Friday 5 May 2017

इल्मे दीन हिस्सा-2


हिस्सा-2  इल्मे दीन

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "जब इंसान मर जाता है तो उसके सारे आमाल मुनक़तअ हो जाते हैं मगर तीन अमल का सवाब जारी रहता है जिसका सवाब मुर्दा क़ब्र में भी पाता है

1. सदक़ये जारिया-यानि कोई ऐसी चीज़ सदक़ा कर गया मसलन मदरसे में क़ुरान रखवा दिया या वुज़ू खाना बनवा दिया या पानी का और कोई काम करवा दिया गर्ज़ कि जो उसके मरने के बाद भी बाकी रहे तो उसे सदक़ये जारिया कहते हैं,इसका सवाब मरने के बाद भी मिलेगा

2. इल्म-यानि ऐसा इल्म छोड़ गया या लोगों को सिखा गया जिससे कि लोग फायदा उठाते हों तो उसके मरने के बाद भी जितने लोग उस पर अमल करते रहेंगे क़ब्र में भी उसको सवाब मिलता रहेगा

3. नेक औलाद-यानि जो भी अमले खैर उसकी औलाद करेगी या दुआ करेगी तो क़ब्र में उसके वालिदैन को भी अज्र मिलता रहेगा,और किसी के अमल में कोई भी कमी ना होगी

📕 तिर्मिज़ी,हदीस 1376

*एक बात यहां ज़हन में ये आई कि अक्सर अवाम ये कहती हुई नज़र आती है कि जाहिल आलिम से बेहतर हैं क्योंकि आलिम तो जानकर गुनाह करते हैं और अवाम कम से कम जानती तो नहीं है इसलिए कम गुनाहगार होगी,तो उनकी ये सराहत सरासर गलत और फिज़ूल है अव्वल तो क़ुरान का ही इनकार है अल्लाह फरमाता है कि*

* आलिम और जाहिल बराबर नहीं

📕 पारा 23,सूरह ज़ुमर,आयत 9

* बेशक अल्लाह से वही लोग डरते हैं जो इल्म वाले हैं

📕 पारा 22,सूरह फातिर,आयत 28

*एक में मौला फरमाता है कि आलिम और जाहिल बराबर नहीं तो मतलब ये है कि आलिम बुलंद मनसब है और ना अहल उससे कम,पर अवाम की नज़र में तो वो उल्मा से भी बढ़कर हैं फिर यही नहीं उस पर भी तुर्रा ये कि जाहिल ही अल्लाह से डरते हैं उल्मा नहीं डरते इससे दूसरी आयत का इंकार होता है माज़ अल्लाह,अगर इंकार से मुराद तहक़ीर हो जब तो कुफ्र तक हो जायेगा,अवाम क्या सोचकर ऐसा कहती है उसकी एक मिसाल देता हूं जैसे कि दावत में किसी मौलाना को खड़े होकर खाना खाते देख लिया या पानी पीते देख लिया या और कोई गुनाह करते देख लिया तो अब अपना गुनाह भूलकर उसकी ज़बान पर बस यही आता है कि उससे अच्छे तो हम है कम से कम हम जानते तो नहीं हैं,तो याद रखें कि किसी का कोई दीनी बात का इल्म ना रखना उसे अज़ाब से नहीं बचा सकता

इसको यूं समझिये कि अगर जानकर ज़हर पियेंगे तो मर जायेंगे और अगर अनजाने में ज़हर पियेंगे तो क्या बच जायेंगे,नहीं बिलकुल नहीं,ज़हर ज़हर है चाहे जानकर पियें या अनजाने में वो तो अपना काम करेगा,उसी तरह गुनाह गुनाह है चाहे जानकर करें या अनजाने में अज़ाब दोनों ही सूरत में झेलना पड़ेगा,मगर इसमें भी जाहिल ही ज़्यादा नुकसान उठायेगा क्योंकि वो इल्म से ना आशना है उसे तो पता भी नहीं है कि जो गुनाह वो कर रहा है वो नाजायज़ है या हराम है या माज़ अल्लाह कुफ्र है,लेकिन इल्म वाला अगर चे अपने नफ्स के धोखे में आकर गुनाह करता भी है तो कम से कम उसे इल्म तो होगा कि ये गुनाह किस ज़िम्न में है कोई नेकी करने से मिट जायेगा या तौबा भी करनी होगी,फिर दूसरी बात ये भी कि जिस तरह नमाज़ पढ़ना फर्ज़ है उसी तरह इल्मे दीन सीखना भी फर्ज़ है मतलब नमाज़ के मसले मसायल सीखना भी फर्ज़ है,अब एक शख्स ने नमाज़ के मसले मसायल तो तमाम सीख लिये यानि एक फर्ज़ को अदा कर लिया मगर नमाज़ नहीं पढ़ता तो दूसरे फर्ज़ का तर्क किया तो उसका कुसूरवार हुआ मगर वहीं एक जाहिल ना तो उसने नमाज़ के मसले मसायल ही सीखे और ना ही वो नमाज़ पढ़ता है तो अब बताईये कि कौन ज़्यादा बुरा है जिसने एक फर्ज़ तर्क किया वो या जिसने दो दो फर्ज़ तर्क किया वो

इसको भी मिसाल से समझिये कि एक शख्स रमज़ान शरीफ में रोज़े रखता है मगर नमाज़ नहीं पढ़ता और दूसरा शख्स ना तो रोज़े ही रखता है और ना ही नमाज़ पढ़ता है,तो अब बताईये कि जिसने रोज़ा और नमाज़ दो फर्ज़ तर्क किये वो ज़्यादा गुनहगार है या वो कि जिसने रोज़ा तो रखा मगर नमाज़ नहीं पढ़ी,ज़ाहिर सी बात है कि जो दो फर्ज़ का तारिक होगा वही ज़्यादा गुनहगार है तो उसी तरह इल्म वाला अगर कोई गुनाह करता भी है तो उसको गुनाह सिर्फ इस बात पर होगा कि उसने ये गुनाह क्यों किया मगर वहीं इल्म ना जानने वाले को इस बात पर भी गुनाह होगा कि इल्म सीखा क्यों नहीं फिर इस पर कि ये गुनाह क्यों किया,समझाते समझाते बात बहुत लम्बी हो गई मगर इसका जानना बहुत ज़रूरी है कि खुद मैं बहुत लोगों से अक्सर सुनता रहता हूं कि अवाम आलिम से बेहतर है माज़ अल्लाह,लिहाज़ा जिसका ऐसा अक़ीदा हो वो फौरन तौबा करे,एक बात और इस पूरी बहस से कोई ये ना समझे कि मैं किसी मौलाना के गुनाह करने को जायज़ ठहरा रहा हूं नहीं बल्कि गुनहगार तो वो है ही मगर उससे बड़ा गुनहगार वो है जो वही गुनाह करता है मगर उसका इल्म भी उसको नहीं है

जारी रहेगा...........

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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in