Monday 15 May 2017

हुक़ूक़े वालिदैन


                              हुक़ूक़े वालिदैन



                           
*कल मदर्स डे गुज़रा बड़े अच्छे अच्छे मैसेज पढ़ने को मिले,बड़ी अच्छी बात है कि मां की अज़मत को बयान करने के लिए एक दिन मुक़र्रर किया गया मगर उससे भी अच्छी बात ये होती कि हम रोज़ाना ही मां की अज़मत का ख्याल रखते,मां-बाप की अज़मत के लिए एक दिन मुक़र्रर करना और उस दिन उनके साथ सेल्फी खींचकर पोस्ट करने भर से ही हम फरमाबर्दार नहीं बन जायेंगे,बल्कि हर दिन हर पल हर घड़ी हमें मां-बाप का फरमाबर्दार बनना पड़ेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो यक़ीन जानिये कि फिर हमारा जहन्नम मे जाना तय है अगर मेरी बात पर भरोसा ना हो तो ये हदीस पढ़िये*

* सहाबिये रसूल हज़रत अलक़मा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का जब नज़अ का वक़्त आया तो हुज़ूर ने हज़रत अम्मार,हज़रत सुहैब व हज़रत बिलाल रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन को उनके पास कल्मे की तलक़ीन को भेजा,ये हज़रत गए और खूब कोशिश की मगर हज़रत अलक़मा की ज़बान से कल्मा अदा ना हो पाया,इन्होने आकर हुज़ूर ﷺ को खबर दी आपने फरमाया कि उसके वालिदैन में से जो ज़िंदा हो उसे लेकर आओ,उनकी मां जो जिंदा थीं उन्हें बारगाहे नबवी में हाज़िर किया गया,तो नबी अलैहिस्सलाम ने उनसे पूछा कि मुझे सच बता कि तेरे बेटे की क्या कैफियत थी,इस पर वो बोलीं कि मेरा बेटा बहुत नमाज़ें पढता था रोज़े भी खूब रखता था और सदक़ा खैरात भी किया करता था मगर अपनी बीवी को मुझ पर तरजीह देता था और मेरी नाफरमानी करता था,हुज़ूर ने फरमाया यही सबब है कि तेरे बेटे की ज़बान से कल्मा नहीं निकलता तो तू उसे माफ करदे,इस पर वो बोलीं कि उसने मुझे बहुत दुख पहुंचाया है मैं उसे माफ नहीं करुंगी,ये सुनकर हुज़ूर ने गज़ब का इज़हार फरमाते हुए हज़रत बिलाल को हुक्म दिया कि लकड़ियां इकट्ठी करो हम उसमे अलक़मा को ज़िन्दा जलायेंगे,जब उस औरत ने ये सुना तो ज़ारो क़तार रोने लगी कि हुज़ूर आप ऐसा गज़ब ना करें तो आक़ा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अगर तूने उसे माफ ना किया तो वो इससे 70 गुना ज़्यादा तेज़ आग में जलने वाला है,ये सुनकर उस औरत ने सबको गवाह बनाकर अपने बेटे को माफ कर दिया उसके माफ करते ही हज़रत अलक़मा की ज़बान से कल्मा निकला और रूह कब्ज़ हो गई,हुज़ूर ﷺ ने सहाबा के साथ कफन दफन का पूरा इंतज़ाम किया और बाद दफन आप वही क़ब्र पर ये खुतबा देते हैं कि ऐ मुहाजिरीन और अन्सार के गिरोह जो शख्स अपनी बीवी को मां पर फज़ीलत देगा उस पर अल्लाह उसके फरिश्ते और तमाम लोगों की लाअनत होगी और अल्लाह उसका कोई भी फर्ज़ व नफ्ल क़ुबूल ना फरमायेगा यहां तक कि वो तौबा करे और अपने वालिदैन से हुस्ने सुलूक करे

📕 किताबुल कबायेर,सफह 76

*ये मामला सहाबी के साथ पेश आया सोचिये जब मां की नाफरमानी की बदौलत उनका ये हश्र हुआ तो हम और आप किस गिनती में हैं,लिहाज़ा अगर दुनिया से ईमान की हालत में जाना चाहते हों तो अपने मां-बाप को राज़ी रखें,यहां पर एक मसला भी खूब अच्छी तरह से समझ लीजिये,सरकारे आलाहज़रत फरमाते हैं कि*

* मां-बाप अगर औरत को तलाक़ देने का हुक्म देते हैं और तलाक़ ना देने पर वो अपनी औलाद से नाराज़ हैं तो ऐसी सूरत में मर्द का अपनी बीवी को तलाक़ देना वाजिब है अगर चे लड़की की कोई गलती ना हो

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5,सफह 603

*ये है मां-बाप का हुक्म और उनका मर्तबा,मां-बाप का हक़ इतना बड़ा है कि मौला तआला खुद अपने हक़ के साथ उनका हक़ अदा करने का हुक्म फरमाता है,पढ़िये*

* हक़ मान मेरा और अपने मां बाप का

📕 पारा 21,सूरह लुक़मान,आयत 14

* हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि क्या मैं तुम्हे सबसे बड़े गुनाह की खबर ना दूं ये कि अल्लाह का शरीक ठहराना और मां बाप की नाफरमानी

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 884
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 64

*मां की अज़मत पर हुज़ूर ﷺ का क़ौल पूरी दुनियाये इस्लाम में बल्कि सारे मज़हब में मशहूर है आप फरमाते हैं कि*

* जन्नत मां के क़दमों के नीचे है

📕 अलइतहाफ,जिल्द 2,सफह 322

*बाप की शान बयान करते हुए रहमते आलम ﷺ इरशाद फरमाते हैं कि*

* बाप जन्नत का दरवाज़ा है अब तू चाहे तो इसकी हिफाज़त कर और तू चाहे तो हलाक कर दे

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 12


और तुम्हारे रब ने हुक्म फरमाया कि उस के सिवा किसी को ना पूजो और मां बाप के साथ अच्छा सुलूक करो अगर तेरे सामने उनमे से एक या दोनों बूढापे को पहुंच जायें तो उनसे *हूं* तक ना कहना और उन्हें ना झिड़कना और उनसे ताज़ीम की बात कहना.और उनके लिए ताज़ीम का बाज़ू बिछा नर्म दिली से,और अर्ज़ कर कि ऐ मौला तू उन दोनों पर रहम कर जैसा उन दोनों ने मुझे बचपन में पाला

📕 पारा 15,सूरह बनी इस्राईल,आयत 23-24

*ग़ौर कीजिये कि जिन्हे रब 'हूं' करने तक को मना कर रहा है हालांकि 'हूं' तो कोई तहज़ीब से बाहर का लफ्ज़ भी नहीं है मगर आज का मुसलमान माज़ अल्लाह अपने वालिदैन को बुरा कहता है गालियां देता है कुछ कमज़र्फ तो हाथ तक उठाते हैं,सोचिये जिनका ज़िक्र वो अपने साथ बयान कर रहा है सुब्हान अल्लाह उनकी फज़ीलत का क्या कहना होगा*

* हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर ﷺ ने फरमाया कि जो नेक औलाद अपने वालिदैन को मुहब्बत भरी नज़र से देखेगा तो उसे 1 हज मक़बूल का सवाब मिलेगा,तो लोगों ने अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह ﷺ अगर कोई 100 मर्तबा देखे तो तो हुज़ूर फरमाते हैं कि अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह बहुत पाक है (यानि बेशक अल्लाह के खज़ाने में कोई कमी नहीं है उसको 100 हज का सवाब अता करेगा)

📕 जवाहिरुल हदीस,सफह 62

*इसकी वज़ाहत करके बात खत्म करता हूं,बहुत सारे ऐसे अमल आप जानते होंगे मसलन 3 मर्तबा सूरह इखलास पढ़ें तो 1 क़ुरान का सवाब मिलेगा तो बेशक मिलेगा,मगर पूरा क़ुरान पढ़ना और सिर्फ 3 मर्तबा सूरह इखलास पढ़ लेना हरगिज़ बराबर नहीं,इसको युं समझिए कि जैसे बादशाह ने किसी जंग में फतह होने पर अपने वज़ीर को किसी सूबे की जागीर दे दी और कभी किसी शायर का कलाम पसंद आ गया तो उसे भी खुश होकर किसी सूबे की जागीर सौंप दी,हक़ीक़त में दोनों इनआम बराबर है मगर क्या वज़ीर और शायर भी बराबर हो गये,हरगिज़ नहीं,युंही अगर चे मां-बाप को मुहब्बत से देखने पर 1 हज का सवाब मिल रहा है मगर हज्जे बैतुल्लाह करने वाले का जो अज़ीम मर्तबा खुदा के यहां है उसका हज़ारवां हिस्सा भी वालिदैन को मुहब्बत से देखने वाले का नहीं है,ये अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फज़्लो करम है कि एक छोटे से अमल पर हमको बड़ा सवाब अता कर रहा है,इसका कोई ये मतलब हरगिज़ ना निकाले कि जब हज का सवाब बगैर रुपया खर्च करे मिल रहा है तो इतना रुपया खर्च करने और इतनी मशक़्क़त झेलने की क्या ज़रूरत है,क्या 1 किलो सोना और 1 किलो लोहा बराबर हैं,अगर चे वो वज़न में बराबर हैं मगर कीमत में ज़मीन आसमान का फर्क़ है,बहरहाल वालिदैन को मोहब्बत की नज़र से देखना हर हैसियत से हज्जे काबा के बराबर नहीं मगर यही क्या कम है कि अल्लाह हमारे मां-बाप के सदक़े में हमें हज का सवाब दे रहा है ये वालिदैन की फज़ीलत ही तो है,याद रखें वालिदैन की नाफरमानी ईमान के लिए ज़हर है,मौला तआला से दुआ है कि इस पुर फितन दौर में जब कि मर्द अपनी बीवी के इशारों पर नाच रहा है हमें अपने वालिदैन की अज़मत को पहचानने की तौफीक़ो रफीक़ अता फरमाये,और अज़ाबे क़ब्र व अज़ाबे नार से महफूज़ फरमाये-आमीन*

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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in