👉🏽 माहे रमज़ान कैसे गुजारे ? ? ? 👈🏽
👉🏽 #पार्ट -08
🔹بسم الله الرحمن الرحيم
🔹الصــلوةوالسلام عليكيارسولالله
🔹ﷺ
हयाते इंसानी के तीन अदवार और
👇🏼रमज़ानुल मुबारक के तीन अशरे👇🏼
मेरे प्यारे आक़ा صَلَّى اللّٰهُ عَلَئهِٖ وَسَلَّم के
प्यारे दीवानो ! अगर्चे इन्सान की हयात
बे शुमार मराहिल से गुज़र कर ईर्तिकाए
मराहिल तय करती हुई अपनी ईन्तिहा को
पहुँचती है लेकिन हयातके तीन दौर क़ाबिले
ज़िक्र हैं पहला दौर दुनिया की ज़िंदगी है
जिस का तअल्लुक़ रूह और जिस्म से
वाबस्ता है और ज़िंदगी का ये दौर पैदाइश
से लेकर मौत तक है, ईस दौरमे हर इन्सान
अपनी रूह और जिस्म दोनों को पुरसुकून
तरीक़े से माद्दी आराइश पहुंचाना चाहता है
और मसाईब व आलाम से नजात चाहता है।
हयातका 2 मरहला मौतसे लेकर क़यामत
तक का है जिसे आलमे बर्ज़ख कहा जाता
है।, ज़िन्दगी के ईस मरहले की हक़ीक़त
अल्लाह तआला ही को मालूम है, सिवाए
उसके की जितना ईल्म अल्लाह तआला ने
इन्सानको दिया है, सिर्फ ईसी हदतक इन्सान
ईस मरहले के बारे में जानता है।
तीसरा
मरहला क़यामत के बाद न खत्म होने
वाली ज़िन्दगी है, यह ज़िन्दगी हिसाब व
किताब के बाद जज़ा के तौर पर जन्नत की
सूरतमें या सज़ाके तौर पर दोज़ख की सूरत
में होगी।
रोज़ा ऐसी ईबादत है कि नबी ए
करीम صَلَّى اللّٰهُ عَلَئهِٖ وَسَلَّم के इर्शाद के
मुताबिक ज़िन्दगी के उन तमाम मराहिल में
कारआमद षाबित होता है।
👉🏽रमज़ान का 1अशरा रहमत का है जो
ज़िन्दगी के ख़ुसूसन 1 मरहले में ज़रूरी है।
👉🏽2 अशरा मगफिरत का है जो ज़िन्दगी
के 2 मरहलेके लिए कारआमदहै कि उसकी
वजह से क़ब्र में राहत मिलेगी और
👉🏽3 अशरा जहन्नम से आज़ादी का है
जो ज़िन्दगीके तीसरे मरहले में कारआमद है
तो गोया जिसने रमज़ानके पूरे माहके रोज़े
रखे उसे ज़िन्दगी के तमाम मराहिल में
राहत व सुकून मयस्सर आएगा।
📚 (हवाला) माहे रमज़ान कैसे गुजारे
मुसन्निफ़ अताए हुजूर मुफ़्तीए आजम हिन्द
मौलाना मोहम्मद शाकिर अली नूरी
अमीर ए सुन्नी दावते इस्लामी
अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा
अमल करनेकी तौफ़ीक़ अता करे
👉🏽 #पार्ट -08
🔹بسم الله الرحمن الرحيم
🔹الصــلوةوالسلام عليكيارسولالله
🔹ﷺ
हयाते इंसानी के तीन अदवार और
👇🏼रमज़ानुल मुबारक के तीन अशरे👇🏼
मेरे प्यारे आक़ा صَلَّى اللّٰهُ عَلَئهِٖ وَسَلَّم के
प्यारे दीवानो ! अगर्चे इन्सान की हयात
बे शुमार मराहिल से गुज़र कर ईर्तिकाए
मराहिल तय करती हुई अपनी ईन्तिहा को
पहुँचती है लेकिन हयातके तीन दौर क़ाबिले
ज़िक्र हैं पहला दौर दुनिया की ज़िंदगी है
जिस का तअल्लुक़ रूह और जिस्म से
वाबस्ता है और ज़िंदगी का ये दौर पैदाइश
से लेकर मौत तक है, ईस दौरमे हर इन्सान
अपनी रूह और जिस्म दोनों को पुरसुकून
तरीक़े से माद्दी आराइश पहुंचाना चाहता है
और मसाईब व आलाम से नजात चाहता है।
हयातका 2 मरहला मौतसे लेकर क़यामत
तक का है जिसे आलमे बर्ज़ख कहा जाता
है।, ज़िन्दगी के ईस मरहले की हक़ीक़त
अल्लाह तआला ही को मालूम है, सिवाए
उसके की जितना ईल्म अल्लाह तआला ने
इन्सानको दिया है, सिर्फ ईसी हदतक इन्सान
ईस मरहले के बारे में जानता है।
तीसरा
मरहला क़यामत के बाद न खत्म होने
वाली ज़िन्दगी है, यह ज़िन्दगी हिसाब व
किताब के बाद जज़ा के तौर पर जन्नत की
सूरतमें या सज़ाके तौर पर दोज़ख की सूरत
में होगी।
रोज़ा ऐसी ईबादत है कि नबी ए
करीम صَلَّى اللّٰهُ عَلَئهِٖ وَسَلَّم के इर्शाद के
मुताबिक ज़िन्दगी के उन तमाम मराहिल में
कारआमद षाबित होता है।
👉🏽रमज़ान का 1अशरा रहमत का है जो
ज़िन्दगी के ख़ुसूसन 1 मरहले में ज़रूरी है।
👉🏽2 अशरा मगफिरत का है जो ज़िन्दगी
के 2 मरहलेके लिए कारआमदहै कि उसकी
वजह से क़ब्र में राहत मिलेगी और
👉🏽3 अशरा जहन्नम से आज़ादी का है
जो ज़िन्दगीके तीसरे मरहले में कारआमद है
तो गोया जिसने रमज़ानके पूरे माहके रोज़े
रखे उसे ज़िन्दगी के तमाम मराहिल में
राहत व सुकून मयस्सर आएगा।
📚 (हवाला) माहे रमज़ान कैसे गुजारे
मुसन्निफ़ अताए हुजूर मुफ़्तीए आजम हिन्द
मौलाना मोहम्मद शाकिर अली नूरी
अमीर ए सुन्नी दावते इस्लामी
अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा
अमल करनेकी तौफ़ीक़ अता करे
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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in