Tuesday 11 April 2017

टखनों का ढका होना


● टखनों का ढका होना ●


* जो अज़ार टखनों के नीचे है वो जहन्नम में है

📕 बुखारी,जिल्द 7,हदीस 678
📕 अत्तरगीब वत्तर्हीब,जिल्द 3,सफह 88
📕 सुनन कुबरा,जिल्द 2,सफह 244

* अल्लाह उस पर रहमत की नज़र नहीं फरमायेगा जो अपने कपड़ो को लटकाता है

📕 बुखारी,जिल्द 7,हदीस 679

* एक शख्स नमाज़ पढ़ रहा था जिसकी अज़ार टखनों से नीचे थी तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उसको बुलाया और फरमाया कि जाकर फिर से वुज़ू कर और नमाज़ पढ़ कि तेरी नमाज़ नहीं हुई

📕 अबू दाऊद,जिल्द 1,सफह 100

*यहां हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का मकसद सिर्फ उसको तम्बीह करना था वरना नमाज़ इस सूरत में भी हो जाती है,जैसा कि दूसरी हदीसे पाक में है कि*

* जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने ये फरमाया कि जिसकी अज़ार टखनों के नीचे है तो वो जहन्नम में है तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अगर मैं अपनी तहबन्द का खास ख्याल ना रखूं तो अक्सर वो टखनों के नीचे ही रहती है तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि ऐ अबू बक्र तुम उनमें से नहीं हो जो तकब्बुर से ऐसा करते हैं

📕 बुखारी,जिल्द 7,हदीस 675
📕 इब्ने अबी शैबा,जिल्द 8,सफह 199
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 449

*मतलब साफ है कि जो घमंड की वजह से ऐसा करेगा तो ये नाजायज़ है वरना मकरूह,अब यहां एक मसला ये समझ लीजिये कि नमाज़ में टखना खोलने के लिए कुछ लोग पैंट मोड़कर नमाज़ पढ़ते हैं उनका ये फेअल हरगिज़ जायज़ नहीं जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि*

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि हमें ये हुक्म दिया गया है कि नमाज़ में अपने कपड़ो को ना समेटें

📕 मुस्लिम,जिल्द 4,हदीस 993

*कपड़ो को मोड़ना इसको कहते हैं खिलाफे मोताद यानि कि कपड़ा जिस फैशन पर सिला गया है उसी तौर पर रखकर नमाज़ पढ़ी जाए कि अगर उसमे कुछ भी बदलाव किया तो नमाज़ मकरूहे तहरीमी होगी,गोया टखना खोलने के लिए पैंट मोड़ना ऐसा ही है जैसा कि कोई बारिश की चंद बूंदों से बचने के लिए किसी परनाले के नीचे खड़ा हो जाए कि पहले तो शायद कुछ ही हिस्सा भीगता पर अब तो पूरी तरह भीग गया,मतलब ये कि टखना खुला रखना सुन्नत ज़रूर है और हर वक़्त खुला रखना सुन्नत है ना कि खाली नमाज़ में और इसी तरह नमाज़ पढ़ना मकरूहे तंज़ीही यानि कराहत है मगर नमाज़ हो गई लेकिन अगर टखने को खोलने की गर्ज़ से कपड़े को मोड़ लिया तो ये मकरूहे तहरीमी यानि नाजायज़ है कि अब नमाज़ को दोहराना वाजिब है,फिर ये मोड़ना चाहे पैंट की मोहरी हो या शर्ट की आस्तीन दोनों का एक ही हुक्म है और ये हुक्म सिर्फ मर्दों के लिये है वरना औरतों के लिये यही हुक्म है कि वो अपनी अज़ार टखनों से 1 बालिश्त या 2 बालिश्त बढाकर ही रखें ताकि सतर खुलने का कोई अमकान ना रहे*

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 84

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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in