Monday 8 May 2017

ज़िना की तोहमत


ज़िना की तोहमत

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने जिन 7 हलाकत खेज़ गुनाहों से बचने को कहा है 1. शिर्क करना 2. जादू करना 3. क़त्ल करना 4. यतीम का माल खाना 5. सूद खाना 6. मैदाने जंग से भागना,उसमे एक ये भी है कि 7. किसी पाक दामन औरत पर इलज़ाम लगाना

📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 388
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 66

* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि "और वो लोग जो पाक दामन औरतों पर इलज़ाम लगाते हैं फिर इस पर वो 4 गवाह ना लायें तो उनको 80 कोड़े मारो और उनकी गवाही कभी भी क़ुबूल ना करो कि वो लोग फासिक हैं" कुछ आगे इरशाद फरमाता है कि "बेशक वो लोग जो पाक दामन औरतों पर इलज़ाम लगाते हैं उन पर दुनिया और आखिरत में लाअनत भेजी गयी है और उनके लिए बड़ा अज़ाब है

📕 पारा 18,सूरह नूर,आयत 4-23

ये बीमारी तो आजकल बड़ी आम है जहां किसी लड़की को किसी से बात-चीत करते देखा फौरन उस पर इल्ज़ाम तराशी शुरू हो गई,फलां का फलां से चक्कर है फलां तो आवारा है फलां बदचलन है वगैरह वगैरह,इस्लाम के किसी भी मसले में अगर गवाही की ज़रूरत पड़ेगी तो 2 गवाह काफी हैं चाहे किसी के क़त्ल का मुक़दमा हो या कुछ भी,लेकिन अगर औरत पर ज़िना का इलज़ाम लगाया तो अब 2 गवाहों से काम नहीं चलेगा 4 गवाह चाहिये और चारों ने उस औरत को किसी मर्द के साथ इस तरह देखा हो जैसे सुई में धागा,अगर चारों ने इसी तरह मर्द व औरत को देखा तो जब तो वो ज़ानी होंगे और सज़ा के मुस्तहिक़,ज़िना की सजा ये है कि अगर ज़िना करने वाले शादी शुदा हैं तो संगसार कर दिया जाये यानि दोनों को पत्थर मार मारकर मार डाला जाये और अगर कुंवारे हों तो 100,100 कोड़े मारे जायें,ये सज़ा तब क़ायम होगी जब कि इस्लामी हुकूमत हो चूंकि हिंदुस्तान में इस्लामी हुकूमत नहीं है लिहाज़ा यहां सज़ा नहीं दी जा सकती ऐसे लोग तौबा करें,ये तो हुई ज़ानी की सज़ा और जिसने इलज़ाम लगाया अगर वो 4 गवाह ना पेश कर सका या गवाह तो आये मगर चारों ने मर्द व औरत को उस तरह नहीं देखा जिस तरह बयान किया गया तो इलज़ाम लगाने वाला झूठा साबित होगा और उस पर हद क़ायम होगी यानि 80 कोड़े उसको मारे जायेंगे,चूंकि सज़ा उसको भी नहीं दी जा सकती मगर वो हुक़ूक़ुल इबाद में गिरफ्तार हुआ तो उसका गुनाह सिर्फ तौबा से माफ ना होगा बल्कि उससे भी माफी मांगनी होगी जिस पर इलज़ाम लगाया है,हदीसे पाक में है कि

* बेशक आदमी ज़बान की बदौलत जहन्नम में इतना गिरता है कि जितना मशरिक और मग़रिब के दर्मियान फासला है

📕 अत्तरगीब वत्तरहीब,जिल्द 3,सफह 537

* ईमान वालों को चाहिये कि अच्छी बात बोलें या खामोश रहें

📕 मजमउज़ ज़वायेद,जिल्द 10,सफह 32

याद रहे औरत अगर बदकार भी है जब भी उस पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते जब तक कि उसकी बदकारी को साबित करने के लिए 4 गवाह ना हों,लिहाज़ा मुसलमानों बात बात में किसी को ज़ानी या किसी को हरामी या किसी भी लड़के या लड़की पर ज़िना का इलज़ाम लगाना अगर चे मज़ाक में भी कहे जब भी हराम है गुनाहगार होगा लिहाज़ा तौबा करे और उससे माफी भी मांगे,हां मगर किसी को हराम ज़ादा कहने पर सरकारे आलाहज़रत फरमाते हैं कि "हराम ज़ादा कहने पर हद क़ायम नहीं होगी क्योंकि यहां इस लफ्ज़ से मुराद शरारती होता है मगर लड़की को हराम ज़ादी ना कहे

📕 अलमलफूज़,हिस्सा  4,सफह 14



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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in