ा

रजई - वो तलाक़ है कि औरत फिलहाल निकाह से नहीं निकलती,हां इद्दत गुज़र जाए और वापस ना लाये तो बाहर हो जाएगी शौहर को इद्दत के अंदर बग़ैर निकाह के उसे लौटाने का हक़ रहता है

बाइन - वो तलाक़ है कि औरत निकाह से तो फौरन निकल जाती है मगर औरत की मर्ज़ी से शौहर फिर उसे निकाह में ला सकता है इद्दत के अंदर हो या इद्दत के बाद

मुगलज़ा - वो तलाक़ है कि औरत निकाह से फौरन बाहर हो गयी अब बग़ैर हलाला के उसके लिए हलाल ना होगी,मुगलज़ा तीन तलाक़ों से होता है अब ये तीन चाहे बरसों के फासले पर दी हो मसलन एक 20 साल पहले दी फिर कुछ दिन बाद एक और देदी अब जब भी तीसरी बार कहेगा तो मुगलज़ा हो जायेगी,या फिर इकठ्ठा दी यानि युं कहा कि मैंने तुझको तलाक़ दी तलाक़ दी तलाक़ दी या युं कहा कि मैंने तुझको 3 तलाक़ दी तो हर सूरत में मुगलज़ा वाक़ेय हो जायेगी,क्योंकि रब ने तीनो तलाक़ों का हुक़्म बयान किया मगर कोई शर्त नहीं लगाई कि एक ही मजलिस में हो या अलग अलग,और इस हुक्म की तामील हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के ज़माने मुबारक से हो रहा है जैसा कि सहाबियाये रसूल हज़रत फातिमा बिन्त क़ैस रज़ियल्लाहु तआला अन्हा अपना तलाक़ का वाक़िया बयान करती हैं कि

* मेरे शौहर (हज़रत आमिर शोअबी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु) ने मुझे यमन के लिए घर से निकलते वक़्त इकठ्ठी 3 तलाक़ दी तो अल्लाह के रसूल सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने तीनो तलाक़ नाफिज़ फरमा दी

📕 इब्ने माजा,सफह 147

इसी तरह 1 साथ 3 तलाक़ों का कई मुआमला ज़मानये नब्वी में पेश आया जिस पर आपने 3 तलाक़ों का ही हुक्म दिया,और बाद के मुहद्देसीन हज़रात ने भी इसी पर अमल किया जिसके लिए काफी हवाले मौजूद हैं मसलन

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 300
📕 मूता इमाम मालिक,सफह 284
📕 ताहावी,जिल्द 2,सफह 33
📕 फत्हुल क़दीर,जिल्द 3,सफह 469
📕 अहकामुल क़ुरान,जिल्द 1,सफह 388

हां ये अलग बात है की इकट्ठी 3 तलाक़ देना गुनाह है और हालते हैज़ व हालते हमल में तलाक़ देना नाजायज़ है इस पर हुज़ूर ने नाराज़गी का इज़हार भी किया मगर फरमाते हैं कि अगर हालते हैज़ में भी 3 तलाक़ दी तो तीनो नाफिज़ हो जायेगी लेकिन अगर तीन नहीं दी तो रजअत यानि लौटाये दोबारा उसको निकाह में लाना वाजिब है

📕 दारक़ुतनी,जिल्द 2,सफह 433
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5,सफह 604

* औरत नमाज़ नहीं पढ़ती,शौहर के लिए बनाव सिंगार नहीं करती,शौहर को या घर वालों को तंग करती है इन सूरतों में तलाक़ दे सकते हैं युंही अगर शौहर जिमअ पर क़ादिर नहीं या कोई फरायज़ से औरत को रोकता है तो औरत तलाक़ ले सकती है




📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 8,सफह 5

हलाला - अब अगर मुगलज़ा हो गयी तो बग़ैर हलाला के औरत शौहर पर हलाल ना होगी,मतलब ये कि चुंकि तलाक़ दी है तो तलाक़ की इद्दत गुज़ारेगी जो कि 3 हैज़ है अब ये हैज़ चाहे तीन महीनो में आये या फिर तीन साल में,3 हैज़ आ गए इद्दत पूरी हो गयी या फिर हमल से थी तो हैज़ तो आएगा नहीं तो अब बच्चे की विलादत ही इद्दत है अब अगर बच्चा तलाक़ देने के 1 दिन बाद ही हो जाए इद्दत पूरी हो गयी अब वो दूसरे से निकाह करेगी उससे सोहबत होगी फिर वो तलाक़ देगा तो अब उसकी इद्दत गुज़ारेगी यानि फिर से 3 हैज़,अब पहले शौहर से निकाह कर सकती है,अगर चे देखने में ये कानून सख्त है मगर इससे भी ज़्यादा सख़्त ये है कि एक मर्द सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है मगर अपनी बीवी को ग़ैर के बिस्तर में नहीं बर्दाश्त कर सकता,तो ये सज़ा अस्ल में उस मर्द के लिए है कि जिसने शरीयत को मज़ाक बनाया कि अगर चाहता तो एक तलाक़ देकर फिर से रुजू कर सकता था मगर नहीं अपनी मर्दानगी में या अपनी जिहालत में 3 क्या कइयों तलाक़ दे बैठा तो अब शरीयत से खेलने का अंजाम भी बर्दाश्त करे,ये भी याद रहे कि दूसरे शौहर से सिर्फ निकाह करके तलाक़ ले लेने से वो निकाह नहीं होगा बल्कि एक बार सोहबत करनी फर्ज़ होगी,और ये भी याद रहे कि अगर बग़ैर हलाला किये शौहर ने अपनी बीवी को रखा तो जो कुछ होगा सब ज़िना खालिस होगा और बच्चे सब हरामी पैदा होंगे

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 8,सफह 126

अब जिस मसले पर क़ुरान हदीस और इज्माअ सबका मुत्तफिक़ फैसला हो उस पर कुछ जाहिलों की वजह से इन्कार नहीं किया जा सकता और क़यामत तक उसमे फेर बदल नामुमकिन है,चाहे कुछ नाम निहाद मुसलमान हों या फिर काफिरो मुर्तद लोग जो भी इसमें फेर बदल की कोशिश करेगा वो ज़िल्लतों रुस्वाई के गढ़े में समा जाएगा,अल्लाह ने जो क़ानून हमारे लिए बनाया है उसमें बिला शुबह भलाई ही भलाई है,जो जाहिल औरतें आज modern बनकर आज़ादी का हक़ मांग रहीं हैं वो जाकर ग़ैर मुस्लिमों की औरतों का हाल देखें फिर फैसला करें

! देखें कि गैरों के मुक़ाबले इस्लाम में तलाक़ का % कितना है
! देखें कि ग़ैरों के मुकाबले इस्लाम में rape का % कितना है
! देखें कि ग़ैरों के मुकाबले इस्लाम में कितनी बच्चियों को पेट मे मारा जाता है
! देखें कि ग़ैरों के मुकाबले इस्लाम में कितनी बहुओं को जिंदा जलाया जाता है
! देखें कि ग़ैरों के यहां कितना हक़ औरतों को हासिल है और इस्लाम में कितना

*लिहाज़ा ऐसी बे ग़ैरत औरतों और जाहिल मर्दों और ऐसी सरकार की कोई भी बात या क़ानून जो कि इस्लाम के खिलाफ होगा हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ हमें मंज़ूर नहीं*

*तलाक़ की तफ्सीली मालूमात के लिए बहारे शरीयत हिस्सा 8 का मुताला किया जाए*

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Tuesday 18 April 2017

Wazayaf


***** Wazayaf *****


* अपनी मर्ज़ी की जगह शादी करने के लिए हर नमाज़ के बाद 241 बार या अज़ीज़ो या जामेओ يا عزيز يا جامع अव्वल आखिर 11,11 बार दरूद शरीफ

📕 रूहानी इलाज,सफह 203

* कहीं सख्त आग लग गई हो तो उसे बुझाने के लिए सूरह वद्दोहा पढ़कर 7 कंकरियों पर दम करें कि हर कंकरी पर एक बार पढ़कर आग में फेंकता जाये,इन शा अल्लाह आग बुझ जायेगी

📕 मसाएलुल क़ुरान,सफह 287

* जो किसी मुसीबत ज़दा को देखकर ये दुआ الحمد لله اللذي عافاني مما ابتلاك به وفضلني على كثير ممن خلق تفضيلا अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी आअफ़ानी मिम्मब तलाका बेहि वफ'द्दलानी अला कसीरिम मिम्मन खलाक़ा तफदी'ला पढ़ लेगा,इंशा अल्लाह खुद कभी उस मुसीबत में गिरफ्तार ना होगा मगर बुखार ज़ुकाम खुजली और आंखों के दर्द में ना पढ़ी जाए कि इन अमराज़ की हदीस मे बड़ी तारीफ आई है

📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 14

* जिस पर जादू किया गया हो उस पर 100 बार सूरह फलक़ और सूरह नास पढ़कर दम करें इं शा अल्लाह जादू का असर ज़ायल होगा

📕 जन्नती ज़ेवर,सफह 475

* जिस किसी से उसकी महबूब चीज़ छीन ली गयी हो तो वो गुस्ल करके पाक कपड़ा पहने और हलाल रिज्क़ से सदक़ा देकर उसके बाद 2 रकात नमाज़ नफ्ल पढ़े,बाद नमाज़ 70 बार يا بديع سموت والأرض يا قاضي الحاجات या बदीउ'स समावाते वलअ'र्द या क़ा'दियल हाजात और 1000 बार يا بديع या बदी'ओ पढ़े,इंशा अल्लाह कामयाब होगा

📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा,हिस्सा 2,सफह 252

* हर नमाज़ के बाद इसके हमेशा पढ़ने से बेशुमार बरक़ते दीनो दुनिया की ज़ाहिर होंगी,अव्वल आखिर 3 बार दुरुदे पाक फिर 100 बार,बाद नमाज़े फज्र 'या अज़ीज़ो या अल्लाहो' बाद नमाज़े ज़ुहर 'या करीमो या अल्लाहो' बाद नमाज़े अस्र 'या जब्बारो या अल्लाहो' बाद नमाज़े मग़रिब 'या सत्तारो या अल्लाहो' बाद नमाज़े इशा 'या ग़फ्फारो या अल्लाहो'

ياعزيز يا الله
يا كريم يا الله
يا جبّار يا الله
يا ستّار يا الله
يا غفّار يا الله

📕 शजरये रज़वियह,सफह 24

* जो रोज़ाना 7 बार 'अलबारिओ' البارى पढ़ेगा उसे अज़ाबे कब्र ना होगा इं शा अल्लाह

📕 सोलह सूरह,सफह 214

*मगर ये याद रखें जो शख्स नमाज़ ना पढ़े और अलग अलग कामों के लिये वज़ीफा पढ़ता रहे तो क़यामत के दिन उसका वज़ीफा उसके मुंह पर मार दिया जायेगा लिहाज़ा पहले नमाज़े पंजगाना की आदत डालें*

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफ़ह 82

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Monday 17 April 2017

फज़ाइले सदक़ा हिस्सा-2


हिस्सा-2  फज़ाइले सदक़ा



* फर्ज़ो के बाद एक मुसलमान का अपने मुसलमान भाई का दिल खुश करना अल्लाह को सबसे ज़्यादा पसंद है और जो शख्स किसी मुसलमान की कोई हाजत पूरी करता है तो अल्लाह उसकी हाजत पूरी करता है और जो कोई किसी मुसलमान से कोई तकलीफ दूर करता है तो मौला तआला क़यामत के दिन उसकी तकलीफ को दूर कर देगा

📕 इज़ानुल अज्रे फी अज़ानिल क़ब्रे,सफह 19-20

* तालिबे इल्म पर एक रुपया खर्च करना ऐसा है जैसे उसने उहद पहाड़ के बराबर सदक़ा किया

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 385

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि बन्दे का राहे खुदा में 1 दरहम खर्च करना कभी कभी 1 लाख दरहम खर्च करने से भी आगे बढ़ जाता है सहाबा इकराम ने पूछा या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम किस तरह तो आप फरमाते हैं कि किसी के पास कसीर माल है और उसने उसमे से 1 लाख दरहम खर्च किया मगर किसी के पास 2 ही दरहम थे और उसने उसमे से 1 दरहम खर्च कर दिया तो उसके 1 दरहम का सवाब 1 लाख दरहम से भी आगे बढ़ जायेगा

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 89

* जो अल्लाह की रज़ा के लिए मस्जिद तामीर कराये (यानि उसमे हिस्सा ले) तो अल्लाह उसके लिए जन्नत में मोतियों और याक़ूत से महल बनायेगा

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 591

*सदक़ा क्या होता है और क्या कर सकता है उसके लिये ये रिवायत पढ़िये*

* एक ज़िनाकार औरत एक जगह से गुज़री जहां एक कुत्ता प्यासा था वो कुंअे में मुंह लटकाए पानी को देख रहा था,उस औरत ने अपने चमड़े का मोज़ा उतारा और अपने दुपट्टे में बांधकर कुंअे से पानी निकालकर उस कुत्ते को पिलाया उसके इस अमल से मौला खुश हो गया और उसकी मगफिरत हो गई

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 409

* हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास एक शख्स आया और कहने लगा कि हज़रत आप मुझे जानवरों की बोलियां सिखा दीजिये आपने उसको मना किया कि इसमे कसीर हिकमतें है लिहाज़ा अपने इस शौक से रुजू करो मगर वो नहीं माना आपने मौला से बात की तो वो फरमाता है कि अगर ये बाज़ नहीं आता तो सिखा दो तो आपने उसे जानवरों की बोलियां सिखा दी
उसके घर में एक मुर्गा और एक कुत्ता पला हुआ था मालिक ने जब रोटी का टुकड़ा फेंका तो मुर्गे ने झट से उठा लिया इस पर कुत्ता बोला कि ये तूने गलत किया कि तेरी गिज़ा दाना दुनका है और तूने मेरी रोटी उठा ली,तो मुर्गा बोला परेशान ना हो कल मालिक का बैल मर जायेगा वो उसे यहीं कहीं फेंक देगा जितना चाहे खा लेना,मालिक ने उन दोनों की बात सुन ली और दूसरे दिन सुबह सुबह ही वो बैल को बाज़ार में बेच आया दूसरे दिन कुत्ते ने कहा कि तुमने झूठ बोला और बिला वजह मुझे उम्मीद दी तो मुर्गा कहने लगा कि मैंने झूठ नहीं कहा था मालिक ने अक्लमंदी दिखाते हुए अपनी मुसीबत दूसरे के गले डाल दी खैर कल मालिक का घोड़ा मर जायेगा तब तुम उसे खा लेना,मालिक ने सुना और दूसरे दिन घोड़ा भी बेच आया अब कुत्ते ने झल्लाते हुए कहा कि तुम बिल्कुल झूठे हो तुम्हारी कोई बात सच्ची नहीं,तो मुर्गा बोला कि ऐसा नहीं है मालिक जिसको अक़्लमंदी समझ रहा है वो उसकी सबसे बड़ी बेवकूफी है क्योंकि मौला ने उस पर कुछ मुसीबतें डाली थी जिसको उसके घर के जानवरों ने अपने सर पर ले लिया कि अगर वो मर जाते तो उसका फिदिया बन जाता मगर अब जबकि उसने अपना माल कुछ ना छोड़ा तो अब कल वो खुद मरेगा अब तो घर में दावत होगी जितना चाहे खा लेना
अब जो मालिक ने सुना तो उसके होश उड़ गए वो भागता हुआ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बारगाह में पहुंचा और सारी बात कह डाली,तो आप फरमाते हैं कि मैंने तो पहले की कहा था कि जो कुछ बन्दों से छिपाकर रखा गया है उसमें उनके ही लिए भलाई है मगर तुम ना माने अगर तुम उनकी बोली ना सीखते तो उन जानवरों की मौत तुमहारी तरफ से सदक़ा हो जाती और तुम्हारी जान बच जाती मगर तुमने उन्हें दूर कर दिया अब ये क़ज़ा टल नहीं सकती कल तुम यक़ीनन मरोगे,और दूसरे दिन वो मर गया

📕 सच्ची हिकायत,सफह 97

जारी रहेगा...........
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Wednesday 12 April 2017

फज़ाइले सदक़ा हिस्सा-1


फज़ाइले सदक़ा  हिस्सा-1



* क़ुरान में मौला तआला इरशाद फरमाता है कि "और जो बुख्ल (कंजूसी) करते हैं उस चीज़ में जो अल्लाह ने उन्हें अपने फज़्ल से दी हरगिज़ उसे अपने लिए अच्छा ना समझें बल्कि वो उनके लिए बुरा है

📕 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 180

* हदीसे पाक में आता है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "जाहिल सखी इबादत गुज़ार कंजूस से बेहतर है

📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 165

* सदक़ा गुनाहों को इस तरह मिटाता है जैसे पानी आग को बुझा देता है

📕 मजमउज़ ज़वायेद,जिल्द 3,सफह 419

* सदक़ा रब के गज़ब को ठंडा करता है और बुरी मौत को दफा करता है

📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 527

* सदक़ा वो है कि साईल के हाथ में जाने से पहले मौला तआला क़ुबूल फरमा लेता है

📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 460

* सदक़ा क़ब्र की गर्मी को कम करता है एक मुसलमान का भूले हुए को राह बताना किसी से मुस्कुराकर बात करना रास्ते से पत्थर हटा देना या कुछ भी ऐसा करना जिससे किसी को फायदा पहुंचता है तो ये उसकी तरफ से सदक़ा है और सदक़ा बन्दे को रब से क़रीब यानि जन्नत से क़रीब कर देता है और कंजूसी रब से दूर और जहन्नम से क़रीब कर देता है

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 80--84

* मौला तआला ने जब ज़मीन को पैदा फरमाया तो वो रब के जलाल से कांपने लगी तो उस पर पहाड़ बसा दिए जिससे उसकी हरकत मौक़ूफ हो गयी,फरिश्तो को पहाड़ की ताक़त पर बड़ा ताज्जुब हुआ उन्होंने मौला से पूछा कि क्या पहाड़ से भी ताकतवर कोई चीज़ दुनिया में है तो मौला फरमाता है कि हां वो लोहा है फिर फरिश्ते अर्ज़ करते हैं कि मौला क्या लोहे से भी ताकतवर कोई चीज़ है तो मौला फरमाता है कि हां वो आग है फिर फरिश्तो ने अर्ज़ किया कि ऐ मौला क्या आग से भी ताकतवर कोई चीज़ है तो मौला फरमाता है कि हां वो पानी है फिर फरिश्ते अर्ज़ करते हैं कि मौला क्या पानी से ताक़तवर भी कुछ है तो मौला फरमाता है कि हां वो हवा है फिर फरिश्ते अर्ज़ करते हैं कि मौला क्या हवा से भी कोई चीज़ ताक़तवर है तो मौला इरशाद फरमाता है कि हां इंसान का किया हुआ वो सदक़ा जो उसने छिपाकर दिया हो वो हर चीज़ से ज़्यादा ताकतवर है

📕 मिश्कात,जिल्द 1,सफह 530

* हदीसे पाक में है कि हज़रत सअद बिन उबादा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की मां का इंतेकाल हो गया आपने नबी की बारगाह में अर्ज़ की या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेरी मां का इंतेकाल हो गया अगर मैं उनके लिए सदक़ा करूं तो क्या उनको सवाब पहुंचेगा आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया हां फिर उन्होंने पूछा कि कौन सा सदक़ा अफज़ल है तो आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि पानी

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 266

* जो किसी मुसलमान को खाना खिलाये तो मौला उसे जन्नत के मेवे खिलायेगा और जो किसी मुसलमान को पानी पिलाए तो मौला उसे जन्नत का शर्बते खास पिलायेगा और जो किसी मुसलमान को कपड़ा पहनाये तो मौला उसे जन्नती लिबास पहनायेगा और जब तक उस कपड़े का एक टुकड़ा भी उसके बदन पर रहेगा वो अल्लाह की हिफाज़त में रहेगा

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 4,सफह 204-218

जारी रहेगा...........
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Tuesday 11 April 2017

टखनों का ढका होना


● टखनों का ढका होना ●


* जो अज़ार टखनों के नीचे है वो जहन्नम में है

📕 बुखारी,जिल्द 7,हदीस 678
📕 अत्तरगीब वत्तर्हीब,जिल्द 3,सफह 88
📕 सुनन कुबरा,जिल्द 2,सफह 244

* अल्लाह उस पर रहमत की नज़र नहीं फरमायेगा जो अपने कपड़ो को लटकाता है

📕 बुखारी,जिल्द 7,हदीस 679

* एक शख्स नमाज़ पढ़ रहा था जिसकी अज़ार टखनों से नीचे थी तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उसको बुलाया और फरमाया कि जाकर फिर से वुज़ू कर और नमाज़ पढ़ कि तेरी नमाज़ नहीं हुई

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 100

*यहां हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का मकसद सिर्फ उसको तम्बीह करना था वरना नमाज़ इस सूरत में भी हो जाती है,जैसा कि दूसरी हदीसे पाक में है कि*

* जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने ये फरमाया कि जिसकी अज़ार टखनों के नीचे है तो वो जहन्नम में है तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अगर मैं अपनी तहबन्द का खास ख्याल ना रखूं तो अक्सर वो टखनों के नीचे ही रहती है तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि ऐ अबू बक्र तुम उनमें से नहीं हो जो तकब्बुर से ऐसा करते हैं

📕 बुखारी,जिल्द 7,हदीस 675
📕 इब्ने अबी शैबा,जिल्द 8,सफह 199
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 449

*मतलब साफ है कि जो घमंड की वजह से ऐसा करेगा तो ये नाजायज़ है वरना मकरूह,अब यहां एक मसला ये समझ लीजिये कि नमाज़ में टखना खोलने के लिए कुछ लोग पैंट मोड़कर नमाज़ पढ़ते हैं उनका ये फेअल हरगिज़ जायज़ नहीं जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि*

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि हमें ये हुक्म दिया गया है कि नमाज़ में अपने कपड़ो को ना समेटें

📕 मुस्लिम,जिल्द 4,हदीस 993

*कपड़ो को मोड़ना इसको कहते हैं खिलाफे मोताद यानि कि कपड़ा जिस फैशन पर सिला गया है उसी तौर पर रखकर नमाज़ पढ़ी जाए कि अगर उसमे कुछ भी बदलाव किया तो नमाज़ मकरूहे तहरीमी होगी,गोया टखना खोलने के लिए पैंट मोड़ना ऐसा ही है जैसा कि कोई बारिश की चंद बूंदों से बचने के लिए किसी परनाले के नीचे खड़ा हो जाए कि पहले तो शायद कुछ ही हिस्सा भीगता पर अब तो पूरी तरह भीग गया,मतलब ये कि टखना खुला रखना सुन्नत ज़रूर है और हर वक़्त खुला रखना सुन्नत है ना कि खाली नमाज़ में और इसी तरह नमाज़ पढ़ना मकरूहे तंज़ीही यानि कराहत है मगर नमाज़ हो गई लेकिन अगर टखने को खोलने की गर्ज़ से कपड़े को मोड़ लिया तो ये मकरूहे तहरीमी यानि नाजायज़ है कि अब नमाज़ को दोहराना वाजिब है,फिर ये मोड़ना चाहे पैंट की मोहरी हो या शर्ट की आस्तीन दोनों का एक ही हुक्म है और ये हुक्म सिर्फ मर्दों के लिये है वरना औरतों के लिये यही हुक्म है कि वो अपनी अज़ार टखनों से 1 बालिश्त या 2 बालिश्त बढाकर ही रखें ताकि सतर खुलने का कोई अमकान ना रहे*

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 84

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Sunday 2 April 2017

बीबी से मिलने का शरीअत में तरीका पूरा जरूर पड़े ।।।।।


बीबी से मिलने का शरीअत में तरीका पूरा जरूर पड़े ।।।।।



#आदाबे_सोहबत (जिमाअ) ताल्लुक़ात के बयान

मियां बीवी के ताल्लुक़ से कुछ ऐसे मसले मसायल हैं जिनका जानना उनको ज़रूरी है मगर वो नहीं जानते,क्यों,क्योंकि दीनी किताब हम पढ़ते नहीं और आलिम से पूछने में शर्म आती है मगर अजीब बात है कि मसला पूछने में तो हमें शर्म आती है मगर वही ग़ैरत उस वक़्त मर जाती है जब दूल्हा अपने दोस्तों को और दुल्हन अपनी सहेलियों को पूरी रात की कहानी सुनाते हैं,खैर ये msg सेव करके रखें और अपने दोस्तों और अज़ीज़ो में जिनकी शादियां हों उन्हें तोहफे के तौर पर ये msg सेंड करें

* हज़रत इमाम गज़ाली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिमअ यानि सोहबत करना जन्नत की लज़्ज़तों में से एक लज़्ज़त है

📕 कीमियाये सआदत,सफह 496

* हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि इंसान को जिमअ की ऐसी ही ज़रूरत है जैसी गिज़ा की क्योंकि बीवी दिल की तहारत का सबब है

📕 अहयाउल उलूम,जिल्द 2,सफह 29

* हदीसे पाक में आता है कि जिस तरह हराम सोहबत पर गुनाह है उसी तरह जायज़ सोहबत पर नेकियां हैं

📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 324

* उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अंहा से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जब एक मर्द अपनी बीवी का हाथ पकड़ता है तो उसके नामये आमाल में एक नेकी लिख दी जाती है और जब उसके गले में हाथ डालता है तो दस नेकियां लिखी जाती है और जब उससे सोहबत करता है तो दुनिया और माफीहा से बेहतर हो जाता है और जब ग़ुस्ले जनाबत करता है तो पानी जिस जिस बाल पर गुज़रता है तो हर बाल के बदले एक नेकी लिखी जाती है और एक गुनाह कम होता जाता है और एक दर्जा बुलंद होता जाता है

📕 गुनियतुत तालेबीन,सफह 113

* हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से एक शख्स ने अर्ज़ किया कि मैंने जिस लड़की से शादी की है मुझे लगता है कि वो मुझे पसंद नहीं करेगी तो आप फरमाते हैं कि मुहब्बत खुदा की तरफ से होती है और नफरत शैतान की तरफ से तो ऐसा करो कि जब तुम पहली बार उसके पास जाओ तो दोनों वुज़ु करो और 2 रकात नमाज़ नफ्ल शुकराना इस तरह पढ़ो कि तुम इमाम हो और वो तुम्हारी इक़्तिदा करे तो इन शा अल्लाह तुम उसे मुहब्बत और वफा करने वाली पाओगे

📕 गुनियतुत तालेबीन,सफह 115

* नमाज़ के बाद शौहर अपनी दुल्हन की पेशानी के थोड़े से बाल नर्मी और मुहब्बत से पकड़कर ये दुआ पढ़े अल्लाहुम्मा इन्नी असअलोका मिन खैरेहा वखैरे मा जबलतहा अलैहे व आऊज़ोबेका मिन शर्रेहा मा जबलतहा अलैह तो नमाज़ और इस दुआ की बरकत से मियां बीवी के दरमियान मुहब्बत और उल्फत क़ायम होगी इन शा अल्लाह

📕 अबु दाऊद,सफह 293

* खास जिमा के वक़्त बात करना मकरूह है इससे बच्चे के तोतले होने का खतरा है उसी तरह उस वक़्त औरत की शर्मगाह की तरह नज़र करने से भी बचना चाहिये कि बच्चे का अंधा होने का अमकान है युंही बिल्कुल बरहना भी सोहबत ना करें वरना बच्चे के बे हया होने का अंदेशा है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 46

* हमबिस्तरी के वक़्त बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ना सुन्नत है मगर याद रहे कि सतर खोलने से पहले पढ़ें और सबसे बेहतर है कि जब कमरे में दाखिल हो तब ही बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़कर दायां क़दम अन्दर दाखिल करें अगर हमेशा ऐसा करता रहेगा तो शैतान कमरे से बाहर ही ठहर जाएगा वरना वो भी आपके साथ शरीक होगा

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 410

* आलाहज़रत फरमाते हैं कि औरत के अंदर मर्द के मुकाबले 100 गुना ज़्यादा शहवत है मगर उस पर हया को मुसल्लत कर दिया गया है तो अगर मर्द जल्दी फारिग हो जाये तो फौरन अपनी बीवी से जुदा ना हो बल्कि कुछ देर ठहरे फिर अलग हो

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 183

* जिमअ के वक़्त किसी और का तसव्वुर करना भी ज़िना है और सख्त गुनाह और जिमअ के लिए कोई वक़्त मुकर्रर नहीं हां बस इतना ख्याल रहे कि नमाज़ ना फौत होने पाये क्योंकि बीवी से भी नमाज़ रोज़ा एहराम एतेकाफ हैज़ व निफास और नमाज़ के ऐसे वक़्त में सोहबत करना कि नमाज़ का वक़्त निकल जाये हराम है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 584

* मर्द का अपनी औरत की छाती को मुंह लगाना जायज़ है मगर इस तरह कि दूध हलक़ से नीचे ना उतरे ये हराम है लेकिन ऐसा हो भी गया तो तौबा करे मगर इससे निकाह पर कोई फर्क नहीं आता

📕 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 58
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द ,सफह 568

* मर्द व औरत को एक दूसरे का सतर देखना या छूना जायज़ है मगर हुक्म यही है कि मक़ामे मख़सूस की तरफ ना देखा जाये कि इससे निस्यान का मर्ज़ होता है और निगाह भी कमज़ोर हो जाती है


📕 रद्दुल मुख्तार,जिल्द 5,सफह 256

* मर्द नीचे हो और औरत ऊपर,ये तरीका हरगिज़ सही नहीं है इससे औरत के बांझ हो जाने का खतरा है

📕 मुजरबाते सुयूती,सफह 41

* फरागत के बाद मर्द व औरत को अलग अलग कपड़े से अपना सतर साफ करना चाहिए क्योंकि दोनों का एक ही कपड़ा इस्तेमाल करना नफरत और जुदायगी का सबब है

📕 कीमियाये सआदत,सफह  266

* एहतेलाम होने के बाद या दूसरी मर्तबा सोहबत करना चाहता है तब भी सतर धोकर वुज़ु कर लेना बेहतर है वरना होने वाले बच्चे को बीमारी का खतरा है

📕 क़ुवतुल क़ुलूब,जिल्द 2,सफह 489

* ज़्यादा बूढ़ी औरत से या खड़े होकर सोहबत करने से जिस्म बहुल जल्द कमज़ोर हो जाता है उसी तरह भरे पेट पर सोहबत करना भी सख्त नुकसान देह है

📕 बिस्तानुल आरेफीन,सफह 139

* जिमअ के बाद औरत को दाईं करवट पर लेटने का हुक्म दें कि अगर नुत्फा क़रार पा गया तो इन शा अल्लाह लड़का ही होगा

📕 मुजरबाते सुयूती,सफह 42

* जिमअ के फौरन बाद पानी पीना या नहाना सेहत के लिए नुकसान देह है हां सतर धो लेना और दोनों का पेशाब कर लेना सेहत के लिए फायदे मंद है

📕 बिस्तानुल आरेफीन,सफह 138

* तबीब कहते हैं कि हफ्ते में दो बार से ज़्यादा सोहबत करना हलाकत का बाईस है,शेर के बारे में आता है कि वो अपनी मादा से साल में एक मर्तबा ही जिमअ करता है और उसके बाद उस पर इतनी कमजोरी लाहिक़ हो जाती है अगले 48 घंटो तक वो चलने फिरने के काबिल भी नहीं रहता और 48 घंटो के बाद जब वो उठता है तब भी लड़खड़ाता है

📕 मुजरबाते सुयूती,सफह 41

* औरत से हैज़ की हालत में सोहबत करना जायज नहीं अगर चे शादी की पहली रात ही क्यों ना हो और अगर इसको जायज़ जाने जब तो काफिर हो जायेगा युंही उसके पीछे के मक़ाम में सोहबत करना भी सख्त हराम है

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 78

* मगर हैज़ की हालत में वो अछूत भी नहीं हो जाती जैसा कि बहुत जगह रिवाज है कि फातिहा वगैरह का खाना भी नहीं बनाने देते ये जिहालत है,बल्कि उसके साथ सोने में भी हर्ज नहीं जबकि शहवत का खतरा ना हो वरना अलग सोये

📕 फतावा मुस्तफविया,जिल्द 3,सफह 13

* क़यामत के दिन सबसे बदतर मर्द व औरत वो होंगे जो अपनी राज़ की बातें अपने दोस्तों को सुनाते हैं

📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 464

* औरत से जुदा रहने की मुद्दत 4 महीना है इससे ज़्यादा दूर रहना मना है

📕 तारीखुल खुलफा,सफह 97

* आलाहज़रत फरमाते हैं कि हमल ठहरने से रोकने के लिए दवा या कोई और तरीका इस्तेमाल करना या हमल ठहरने के बाद उसमें रूह फूकने की मुद्दत 120 दिन है तो अगर किसी उज़्रे शरई मसलन बच्चा अभी छोटा है और ये दूसरा बच्चा नहीं चाहता तो हमल साकित करना जायज़ है मगर रूह पड़ने के बाद हमल गिराना हराम और गोया क़त्ल है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 524

* अगर तोगरे में क़ुरान की आयत लिखी है तो जब तक उस पर कोई कपड़ा ना डाला जाए उस कमरे में सोहबत करना या बरहना होना बे अदबी है हां क़ुरान अगर जुज़दान में है तो हर्ज नहीं युंही किबला रु होना भी मना है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 522

* जो बच्चा समझदार हो उसके सामने सोहबत करना मकरूह है

📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 14

* किसी की दो बीवियां हैं अगर चे उसका किसी से पर्दा नहीं मगर औरत का औरत से पर्दा है तो एक के सामने दूसरे से सोहबत करना जायज़ नहीं

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह २०७

याद रहे पहली रात खून आना कोई ज़ुरूरी नही है...जो जाहिल इस तरह की बात सोचते है वो कमिलमि है क्योंकि आज के दौर में जिस झिल्ली के फटने से वो खून ऑर्ट की शर्मगाह से आता है वो बचपन में खेल,कूद,साइकल चलाने हटता के और भी चीज़ों से फट सकती है...लिहाज़ा अक़्ल से काम लिया कीजिये....

Tuesday 28 March 2017

बांझपन-sterility ** ilaj **


बांझपन-sterility  ** ilaj **

औलाद का होना एक नेमत है और इस नेमत से कभी कभी इंसान महरुम रह जाता है,ऐसा नहीं है कि इसके लिए मर्द या औरत ज़िम्मेदार ही हों बल्कि ये सब रब की मर्ज़ी पर है जैसा कि आपने सुना ही होगा कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की 11 बीवियां थी मगर 2 को छोड़कर किसी से आपको औलाद नहीं हुई इसका ये मतलब नहीं कि माज़ अल्लाह आपकी बीवियों में कोई नुक्स था बल्कि वही रब की मर्ज़ी नहीं थी,और जब किसी को देना चाहता है तो इंसान का ख्याल भी वहां नहीं पहुंच सकता जैसा कि जब हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम पैदा हुए तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की उम्र 120 साल और हज़रते सारा रज़ियल्लाहु तआला अंहा की उम्र 99 साल थी,कभी कभी बिना किसी कमी के भी इंसान औलाद से महरुम हो सकता है बेहतर है कि अल्लाह की हिकमत पर भरोसा रखें कि वो जो करता है अच्छा करता है बस इंसान अपनी कोशिश जारी रखे यानि दुआ करता रहे

औलाद ना होने की ये वजहें हो सकती है

! मर्द की मनी में बच्चे पैदा करने वाले कीड़े ही ना हों या हों मगर कमज़ोर हों ऐसा माज़ अल्लाह हाथ से मनी निकालने या किसी बीमारी के सबब भी हो सकता है

! औरत की बच्चे दानी का मुंह बंद हो या फिर उसके बच्चे दानी में भी ova यानि कीड़े ना हों

कमी किसमे है ये जानने के लिए दोनों अपनी अपनी मनी अलग अलग पानी में डालें जिसकी मनी पानी की तह तक ना जाए यानि घुल जाए या तैर जाए तो अस्ल इलाज की ज़रूरत उसको है,अगर मर्द के अंदर कमी है तो हमदर्द के दवाखने से रेक्स कंपनी का माजून मुग़ल्लिज़ जवाहिर लाकर इस्तेमाल करे साथ ही सोहबत में एतेदाल को मलहूज़ रखे,औरत के हैज़ यानि पीरियड की मुद्दत कम से कम 3 दिन और ज़्यादा से ज़्यादा 10 दिन होती है तो अगर उसको हर महीने वक़्त मुक़र्रह पर हैज़ आता है तो उसे बांझ नहीं कहा जा सकता,एक दो दिन आगे पीछे हो सकता है तो ऐसे में बच्चा ना होने की कोई दूसरी वजह होगी,ज़ैल में इस बारे में कुछ तहरीर करता हूं अगर किसी को इससे फायदा पहुंचे तो मुझ गुनहगार को अपनी दुआओं में याद रखें

* एक शख्स हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में आकर अपनी बे औलादी की शिकायत की तो आपने उसे फरमाया कि अण्डे खाया करो

📕 करीनये ज़िन्दगी,सफह 197

* जुमेरात के दिन औरत रोज़ा रखे और जितना दूध पेट भरकर पी सकती हो उतने पर सूरह मुज़म्मिल शरीफ 7 मर्तबा पढ़कर दम करे और इसी से अफ्तार करे अगर दूध हज़म हो गया तो इन शा अल्लाह हमल ठहरेगा और अगर नहीं हज़म हुआ अल्लाह ना करे तो फिर सब्र करे और दुआ करती रहे,बेहतर है कि औरत पढ़े लेकिन अगर सही मखरज से ना पढ़ सकती हो तो किसी हाफिज़ से पढ़वाकर दूध पर दम करवायें

📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा,हिस्सा 1,सफह 31

* अगर औरत को हमल ना ठहरता हो या बांझ भी हो तब भी 7 दिन रोज़ा रखे अफ्तार के वक़्त पानी पर 21 बार या मुसव्वेरो يا مصور पढ़कर दम करे और इसी से अफ्तार करे इन शा अल्लाह हमल रुकेगा,दूसरा ये कि मियां बीवी सोहबत से पहले 10 बार या मुताकब्बेरो يا متكبر पढ़ा करें

📕 सोलह सूरह,सफह 214

* ये दुआ हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम की है जबकि आप बूढ़े हो चुके थे और आपकी बीवी बांझ मगर इसके बा वजूद भी मौला ने आपको हज़रत यहया अलैहिस्सलाम की बशारत दी,इसलिए हर नमाज़ के बाद मर्द व औरत दोनों कम से कम 3 मर्तबा अव्वल आखिर 3,3 बार दरूद शरीफ पढ़ें रब्बी ला तज़र्नी फरदौंव व अन्ता खैरुल वारेसीन رب لاتذرني فردا وانت خير الوارثين ,बहुत बेहतर है कि इसके अलावा भी औरत एक वक़्त मुकर्रर करके बावुज़ू किबला रु दो ज़ानु होकर 100 बार और मर्द किसी वली के आस्ताने में हाज़िरी दे और 100 मर्तबा दिल से वहां ये दुआ पढ़े और उसके वसीले से दुआ करे

📕 मसाएलुल क़ुरान,सफह 282

* हर वक़्त वुज़ु बे वुज़ु या सलामो يا سلام का विर्द करना भी बहुत मुफीद है

📕 रूहानी इलाज,सफह 200

* अगर औरत की ला इल्मी में उसे घोड़ी का दूध पिला दिया जाए और शौहर 1 घंटे बाद उससे क़ुरबत करे तो इन शा अल्लाह हमाल ठहरेगा

📕 मुजर्बाते सुयूती,सफह 188

* औरत अस्कंद नागौरी बारीक पीसकर छानकर रोज़ाना 10 ग्राम गाय के दूध के साथ शुरू हैज़ से खाती रहे और पाक होने के बाद शौहर उसे क़ुरबत करे हमल रहेगा

📕 इलाजुल गुरबा,सफह 143

परहेज़ - ज़्यादा गर्म चीज़,खट्टा,मिर्च मसाला,बादी खाने से बचें

गिज़ा - शोरबा,हलकी रोटी,अरहर,मूंग,लौकी,तुरई,भिन्डी,पालक वगैरह

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Friday 24 March 2017

शादी, हिस्सा-6, औलाद और उसकी तरबियत


हिस्सा-6

                             *शादी*

            *औलाद और उसकी तरबियत*


* जो औरत हमल की तकलीफ बर्दाश्त करती है उसे सारी रात नमाज़ पढ़ने का और हर दिन रोज़ा रखने का सवाब मिलता है और वो उस मुजाहिद की तरह है जो जिहाद में है और दर्दे ज़ह के हर झटके पर एक ग़ुलाम आज़ाद करने का अज्र मिलता है

📕 ग़ुनियतुत तालिबीन,सफह 113

* हामिला औरत को चाहिए कि हमेशा खुश रहे,रोज़ाना ग़ुस्ल करे,पाक साफ कपड़े पहने,ग़िज़ा हलकी मगर मुक़व्वी खाये,खूबसूरत तस्वीरें देखें,बे वक़्त खाने पीने या सोने जागने से परहेज़ करे,फलों का इस्तेमाल ज़्यादा करे खासकर संगतरा कि संगतरा खाने से बच्चा खूबसूरत होगा,नमाज़ पढ़ना ना छोड़े और क़ुरान की तिलावत करती रहे खुसूसन सूरह मरियम की,अगर चाहते हैं कि आपका बच्चा आपका फरमाबरदार रहे तो सबसे पहले आपको नेक बनना पड़ेगा क्या सुना नहीं कि हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मां के पेट में ही 18 पारे के हाफिज़ हो गए थे मतलब साफ है आप जो भी करेंगे उसका सीधा असर आपके बच्चे पर पड़ेगा लिहाज़ा झूट चुग़ली बदनज़री गाना बजाना गाली गलौच हराम ग़िज़ा से परहेज़ी और तमाम मुंकिराते शरइया से बचें

📕 सलीकये ज़िन्दगी,सफह 50

* बच्चा कभी मां के मुशाहबे होता है तो कभी बाप के ऐसा इसलिए होता है कि औरत के रहम में 2 खाने होते हैं,दायां लड़के के लिए और बायां लड़की के लिए,तो अगर मर्द का नुत्फा ग़ालिब आया और सीधे खाने में पड़ा तो लड़का होगा और उसकी आदत व चाल-ढाल मर्दाना ही होंगे लेकिन अगर मर्द का नुत्फा ग़ालिब तो आया मगर बाएं खाने में गिरा तो सूरतन तो लड़का होगा मगर उसके अंदर औरतों की खसलत मौजूद होगी मसलन दाढ़ी मुंडाना ज़ेवर पहनना हाथ पैर में मेंहदी लगाना औरतों जैसे बाल रखना जूड़ा बांधना यानि उसको औरतों की वज़अ कतअ बनाने का बड़ा शौक़ होगा युंही अगर औरत का नुत्फा ग़ालिब आया और बाएं खाने में गिरा तो ज़हिरो बातिन में लड़की ही होगी लेकिन अगर औरत का नुत्फा ग़ालिब तो आया मगर रहम के दाहिने खाने में रुका तो जब तो सूरतन लड़की होगी मगर उसके अंदर मरदाना खसलत पाई जायेगी मसलन घोड़ा चलाना बाईक चलाना मर्दाने कपड़े व जूते पहनना मर्दों की तरह छोटे छोटे बाल रखना बोल चाल में भी मरदाना पन रहेगा

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 362

* बच्चा मां और बाप दोनो का होता है मतलब उसकी हड्डियां मर्द के नुत्फे से बनती है और गोश्त वगैरह औरत के नुत्फे से

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 607

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं की "बेशक औलाद की खुशबु जन्नत की खुशबु है

📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 515

* और फरमाते हैं कि "निकाह करो कि मैं तुम्हारी कसरत पर फख्र करूंगा यानि ज़्यादा बच्चे पैदा करो, मगर यहां तो हाल ही अलग है पहले तो हम 2 हमारे 2 का नारा हुआ करता था और आज कल हम 1 हमारा 1 फैशन में है,माज़ अल्लाह

📕 मुसनदे इमाम आज़म,सफह 208

* लड़की पैदा होना बाईसे बरक़त है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं "जिसके बेटियां हों और वो उनकी अच्छी तरह परवरिश करे तो क़यामत के दिन वो और मैं इतने पास होंगे फिर आपने अपनी उंगलियां मिलाकर दिखाया कि इस तरह

📕 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 330

* जिसकी 1 या 2 या 3 बेटियां या बहने हों और वो उनकी परवरिश करे यहां तक कि उनकी शादियां करा दे तो उस पर जन्नत वाजिब है

📕 मिश्कात,सफह 423

* सुब्हान अल्लाह ये रिवायत पढ़िए हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "जिस घर में लड़कियां होती हैं तो आसमान से रोज़ाना उस घर पर 12 रहमतें नाज़िल होती है और उस घर की फरिश्ते ज़ियारत करते हैं और उस लड़की के मां बाप के नामये आमाल में रोज़ाना साल भर की इबादत का सवाब लिखा जाता है अल्लाहो अकबर

📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 2,सफह 83

* लड़कियों की पैदाईश पर नाखुश होना काफिरों का तरीका है जैसा कि मौला तआला फरमाता है कि "और जब उनमें से किसी को बेटी होने की खुश खबरी दी जाती है तो दिन भर उसका मुंह काला रहता है
और गुस्सा खाता है

📕 पारा 14,सूरह नहल,आयत 58

* जब बच्चे की विलादत हो तो उसे फौरन ग़ुस्ल देकर सीधे कान में अज़ान कही जाए और बाएं कान में तकबीर,बेहतर है कि अज़ान 4 बार कहें और तकबीर 3 बार,और कोई मुत्तक़ी परहेज़गार शख्स  खजूर चबाकर बच्चे के मुंह में डाले कि हदीसे पाक में आता है कि बच्चे को पहली घुट्टी देने वाले का असर बच्चे पर आता है इसीलिए सहाबा इकराम अपने मौलूद बच्चों को लेकर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में आते और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम उनके मुंह में अपना लोआबे पाक डाल देते


📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 46

* सातवें दिन बच्चे का अक़ीक़ा किया जाए उसका बाल मूंडकर उसके बराबर चांदी सदक़ा करे या उसकी कीमत और बच्चे का नाम रखे,लड़के के लिए 2 बकरे और लड़की के लिए 1 बकरी या लड़के में बकरी कर दी और लड़की में बकरा तब भी कोई हर्ज नहीं युंही 2 की जगह 1 या 1 की जगह 2 कर दिया तो भी हो जायेगा उसी तरह बड़े जानवर में हिस्सा लिया तो भी अक़ीक़ा हो जायेगा,और अक़ीक़े का गोश्त बच्चे के मां बाप दादा दादी नाना नानी सब खा सकते हैं

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 15,सफह 154

* जो औरतें बच्चों को अपना दूध नहीं पिलाती इस गर्ज़ से कि कहीं उनकी खूबसूरती कम ना हो जाए वो इस रिवायत को पढ़ें कि शबे मेराज में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने कुछ औरतों को देखा कि जिनके पिस्तान ज़्यादा बड़े हैं उन्हें सांप डस रहे हैं तो जिब्रीले अमीन फरमाते हैं कि ये वो औरतें हैं जो बच्चों को अपना दूध नहीं पिलाती थीं

📕 शराहुस्सुदूर,सफह 153

* बच्चे की दूध की हर चुस्की के बदले मां को एक ग़ुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलता है और जब वो उसका दूध छुड़ाती है तो ग़ैब से निदा आती है कि ऐ औरत तेरे आज तक के सारे गुनाह माफ हुए अब तू नए सिरे से नेकियां कर

📕 ग़ुनियतुत तालिबीन,सफह 113

* मां का दूध बच्चे के लिए हर चीज़ से ज़्यादा फायदेमंद है तबीबो का यही कहना है कि जो बच्चा मां के दूध पर पला है वो बहुत कम बीमार पड़ेगा और जो मां के दूध से महरूम रहेगा वो कमज़ोर और तरह  तरह की बिमारियों में ज़िन्दगी भर मुब्तेला रहेगा,बच्चे की परवरिश पर मां का हक़ है तो बग़ैर उसकी मर्ज़ी के कोई उसका बच्चा नहीं पाल सकता हां अगर उसको दूध वगैरह नहीं उतरता तो ऐसी सूरत में दाया वगैरह को दिया जाए या डब्बे का दूध इस्तेमाल करायें

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 472

* बच्चे को 2 साल से ज़्यादा दूध पिलाना मना है और ढाई साल से ज़्यादा पिलाना हराम हां 2 साल से पहले अगर दूध छुड़ाना चाहें तो छुड़ा सकता है इजाज़त है

📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 7,सफह 29

एक बहुत ज़रूरी बात बेशक अपनी औलाद को नेक तालीम देना हर मां बाप पर फर्ज़ है लेकिन अगर मां बाप ये गलती कर बैठे हैं कि उन्होंने अपने बच्चों को दीनी तालीम नहीं दी तो बेशक वो कुसूर वार हैं  मगर उतना नहीं जितना कि आजकल की औलाद उन्हें ठहराती है मसलन कोई भी बात पड़ी तो फौरन कह दिया कि मेरे मां बाप ने हमें पढ़ाया ही नहीं या सिर्फ यही सोच ही लिया कि गलती हमारी थोड़ी ही थी,तो उनकी गलती उसी वक़्त मानी जाती जबकि औलाद बालिग़ होने से पहले मर जाती और जब बालिग़ हो गयी तो दुनिया भर की सारी खुराफात तो खुद सीख गया

गुटखा खाना सिगरेट पीना क्या मां बाप ने सिखाया था
लौंडिया बाजी करना क्या मां बाप ने सिखाया था
अय्याशी करना भी क्या मां बाप ने सिखाया था
कुछ शराब पीते हैं क्या मां बाप ने सिखाया था
नाचना गाना हुल्लड़ बाज़ी करना क्या मां बाप ने सिखाया था
झूट मक्कारी आवारा गर्दी करना क्या मां बाप ने सिखाया था

नहीं ना फिर भी सीख गया,तो जब ये सब खुद से सीख लिया तो इल्मे दीन क्यों नहीं सीखा ये सिर्फ एक बहाना है और बहाने से इंसान को फुसलाया जा सकता है फरिश्तों को नहीं,लिहाज़ा अगर फरिश्तों की मार से बचना चाहते हैं तो मरने से पहले हर वो चीज़ जिसकी एक इंसान को ज़रूरत पड़ती है उतना इल्म हासिल कर लें क्योंकि ज़रूरत का इल्म हासिल करना हर मुसलमान पर फर्ज़ है

जारी रहेगा...........
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  *Aulaad aur uski tarbiyat*

* Jo aurat hamal ki taqleef bardaasht karti hai use saari raat namaz padhne ka aur har din roza rakhne ka sawab milta hai aur wo us mujahid ki tarah hai jo jihaad me hai aur darde zah ke har jhatke par ek ghulam aazad karne ka ajr milta hai

📕 Guniyatut taalebeen,safah 113

* Haamila aurat ko chahiye ki hamesha khush rahe,rozana gusl kare,paak saaf kapde pahne,giza halki magar muqavvi khaaye,khoobsurat tasweerein dekhe,be waqt khaane peene ya sone jaagne se parhez kare,phalo ka istemaal zyada kare khaaskar sangtara ki sangtara khaane se bachcha khoobsurat hoga,namaz padhna na chhode aur quran ki tilawat karti rahe khususan surah mariyam ki,kyunki agar chahte hain ki aapka bachcha aapka farma bardaar rahe to sabse pahle aapko neik banna padega kya suna nahin ki huzoor ghause paak raziyallahu taala anhu maa ke peit me hi 18 paare ke haafiz ho gaye the matlab saaf hai aap jo bhi karenge uska seedha asar aapke bachche par padega lihaza jhoot chugli badnazri gaana bajana gaali galauch haraam giza se parhezi aur tamam munkirate sharaiya se bachen

📕 Saliqaye zindagi,safah 50

* Bachcha kabhi maa ke mushaabe hota hai to kabhi baap ke aisa isliye hota hai ki aurat ke raham me 2 khaane hote hain,daaya ladke ke liye aur baaya ladki ke liye,to agar mard ka nutfa gaalib aaya aur seedhe khaane me pada to ladka hoga aur uski aadat wa chaal-dhaal mardaana hi honge lekin agar mard ka nutfa gaalib to aaya magar baaye khaane me gira to hoga to suratan to ladka hoga magar uske andar aurton ki khaslat maujood hogi maslan daadhi mundana zevar pahanna haath pair me menhdi lagana aurton jaise baal rakhna jooda baandhna yaani usko aurton ki waza qata banane ka bada shauq hoga yunhi agar aurat ka nutfa gaalib aaya aur baayein khaane me gira to zahiro baatin me ladki hi hogi lekin agar aurat ka nutfa gaalib to aaya magar raham ke daahine khaane me ruka to jab to suratan to ladki hogi magar uske andar mardana khaslat paayi jayegi maslan ghoda chalana byke chalana mardane kapde wa joote pahanna mardo ki tarah chhote chhote baal rakhna bol chaal me bhi mardana pan rahega 

📕 Fatawa razviyah,jild 9,safah 362

* Bachcha maa aur baap dono ka hota hai matlab ye ki uski haddiyan mard ke nutfe se banti hai aur gosht wagairah aurat ke nutfe se

📕 Kya aap jaante hain,safah 607

* Huzoor sallallaho taala alaihi wasallam irshad farmate hain ki "beshak aulaad ki khushbu jannat ki khushbu hai

📕 Muqashifatul quloob,safah 515

* Aur farmate hain ki "nikah karo ki main tumhari kasrat par fakhr karunga yaani zyada bachche paida karo, magar yahan to haal hi alag hai pahle to hum 2 hamare 2 ka naara hua karta tha aur aaj kal hum 1 hamara 1 faision me hai,maaz ALLAH

📕 Musnade imaam aazam,safah 208

* Ladki paida hona baayise barqat hai jaisa ki hadise paak me aata hai ki huzoor sallallaho taala alaihi wasallam irshaad farmate hain ki "Jiske betiyan hon aur wo unki achchhi tarah parwarish kare to qayamat ke din wo aur main itne paas honge phir aapne apni ungliya milakar dikhaya ki is tarah

📕 Muslim,jild 2,safah 330

* Jiski 1 ya 2 ya 3 betiyan ya bahne hon aur wo unki parwarish kare yahan tak ki unki shadiyan kara de to uspar jannat waajib hai

📕 Mishkat,safah 423

* SUBHAAN ALLAH ye riwayat padhiye huzoor sallallaho taala alaihi wasallam irshaad farmate hain ki "Jis ghar me adkiyan hoti hain to aasmaan se rozana us ghar par 12 rahmatein naazil hoti hai aur us ghar ki farishte ziyarat karte hain aur us ladki ke maa baap ke naamaye aamaal me rozana saal bhar ki ibaadat ka sawab likha jaata hai ALLAHO AKBAR

📕 Nuzhatul majalis,jild 2,safah 83

* Ladkiyon ki paidayish par naakhush hona kaafiro ka tariqa hai jaisa ki surah nahal me maula taala farmata hai ki "aur jab unme se kisi ko beti hone ki khush khabri di jaati hai to din bhar uska munh kaala rahta hai aur gussa khaata hai

📕 Surah nahal,aayat 58

* Jab bachche ki wiladat ho to use fauran gusl dekar seedhe kaan me azaan kahi jaaye aur baayen kaan me takbeer,behtar hai ki azaan 4 baar kahen aur taqbeer 3baar kahi jaaye,aur koi mutaaqi parhezgar shkahs khajur chabakar bachche ke munh me daale ki hadise paak me aata hai ki bachche ko pahli ghutti dene waale ka asar bachche par aata hai isiliye sahaba ikram apne maulud bachchon ko lekar huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ki baargah me aate aur huzoor sallallaho taala alaihi wasallam unke munh me apna loaabe paak daal dete

📕 Fatawa razviya,jild 9,safah 46

* Saatwein din bachche ka aqeeqa kiya jaaye uska baal moond kar uske barabar chaandi sadqa kare ya uski keemat aur bachche ka naam rakhe,ladke ke liye 2 bakre aur ladki ke liye 1 bakri ya ladke me bakri kar di aur ladki me bakra tab bhi koi harj nahin yunhi 2 ki jagah 1 ya 1 ki jagah 2 kar diya to bhi ho jayega usi tarah bade jaanwar me hissa liya to bhi aqeeqa ho jayega,aur aqeeqe ka gosht bachche ke maa baap daada daadi naana naani sab kha sakte hain 

📕 Bahare shariyat,hissa 15,safah 154

* Jo aurtein bachchon ko apna doodh nahin pilati is garaz se ki kahin unki khoobsurti kam na ho jaaye wo is riwayat ko padhen ki shabe meraj me huzoor sallallaho taala alaihi wasallam ne kuchh aurton ko dekha ki jinke pistaan had se zyada bade hain unhein saanp das rahe hain to jibreele ameen farmate hain ki ye wo aurtein hain jo bachchon ko apna doodh nahin pilati thin

📕 Sharahus sudoor,safah 153

* Bachche ki doodh ki har chuski ke badle maa ko ek ghulam aazad karne ka sawab milta hai aur jab wo uska doodh chhudati hai to gaib se nida aati hai ki ai aurat tere aaj tak ke saare gunah maaf hue ab tu naye sire se nekiyan kar

📕 Guniyatut taalebeen,safah 113

* Maa ka doodh bachche ke liye har cheez se zyada faaydemand hai tabeebo ka yahi kahna hai ki jo bachcha maa ke doodh par pala hai wo bahut kam beemar padega aur jo maa ke doodh se mahroom rahega wo kamzor aur tarah tarah ki bimariyon me zindagi bhar mubtela rahega,bachche ki parwarish par maa ka haq hai to bagair uski marzi ke koi uska bachcha nahin paal sakta haan agar usko doodh wagairah nahin utarta to aisi surat me daaya wagairah ko diya jaaye ya dabbe ka doodh istemal karayen

📕 Tafseere nayimi,jild 2,safah 472

* Bachche ko 2 saal se zyada doodh pilana mana hai aur dhaai saal se zyada pilana haraam haan 2 saal se pahle agar doodh chhudana chaahe to chhuda sakta hai ijazat hai

📕 Bahare shariyat,hissa 7,safah 29

Ek bahut zaruri baat beshak apni aulaad ko neik taaleem dena har maa baap par farz hai lekin agar maa baap ye galti kar baithe hain ki unhone apne bachcho ko deeni taaleem nahin di to beshak wo kusoor waar hain magar utne nahin jitna ki aajkal ki aulaad unhein thahrati hai maslan koi bhi baat padi to fauran kah diya ki mere maa baap ne hamein padhaya hi nahin,to unki galti usi waqt maani jaati jabki aulaad baalig hone se pahle mar jaati aur jab baalig ho gayi to duniya bhar ki saari khuraafat to khud seekh gaya

laundiya baaji karna kya maa baap ne sikhayi thi
Gutkha khaana sigrate peena kya maa baap ne sikhaya tha
Ayyashi karna bhi kya maa baap ne sikhaya tha
Kuchh sharaab peete hain kya maa baap ne sikhaya tha
Naachna gaana hullat baazi karna kya maa baap ne sikhaya tha
jhoot makkari aawara gardi kya maa baap ne sikhayi

Nahin na phir bhi seekh gaya,to jab aawara gardi khud se seekh sakta hai to ilme deen kyun nahin seekha ye sirf ek bahana hai aur bahane se insaan ko fuslaya ja sakta hai farishto ko nahin,lihaza agar farishton ki maar se bachna chahte hain to marne se pahle har wo cheez jiski ek insaan ko zarurat padti hai utna ilm haasil kar lein kyunki zarurat ka ilm haasil karna har musalman par farz hai

To be continued..........