Monday 22 May 2017

बिरादरी बदलना


              बिरादरी बदलना

* हज़रते सअद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो शख्स जानबूझकर किसी दूसरे को अपना बाप बताये उसपर जन्नत हराम है

📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 2,सफह 1001
📕 मुस्लिम शरीफ़,जिल्द 1,सफह 57
📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 6,सफह 195

* जो किसी दूसरे को अपना बाप बताये उसपर अल्लाह उसके फ़रिश्ते और तमाम इन्सानों की लानत है

📕 मुस्लिम शरीफ़,जिल्द 1,सफह 465

अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन करता है जो अपने बाप को छोड़कर किसी दूसरे को अपना बाप कहे,मगर हक़ीक़त तो ये है कि आजकल ऐसा बहुत सारे लोग करते हैं और इस पर बहुत फख्र महसूस करते हैं,चलिए देखतें हैं कैसे

वैसे तो हिंदुस्तान में सय्यद,पठान,शैख़ और मुग़लों को छोड़कर मुसलमानों की ज़्यादातर जितनी भी cast है सब यहीं के काफ़िरों से converted है,जिनका नाम और वजूद कुछ नहीं है,मगर चुंकि नाम से मंसूबियत एक क़दीम ज़माने से चली आ रही है तो यही अब हर क़ौम की पहचान बन गयी है मसलन अंसारी,मंसूरी,क़ुरैशी,सिद्दिक़ी,राइन,रहमानी,सलमानी व दीग़र जो भी हों,मगर आजकल हमारे यहां बिरादरी बदलने की नाजायज़ नुहूसत बहुत आम हो चली है,किसी backword cast का कोई शख्स किसी मोहल्ले या शहर में रहता है तो कुछ है और जहां कोई नई जगह settle हुआ तो फ़ौरन अपनी cast बदल ली मसलन अंसारी सय्यद हो गए,मंसूरी खान हो गए,सलमानी सिद्दिक़ी हो गए,और ये नहीं सोचा कि ऐसा करके हम क्या कर रहे हैं,मैं आपसे पूछता हूं आप बताइए कि अगर मां सय्यद है और बाप मंसूरी तो बच्चे की cast क्या होगी,ज़ाहिर सी बात है कि बच्चा सय्यद तो हो नहीं सकता क्योंकि नस्ल हमेशा बाप से चलती है,अब अगर कोई मंसूरी अपने आपको सय्यद लिखने लगे तो इसका मतलब क्या होगा जानते हैं,माज़ अल्लाह सुम्मा माज़ अल्लाह ये कि उसने अपनी ही मां पर ज़िना का इलज़ाम लगाया कि उसकी मां ने किसी सय्यद से ज़िना कराया जिससे ये पैदा हुआ तब ही तो अपने आपको सय्यद लिख रहा है,यही उस हदीसे पाक का मफ़हूम है कि लोग जान बूझकर अपनी वलदियत ग़ैर की तरफ़ मंसूब करेंगे,और ऐसा क्यों किया जाता है,सिर्फ और सिर्फ थोड़ी सी इज़्ज़त पाने के लिए,कि छोटी cast वाले होकर जो ज़िल्लत उठानी पड़ रही थी तो अपने आपको बड़ी cast वाला कहलाना शुरू कर दिया,मेरे अज़ीज़ों अल्लाह के यहां जात बिरादरी नहीं देखी जाती उसके यहां सिर्फ और सिर्फ नेक अमल चलता है जैसा कि खुद इरशाद फरमाता है कि

* बेशक अल्लाह के यहां तुममे ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है जो ज़्यादा परहेज़गार है

📕 पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 13

बताइये रब तो ये कह रहा है और इंसान है कि अपना बाप बदलकर इज़्ज़त पाने की कोशिश में लगा है,लिहाज़ा अगर कोई ऐसा कर रहा है तो फ़ौरन तौबा करे और जो उसकी हक़ीक़त है वो बताये,अलहम्दो लिल्लाह मैं खुद मंसूरी हूं और यही बताता हूं,और जो कोई मंसूरी नहीं समझ पाता उसे मैं "बेहना" कहकर अपना तार्रुफ़ करवाता हूं और मुझे इस बात पर कोई शर्म महसूस नहीं होती,क्योंकि अल्लाह ने जिसके लिए जो बेहतर समझा उसे वो बनाकर पैदा फरमा दिया,तो अब रब के काम पर ऐतराज़ क्यों जो उसने बना दिया उसे खुशी खुशी तस्लीम कीजिये,और रही बात इज़्ज़त की तो दुनिया वाले नहीं समझते तो ना समझें मगर कम से कम अपने आमाल सुधार कर आख़िरत तो अच्छी बना लीजिए कि वहां तो इज़्ज़त मिले,याद रखिए जिसके अमल ख़राब होंगे वो किसी तरह कामयाब नहीं हो सकता जैसा कि हदीसे पाक में आता है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

* जिसका अमल उसे पीछे ढ़केल दे वो नस्ब से आगे नहीं बढ़ सकता

📕 📕 मुस्लिम शरीफ़,जिल्द 2,सफह 345

लिहाज़ा बिरादरी बदलकर इज़्ज़त पाने की हवस छोड़ दीजिए,अब आईये इस पर कि क्या एक औरत शादी के बाद अपने नाम के साथ शौहर का नाम जोड़ सकती है कि नहीं,तो सबसे बेहतर तो यही है कि लड़की सिर्फ अपना नाम लिखे शादी से पहले भी और बाद को भी,लेकिन अगर कोई लड़की अपना नाम बदलती भी है तो इसमें 2 बातें हैं,मसलन औरत का नाम सालिहा खान है बाप का नाम अज़मत खान है लड़की अपना नाम सालिहा अज़मत लिखती है,अब उसकी शादी हुई नसीम सिद्दिक़ी के साथ,तो अब वो अगर अपना नाम सालिहा नसीम लिखती है तो कोई हर्ज नहीं क्योंकि ये नस्ब बदलना नहीं हुआ बल्कि शौहर से मंसूबियत हुई,लेकिन अगर सालिहा नसीम की जगह सालिहा सिद्दिक़ी लिखती है तो ये नाजायज़  है कि शादी करने से उसका नस्ब नहीं बदला,लिहाज़ा नाम वल्दियत के साथ लिखने का जो रवाज हिंदुस्तान में नहीं है उसे ना ही अपनाया जाए तो ज़्यादा बेहतर है,यहां जो कुछ भी लिखा है सय्यद,खान,अंसारी,मंसूरी वो सिर्फ मिसाल के तहत समझाने की गर्ज़ से लिखा है कोई ये ना समझे कि मैने किसी क़ौम को बुरा कहा है,फिर भी अगर किसी को पर्सनली फ़ील हुआ तो मै माफ़ी चाहता हूं

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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in