Tuesday 25 April 2017

हिस्सा-1 मेराज शरीफ


       हिस्सा-1  मेराज शरीफ


*तमाम सुन्नियों को शबे मेराज बहुत बहुत मुबारक हो*

* रायज यही है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज शरीफ रजब की 27वीं शब में हिजरत से पहले मक्का मुअज़्ज़मा में हज़रते उम्मे हानी के घर से हुई

📕 ज़रक़ानी,जिल्द 1,सफह 355

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को 34 बार मेराज हुई 33 बार रूहानी यानि ख्वाब में और 1 बार जिस्मानी यानि जागते हुए

📕 मदारेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 288

हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को रात ही रात एक आन में मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक्सा ले जाया गया फिर वहां से सातों आसमानों की सैर कराई गयी फिर सिदरह से आगे 50000 हिजाबात तय कराये गए जन्नत व दोज़ख दिखाई गयी और सबसे बढ़कर खुदा का दीदार हुआ,मगर जैसा कि मुनकेरीन की आदत है हर बात का इंकार करने की तो इस पर भी ऐतराज़ किया जाता है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज जिस्म के साथ हुई ही नहीं बल्कि ख्वाब में ऐसा हुआ,उनका कहना है कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई 27 साल का सफर एक पल में कर आये,तो इसका जवाब ये है कि अगर खुदा की कुदरत का इक़रार अक़्ल के हिसाब से ही किया जाए तब तो ये भी नहीं हो सकता,ग़ौर करें

मस्जिदें हराम यानि काबा मुअज़्ज़मा से बैतुल मुक़द्दस का सफर करने में 1 महीने से ज़्यादा लग जाते थे जिसकी दूरी 666 मील है

1 मील = 1.60934 किलोमीटर
666 मील = 1.60934 = 1071 किलोमीटर
फिर इतना जाना और वापस आना यानि
1071 + 1071 = 2142 किलोमीटर

अब ये बताइए कि 2142 किलोमीटर का सफर अगर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम तेज़ घोड़े से भी करते तो एक घोड़ा अगर बहुत ते़ज दौड़े तो उसकी स्पीड 70 किलोमीटर पर घंटे की होगी,इस हिसाब से

2142 / 70 = 30.6

और अगर ऊंट से सफर करते तब,ऊंट की रफ़्तार तो घोड़े से कम ही होती है,मतलब ये कि 30 घंटे से भी ज़्यादा वक़्त लगता आपको आने और जाने में,तो अगर अक़्ल के हिसाब से ही मानना है तो मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक़्सा के सफर का भी इनकार करो क्योंकि अगर एक ही रात में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम आसमानों की सैर नहीं कर सकते जन्नत दोजख नहीं देख सकते खुदा का दीदार नहीं कर सकते तो फिर एक ही रात में काबा से मस्जिदे अक्सा भी नहीं पहुंच सकते,अगर वो नामुमकिन है तो ये भी नामुमकिन है,मगर ऐसा तो कर ही नहीं पाओगे क्योंकि ये नामुमकिन काम उस रात मुमकिन हुआ है,अगर इंकार करोगे तो काफिर हो जाओगे रब तआला क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि

* पाक है वो ज़ात जो ले गया अपने बन्दे को रात ही रात मस्जिदें हराम से मस्जिदे अक्सा

📕 पारा 15,सूरह असरा,आयत 1

*अक़्ल से फैसला करने वालो तुम्हारी अक़्ल के परखच्चे उड़ जायेंगे,अगर एक महीने का सफर एक आन में हो सकता है बल्कि हुआ है क़ुरान शाहिद है तो फिर 27 साल का सफर भी एक आन में हो सकता है अगर ये मुमकिन है तो वो भी मुमकिन है,इसके अलावा तीन और दलील है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज हुई और जिस्म के साथ हुई*

1. अल्लाह इस आयत में फरमाता है कि अपने बन्दे को ले गया,तो बन्दा किसको कहते हैं इस पर इमाम राज़ी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि

* अब्द का इतलाक़ रूह और जिस्म दोनों पर होता है

📕 मफातीहुल ग़ैब,जिल्द 20,सफह 295

और इसकी सराहत खुद क़ुरान मुक़द्दस में मौजूद है,मौला फरमाता है कि

* क्या तुमने नहीं देखा जिसने मेरे बन्दे को नमाज़ से रोका

📕 पारा 30,सूरह अलक़,आयत 9

* और ये कि जब अल्लाह का बंदा उसकी बंदगी करने को खड़ा हुआ तो क़रीब था कि वो जिन्न उस पर ठठ्ठ की ठट्ठ हो जायें

📕 पारा 29,सूरह जिन्न,आयत 19

बताइये नमाज़ रूह पढ़ती है या जिस्म या कि दोनों,ज़ाहिर सी बात है की दोनों,तो मेराज में भी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का जिस्म और रूह दोनों मौजूद थी

2. सारी दुनिया जानती है कि मेराज में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के लिए बुर्राक़ लाया गया,अगर मेराज रूह की थी तो बुर्राक़ का क्या काम,क्या बुर्राक़ रूह को उठाने के लिए लाया गया था

3. अगर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को मेराज ख्वाब में होती तो मुनकिर इन्कार क्यों करता,क्योंकि ख्वाब में आसमान की सैर करना कोई कमाल तो नहीं,मतलब ये कि मेराज जिस्म के साथ ही हुई थी

📕 रुहुल बयान,पारा 15,सफह 8

जारी रहेगा...........
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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in